बाल विवाह व दहेज के खिलाफ लड़ रहीं पुष्पा
मंझनपुर क्षेत्र के छोटा पचंभा गांव निवासी पुष्पा देवी स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी घरेलू महिला थीं। वह बेटियों की शिक्षा में भेदभाव व दहेज के खिलाफ आवाज बुलंद किया। सितंबर 2014 में वह महिला समाख्या से जुड़ी तभी से बाल पेंटिंग व गोष्ठी के माध्यम से युवतियों व महिलाओं से बेटियों को उच्च शिक्षा व दहेज की खिलाफ जागरूक कर रही हैं।
शैलेंद्र द्विवेदी, कौशांबी : दहेज प्रथा समाज के लिए एक अभिशाप है। यह महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में बढ़ावा देता है। इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए मंझनपुर के छोटा पचंभा गांव की पुष्पा ने जंग छेड़ रखी है। वह पिछले चार साल से ग्रामीण क्षेत्रों में गोष्ठी व बैठक कर लोगों को अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाने व दहेज न देने के लिए जागरूक कर रहीं हैं। उनके इस कार्य के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कई बार उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है।
मंझनपुर क्षेत्र के छोटा पचंभा गांव निवासी पुष्पा देवी स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी घरेलू महिला थीं। वह बेटियों की शिक्षा में भेदभाव व दहेज के खिलाफ आवाज बुलंद किया। सितंबर 2014 में वह महिला समाख्या से जुड़ी तभी से बाल पेंटिंग व गोष्ठी के माध्यम से युवतियों व महिलाओं से बेटियों को उच्च शिक्षा व दहेज की खिलाफ जागरूक कर रही हैं। उनका कहना है कि दहेज को समाप्त करने के लिए सरकार प्रयासरत हैं, निर्धन अभिभावकों के लिए बेटी के विवाह में दहेज देना उनकी मजबूरी बन गई है, क्योंकि वे जानते हैं कि अगर दहेज न दिया गया तो यह उनके मान-सम्मान को तो समाप्त करेगा। बेटी को बिना दहेज के विदा किया तो ससुराल में उसका जीना दूभर हो जाएगा। संपन्न परिवार बेटी के विवाह में अधिक खर्च करके अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाने व झूठी शान का दंभ भरते हैं। उन्हें लगता है कि इससे उनकी बेटियों को ससुराल में सम्मान और प्रेम मिलेगा। यही वजह है कि दहेज का खात्मा नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा कि दहेज का खात्मा उच्च शिक्षा से ही किया जा सकता है।