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खेल के मैदान से लौटे तो बेरोजगारों का बने सहारा

क्रिकेट की दुनिया में मनचाहा मुकाम नहीं मिला तो एक खिलाड़ी ने गांव की राह पकड़ ली। नर्सरी खोल ली और हरियाली बांटने लगे। इतना ही नहीं उन्होंने तमाम जरूरतमंदों को अपने यहां रोजगार से भी जोड़ा। कह सकते हैं कि वह आत्मनिर्भर भारत अभियान के सिपाही बने हैं इन दिनों।

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Jul 2020 10:58 PM (IST)Updated: Tue, 21 Jul 2020 06:13 AM (IST)
खेल के मैदान से लौटे तो बेरोजगारों का बने सहारा
खेल के मैदान से लौटे तो बेरोजगारों का बने सहारा

महगांव (कौशांबी) : क्रिकेट की दुनिया में मनचाहा मुकाम नहीं मिला तो एक खिलाड़ी ने गांव की राह पकड़ ली। नर्सरी खोल ली और हरियाली बांटने लगे। इतना ही नहीं उन्होंने तमाम जरूरतमंदों को अपने यहां रोजगार से भी जोड़ा। कह सकते हैं कि वह आत्मनिर्भर भारत अभियान के सिपाही बने हैं इन दिनों।

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हम बात कर रहे हैं चायल तहसील के सैयदसरावा गांव निवासी फैज अबरार पुत्र स्व. अबरार अहमद की। फैज ने वर्ष 1990-95 तक लखनऊ क्रिकेट क्लब व प्रयागराज की टीम की तरफ से कई मैच खेले। करीब पांच साल पसीना बहाने के बाद भी मनचाहा मुकाम नहीं मिला तो गांव वापस आ गए और खुद का कारोबार शुरू करने का फैसला किया। अपने खेतों को नर्सरी का रूप दे दिया। फैज अबरार की नर्सरी आज क्षेत्र में प्रसिद्ध है। आस-पास की किसी नर्सरी में जो पौधे नहीं मिलते वह फैज की नर्सरी में मिलते हैं। क्रिकेटर फैज को अब लोग फैज भाई नर्सरी वाले के नाम से जानते हैं। फैज के अनुसार उनकी नर्सरी में करीब 30-35 लोग काम करते हैं। पौधों की सुरक्षा से लेकर उनको पानी देना, निराई, गुड़ाई आदि की जिम्मेदारी दी गई है। फैज की मानें तो उनको पौधों को बेचने में सुकून मिलता है। यह हरियाली लाने का भी एक माध्यम है। उनके साथ काम करने वाले भद्दू पुत्र सरजू, खेलावन पुत्र इंदर, सुमिश्रा पुत्री परसन, मीना पुत्री अमरनाथ, प्रदुम्न, राकेश व कलावती आदि ने बताया कि जब से वह नर्सरी में काम पर लगे हैं, उनकी जिंदगी की गाड़ी बेहतर ढंग से चल रही है।


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