Move to Jagran APP

शाल वृक्ष को पुनर्जीवित करने के लिए होगा केमिकल ट्रीटमेंट

अंतरराष्ट्रीय पर्यटक केंद्र कुशीनगर स्थित महापरिनिर्वाण बुद्ध मंदिर परिसर में 1936 में गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर आरसीएएस होवर्ट का रोपित किया गया शाल का वृक्ष सूखने के कगार पर है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 11:03 PM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 11:03 PM (IST)
शाल वृक्ष को पुनर्जीवित करने के लिए होगा केमिकल ट्रीटमेंट
शाल वृक्ष को पुनर्जीवित करने के लिए होगा केमिकल ट्रीटमेंट

कुशीनगर: अंतरराष्ट्रीय पर्यटक केंद्र कुशीनगर स्थित महापरिनिर्वाण बुद्ध मंदिर परिसर में 1936 में गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर आरसीएएस होवर्ट का रोपित किया गया शाल का वृक्ष सूखने के कगार पर है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उद्यान विभाग इसको बचाने के लिए प्रयास कर रहा है। केमिकल ट्रीटमेंट के जरिए इस धरोहर को बचाया जाएगा। भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण आज से लगभग 2563 वर्ष पूर्व वैशाख पूर्णिमा को हुआ था। उस समय हिरण्यवती नदी के पश्चिमी तट पर मल्ल राजाओं का विकसित शाल वन था। दो शाल वृक्षों के मध्य सिंह शैय्या में लेटकर बुद्ध ने अंतिम उपदेश दिया था और यहीं उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ था। बुद्ध का जन्म और प्रथम धम्मोपदेश भी शाल वृक्ष के नीचे ही हुआ था। इसलिए बौद्धों के लिए शाल वृक्ष का बड़ा महत्व है। 1936 में गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर होवर्ट कुशीनगर आए, तो यहां महापरिनिर्वाण स्थल परिसर में शीशम का जंगल था। शाल नहीं थे। उन्होंने यहां पुन: शाल वाटिका विकसित करने की योजना बनाई और अपने पैसे से महापरिनिर्वाण बुद्ध मंदिर के सामने शाल का बीज रोपण करवाया। उससे सात शाल के वृक्ष तैयार हुए। कुछ वर्षों बाद उसमें से तीन सूख गए, लेकिन आज भी मंदिर के सामने चार वृक्ष खड़े हैं। होवर्ट की स्मृति को संजोए रखने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उद्यान शाखा इनके संरक्षण का प्रयास कर रहा है।

loksabha election banner

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.