कागज में सिमटी ग्राम सुरक्षा समिति, पुलिस की बढ़ीं मुश्किलें
जासं, कौशांबी : जिले में गठित की गई ग्राम सुरक्षा समिति पूरी तरह से धड़ाम है। हालांकि कागजी कोरम पूरा कर पुलिस ने अपने मित्रों को सक्रिय कर रखा है। विभागीय अनदेखी का दंश झेल रहे सुरक्षा समिति के सदस्यों की पुलिस से दूरी बढ़ रही है। इससे आपराधिक गतिविधियों की सूचना नहीं पहुंच रही है और इलाकाई पुलिस के लिए अपराधियों पर नजर रखने भी काफी दिक्कत हो रही हैं।
जासं, कौशांबी : जिले में गठित की गई ग्राम सुरक्षा समिति पूरी तरह से धड़ाम है। हालांकि कागजी कोरम पूरा कर पुलिस ने अपने मित्रों को सक्रिय कर रखा है। विभागीय अनदेखी का दंश झेल रहे सुरक्षा समिति के सदस्यों की पुलिस से दूरी बढ़ रही है। इससे आपराधिक गतिविधियों की सूचना नहीं पहुंच रही है और इलाकाई पुलिस के लिए अपराधियों पर नजर रखने भी काफी दिक्कत हो रही हैं।
आपराधिक गतिविधियों पर नजर रखने और उनकी धर-पकड़ में सहयोग करने के लिए पुलिस विभाग की ओर से प्रदेश के सभी जिलों में ग्राम सुरक्षा समिति का गठन किया गया है। इसमें कौशांबी भी शामिल हैं। इस समिति में प्रत्येक गांव से 15 से 20 सदस्य शामिल हैं। यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। समिति के सदस्यों को पुलिस विभाग की ओर किसी प्रकार सहयोग व प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। इसकी वजह अधिकांश सदस्य पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए हैं। पुलिस विभाग के अफसरों की अनदेखी के चलते इनकी निष्क्रियता अपराध व अपराधियों को बढ़ावा दे रही है। वारदात होने के पहले अपने-अपने इलाके में आपराधिक गतिविधि व अपराधियों की लोकेशन के बारे में पुलिस को सूचना ग्राम सुरक्षा समिति के सदस्य देते थे। अब तो पुलिस मित्र हैं लेकिन वह कोई मदद नहीं करना चाहते। इसके पीछे समिति के सदस्यों का भी अपना अलग तर्क है। परिचय देने पर भी समझते आम आदमी
पुलिस मित्रों का कहना है कि पहले जो उन्हें वरीयता मिलती थी लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है। परिचय देने पर भी उसी नजर से देखते जैसे आम जनता को। गोपनीय तरीके से सूचना देना भी जी का जंजाल बन जाता है।
पुलिस से मित्रता बनती हैं मुसीबत
पुलिस से की गई गोपनीय मित्रता कभी-कभी मुसीबत बन जाती है। इसके चलते उनका अपने ही गांव में लोगों से दुश्मनी बढ़ जाती है। खाऊ-कमाऊ नीति के चलते पुलिस से मित्रता उनके लिए मुसीबत खड़ी कर रही है। क्या है समिति के सदस्यों का काम
ग्राम सुरक्षा समिति के सदस्य आपराधिक वारदातों के अनावरण व अपराधियों की गतिविधियों पर नजर रखने हैं। साथ ही इसकी सूचना पुलिस को देते हैं। रात में गांव के लोगों की सुरक्षा ही इनका विशेष कार्य होता है। रात्रि गश्त पर निकले इलाकाई थानेदार सुरक्षा समिति के लोगों को इकट्ठा करते हैं और टोलियां बनाकर उन्हें कार्य सौंपते हैं। कुछ गलियों में पुलिस कर्मियों के साथ घूमते हैं तो कुछ लोग कौन अपराधी कहां छिपा हुआ है, इसकी जानकारी देते हैं। यदि किसी परिस्थिति में गांव में बदमाश या चोर घुसे तो सुरक्षा समिति के सदस्य टोली तैयार कर अलग-अलग रास्तों में फैल जाते हैं। एक टोली का काम सो रहे ग्रामीणों को जगाना है तो दूसरी टोली बदमाशों से मोर्चा लेने के लिए पथराव करती है। इनकी सक्रियता के चलते अपराधियों की घेराबंदी कर उन्हें आसानी से दबोच लिया जाता है। अब नहीं कराई जाती ट्रे¨नग
कागज में चल रही ग्राम सुरक्षा समिति के सदस्यों की जनपद स्तर पर ट्रे¨नग नहीं कराई जाती। जबकि इन्हें आपराधिक गतिविधियों पर किस तरह नजर रखनी है और पुलिस के पहुंचने के पहले बदमाशों से कैसे निपटना है। इसकी ट्रे¨नग दी जाती है। प्रशिक्षण में बताया जाता है कि यदि कहीं आग लग जाए तो अग्निशमन टीम के पहुंचने के पहले उन्हें बचाव के क्या-क्या उपाय करने चाहिए। पूरी तरह प्रशिक्षण से लैस सदस्यों को ही समिति में शामिल किया जाता है। गौर करने वाली बात तो यह है कि समिति के सदस्य के निष्क्रिय होने की सहमति आला अफसर भी करते हैं लेकिन इन्हें सक्रिय करने के लिए कोई पहल नहीं की जा रही है। जिले के सभी गांव में ग्राम सुरक्षा समिति का गठन तो पहले से ही है लेकिन अधिकांश जगहों पर यह निष्क्रिय हैं। आपराधिक गतिविधियों व अपराधियों की सूचना देने में इनका अहम योगदान होता है और वारदातों के अनावरण में इनका बेहतर सहयोग मिलता है। इन्हें फिर से सक्रिय करने की कवायद शीघ्र ही शुरू की जाएगी। इसके लिए थानेदारों को भी निर्देशित किया जाएगा कि समिति के सदस्यों के प्रति पुलिस का व्यवहार अच्छा हो।
- प्रदीप गुप्ता, पुलिस अधीक्षक।