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बाजार में चाइनीज सामान, कुम्हार भुखमरी की कगार पर

संसू, मूरतगंज : एक वक्त था जब प्रकाश पर्व दीवाली पर हर घर मिट्टी के दीयों की रोशनी से ही जगमगाते थे। कुम्हारों की अच्छी आमदनी से उसके बच्चे भी पर्व मनाते थे इधर पिछले एक दशक से लोग बाजार में आई चाइनीज झालर खरीदकर घरों को रौशन करते हैं। इससे जहां कुम्हारों के रोजगार पर असर पड़ा वहीं दिपावली के बाद भी कीट-पंतगे दिखते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 06:44 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 06:44 PM (IST)
बाजार में चाइनीज सामान, कुम्हार भुखमरी की कगार पर
बाजार में चाइनीज सामान, कुम्हार भुखमरी की कगार पर

संसू, मूरतगंज : एक वक्त था जब प्रकाश पर्व दीवाली पर हर घर मिट्टी के दीयों की रोशनी से ही जगमगाते थे। कुम्हारों की अच्छी आमदनी से उसके बच्चे भी पर्व मनाते थे इधर पिछले एक दशक से लोग बाजार में आई चाइनीज झालर खरीदकर घरों को रौशन करते हैं। इससे जहां कुम्हारों के रोजगार पर असर पड़ा वहीं दिपावली के बाद भी कीट-पंतगे दिखते हैं।

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मूरतगंज क्षेत्र के कुम्हार मसूरियादीन, रामचंद्र प्रजापति, विजय कुमार, बसंत लाल, रामसुख प्रजापति, संतोष कुमार आदि का कहना है कि चीनी उत्पाद के चलते उनके व्यवसाय पर असर पड़ा है। अब लोग खरीदारी के लिए मॉल्स और सुपरमार्केट का रुख करते हैं। इससे मिट्टी के दिए या अन्य सामग्री की बिक्री नहीं हो पा रही है।

पारंपरिक काम छोड़ तलाश रहे रोजगार

आजकल मिट्टी से जुड़े व्यवसाय में कोई ज्यादा लाभ नहीं हो रहा है। इसीलिए जिले के कई कुम्हार अपना पारंपरिक काम को छोड़कर अब धीरे-धीरे अन्य रोजगार तलाश में जुट रहे हैं।

आजकल बड़ी मुश्किल से मिलती मिट्टी

शेरगढ़, काशिया पूरब, अशरफपुर, मलाक नागर, मुजाहिदपुर गांवों के लोग मिट्टी के दीपक, मूर्तियां बनाने के पेशे से अधिक जुड़े थे। मिट्टी मुश्किल से मिलती है जिससे खरीदकर लाते हैं।

कुम्हारों को नहीं मिलता मेहनत का पैसा

पहले दीपावली के मौके पर दीए को बनाकर बाजार में बेचते थे लेकिन चीनी उत्पादों की वजह से अब मिट्टी का पूरा समान कम बिकता है। मिट्टी खरीदकर बनाए दीये महंगे बेचने पड़ते हैं। बोले कुम्हार

- पहले मिट्टी से लक्ष्मी व गणेश की प्रतिमा बनाकर बाजार में बेचते थे। इससे हजारों की कमाई होती थी। अब तो चाइनीज मूर्तियां आ रही हैं।

- मसुरियादीन - दो पीढि़यों से हमारे यहां मिट्टी के बर्तन और दिए का काम हो रहा है। अब मिट्टी नहीं मिल पा रही है। तैयार की गई सामग्री सस्ते रेट में बिकती है।

- रामचंद्र प्रजापति - 10 सालों से दिवाली पर मिट्टी के दिए बनाकर बेचता चला आ रहा हूं। अब बाजार में चाइनीज दीपक आ गए हैं। इससे मिट्टी के दीए कम बिकते हैं।

- वीरेंद्र प्रजापति - मिट्टी के बर्तन बनाना पुस्तैनी काम है लेकिन अब लोग मिट्टी के दीयों का उपयोग कम कर रहे हैं और चाइनीज दीप का उपयोग ज्यादा हो गया है।

- संतोष कुमार


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