सब के साथ तरक्की की कहानी लिख रहीं प्रीती
बेटी एक नहीं दो परिवार की पहचान होती हैं लेकिन प्रीती के लिए यह कहावत सही नहीं है। अपने हौसले और कार्यों के चलते प्रीती पूरे समाज की पहचान बनकर उभर रही हैं। ग्रामीण परिवेश में जन्मी प्रीती की प्रारंभिक शिक्षा प्रयागराज में हुई। शिक्षा के बाद उनके कार्यों ने उनको एक नई पहचान दी।
नीरज सिंह, कौशांबी : बेटी एक नहीं दो परिवार की पहचान होती हैं लेकिन प्रीती के लिए यह कहावत सही नहीं है। अपने हौसले और कार्यों के चलते प्रीती पूरे समाज की पहचान बनकर उभर रही हैं। ग्रामीण परिवेश में जन्मी प्रीती की प्रारंभिक शिक्षा प्रयागराज में हुई। शिक्षा के बाद उनके कार्यों ने उनको एक नई पहचान दी। इनके प्रयास का नतीजा है कि आज कम से कम एक दर्जन लोगों का गुजर बसर इन्हीं के भरोसे हो रहा है। समाज को एक दिशा देने के साथ ही उन्होंने ऐसा माहौल बनाया है कि वह दूसरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गईं।
मंझनपुर तहसील की अंबावा पश्चिम निवासी प्रीती सिंह टेक्सटाइल डिजाइनर हैं। 2008 में टेक्सटाइल डिजाइनर में डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने एक कंपनी में काम शुरू किया। इसी बीच उनकी शादी हो गई। पति एसपी सिंह के साथ वह पुणे व इंदौर में रहीं। इस दौरान भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया। पति को विदेश जाने का मौका मिला और प्रीती ने उनकी गैर मौजूदगी में परिवार व नौकरी दोनों को संभाला। 2020 में लाकडाउन के दौरान वह पति के साथ वापस गांव आ गईं। यहां उनके लिए टेक्सटाइल से जुड़ा काम नहीं था, तो उन्होंने आसपास के परिवेश के अनुसार काम करने की योजना बनाईं। उनकी सोच थी कि गांव के लोग बाहर काम करने जा रहे हैं। कुछ ऐसा किया जाए कि इनको गांव में ही काम मिल जाए। इस सोच के साथ प्रीती ने योजना बनाई। उन्होंने पहले मटर, टमाट आदि की खेती कीं। इसके बाद पपीते की खेती शुरू कर दीं। इतना ही नहीं उन्होंने खेत के पास रहे ग्राम सभा के तालाबों को देखा तो अधिकारियों से मिलकर इसके पट्टे आदि की कार्रवाई करते हुए मत्स्य पालन शुरू कर दिया। तालाब के पास शेष बची भूमि पर मुर्गी पालन और बकरी पालन की योजना पर भी वह काम कर रही हैं। अपनी तरक्की के साथ ही उन्होंने अपने गांव के करीब एक दर्जन लोगों को साथ ले रखा है। तीन परिवार के सदस्य तो पूरी तरह से उन पर आश्रित हैं। प्रीती अब अपने साथ ही गांव के दर्जन भर लोगों के घरों की जरूरतों को पूरा कर रही हैं। उनकी इस पहल ने उनको एक अलग पहचान दी है।