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रिश्वतखोर स्टाफ नर्स पर स्वास्थ्य विभाग मेहरबान

जिला अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में नवजात को भर्ती करने के नाम पर रिश्वत लेते वायरल हुए वीडियो के बाद भी स्टाफ नर्स पर स्वास्थ्य विभाग के अफसर मेहरबान हैं। डीएम के आदेश के बाद भी सीएमएस व सीएमओ टालमटोल कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Mar 2020 10:58 PM (IST)Updated: Mon, 16 Mar 2020 06:11 AM (IST)
रिश्वतखोर स्टाफ नर्स पर स्वास्थ्य विभाग मेहरबान

जासं, कौशांबी : जिला अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में नवजात को भर्ती करने के नाम पर रिश्वत लेते वायरल हुए वीडियो के बाद भी स्टाफ नर्स पर स्वास्थ्य विभाग के अफसर मेहरबान हैं। डीएम के आदेश के बाद भी सीएमएस व सीएमओ टालमटोल कर रहे हैं।

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जिला अस्पताल में महिलाओं के प्रसव के बाद नवजात शिशुओं को एसएनसीयू वार्ड में भर्ती किया जाता है। यहां एक स्टाफ नर्स तैनात हैं, जो अक्सर अपने कार्यशैली को लेकर जिला अस्पताल में चर्चा का विषय बनी रहती है। पखवारा भर पहले एक शिशु को भर्ती करने को लेकर स्टाफ नर्स से तीमारदार के बीच में रुपये लेनदेन की बातचीत हुई। इस दौरान तीमारदार के किसी साथी ने मोबाइल पर वीडियो बनाकर वायरल कर दिया। दो मिनट सात सेकेंड व तीन मिनट 58 सेकेंड के वायरल हुए वीडियो के मुताबिक स्टाफ नर्स तीमारदार से शिशु को एसएनसीयू वार्ड में भर्ती करने के लिए एक हजार रुपये की मांग करती रही। किसी तरह तीमारदार छह सौ रुपये में तैयार हुआ। इस दौरान तीमारदार से स्टाफ नर्स ने रुपये भी लिए। यह वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ तो स्वास्थ्य महकमे में खलबली मच गई। मामला सुर्खियों में आने पर सीएमएस डॉ. दीपक सेठ ने कार्रवाई की बात कही। जबकि स्टाफ नर्स अभी भी एसएनसीयू वार्ड में ड्यूटी कर रही है। इतना ही नहीं, नर्स के अभद्र व्यवहार व रिश्वतखोरी से जहां तीमारदार परेशान होते हैं, वहीं स्टाफ भी नाखुश रहता है। इसके बावजूद स्टाफ नर्स पर जिम्मेदारों की मेहरबानी किसी के गले नहीं उतर रही है।

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क्या कहते हैं अफसर

एसएनसीयू वार्ड में तैनात स्टाफ नर्स का रुपये लेते वीडियो वायरल प्रकरण में जिलाधिकारी को जानकारी दी गई थी। साथ ही उसे सीएमओ आफिस में अटैच करने व प्रकरण की जांच कराए जाने के लिए मुख्य चिकित्साधिकारी को पत्र भी भेजा जा चुका है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

- डॉ. दीपक सेठ, सीएमएस जिला अस्पताल। सीएमएस ने वीडियो को ही सच मानते हुए उसे हटाए जाने के लिए पत्र व्यवहार किया था। जबकि स्टाफ नर्स का न तो पक्ष लिया गया और न ही अपने स्तर से सीएमएस ने कोई जांच कराई। जांच कराने और स्टाफ नर्स का भी पक्ष लेने के लिए सीएमएस को पत्र भेजा गया है।

- डॉ. पीएन चतुर्वेदी, मुख्य चिकित्साधिकारी।


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