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जीतोड़ मेहनत के बाद भी किसान को नहीं मिल रही पूरी लागत

कौशांबी विकास खंड धर्म और आध्यात्म के नाम पर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां हर साल सैकड़ों की संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं लेकिन कृषि के नाम पर ब्लाक क्षेत्र में कुछ खास नहीं है। जीतोड़ मेहनत के बाद भी किसान को उसकी पूरी लागत नहीं मिलती। इससे क्षेत्र का किसान लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। उनको फसल से जुड़ी जानकारी कहा मिले।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 05:12 AM (IST)
जीतोड़ मेहनत के बाद भी किसान को नहीं मिल रही पूरी लागत
जीतोड़ मेहनत के बाद भी किसान को नहीं मिल रही पूरी लागत

बारा : कौशांबी विकास खंड धर्म और आध्यात्म के नाम पर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां हर साल सैकड़ों की संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं, लेकिन कृषि के नाम पर ब्लाक क्षेत्र में कुछ खास नहीं है। जीतोड़ मेहनत के बाद भी किसान को उसकी पूरी लागत नहीं मिलती। इससे क्षेत्र का किसान लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। उनको फसल से जुड़ी जानकारी कहा मिले। इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। सरकारी व्यवस्था अपने ढर्रे पर चल रही है, किसान पूरी मेहनत के बाद भी विकास की दौड़ में पिछड़ रहा।

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यमुना की तराई में बसा कौशांबी ब्लाक बौद्ध तीर्थ के नाम पर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। 57 ग्राम पंचायत वाले इस ब्लाक क्षेत्र में 35 हजार किसान हैं। इनमें 24 हजार ने अपना रजिस्ट्रेशन कृषि विभाग में करा रखा है। यमुना की तराई होने के कारण यहां की मिट्टी बलुई व दोमट है। नदी से सटे हुए इलाके में कंकरीली व चिकनी मिट्टी भी मिलती है। यहां क्षेत्र में बड़े बड़े कटान व गड्ढे युक्त भूमि है। भूमि संरक्षण विभाग इन भूमि पर बंधे निर्माण की योजना बनाकर कुछ हद तक कार्य भी कराया है, लेकिन क्षेत्र में जल संचयन को गति नहीं मिल सकी। सिचाई के लिए यहां नहर व निजी नलकूप ही प्रमुख माध्यम है। जोगापुर पंप कैनाल भी यहां बना है, लेकिन करीब दो साल पहले शुरू हुआ पंप कैनाल अभी तक रफ्तार नहीं पकड़ पाया। किसी ने किसी समस्या से पानी देने में अक्षम रहा। परिणाम रहा कि किसानों को समय से सरकारी व्यवस्था से पानी नहीं मिल पाता। यहां के किसान धान, गेहूं, बाजरे के साथ ही सफेद कद्दू, मूंग, अरहर आदि की खेती करते हैं, लेकिन कुछ सालों से बेसहारा मवेशियों ने फसल चक्र को परिवर्तित कर रखा है। बौद्ध तपोस्थली के निकट की हजारों बीघे भूमि इन मवेशियों के कारण बंजर पड़ी है। यहां यमुना का जल स्तर घटने पर चित्रकूट की ओर से भी मवेशी आ जाते हैं। ऐसे में किसानों को फसल को बचाने का संकट रहता है। किसान कुछ न बोना ही बेहतर समझते हैं। इसके अलावा कनैली, ढोकसहा, बड़गांव, सतार, गंजमढ़ी, भखंदा, मुस्तफबाद, आबाकुंआ, कोसम, पाली आदि गांव के किसान सब्जियों की खेती करते हैं। इन में सबसे अधिक क्षेत्रफल में मिर्च की खेती होती है। करीब एक हजार हेक्टेयर में इस बार किसानों ने मिर्च की फसल तैयार की है। कृषि विभाग क्षेत्र में सक्रियता से कार्य नहीं कर पा रहा। ऐसे में किसानों को नई तकनीकि की जानकारी कम मिल पाती है। इसके अलावा यहां किसान लौकी, करेला, टमाटर आदि की फसलों का उत्पादन करते हैं। जो इनके लिए लाभदायक रहती है, लेकिन कीटनाशकों से जुड़ी जानकारी कम होने के कारण फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। किसानों को नुकसान हो जाता है।

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किसानों के बोल ..

हम तो पूरी मेहनत से फसल तैयार करते हैं, लेकिन हर साल किसी ने किसी प्रकार की बीमारी होने से फसल बेहतर नहीं होती। इसको लेकर कृषि विभाग की ओर से जागरूकता कार्यक्रम भी नहीं चलाया जाता है।

-श्रीकांत

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हमने मिर्च की फसल तैयार की है, लेकिन फसल में लुटुरा रोग लग चुका है। इससे फसल की पत्तियों का विकास नहीं होता है। फसल भी बेहतर नहीं है। वह छोटे व कम विकसित हो पाए हैं। उत्पादन प्रभावित है।

-खड़क सिंह

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हम तो वहीं पारंपरिक खेती करते हैं। इसके अलावा अन्य किसी फसल के संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है। इसी फसल को बचाने में परेशानी होती है। यहां तो यदि आप चूके तो फसल मवेशियों नष्ट कर देते हैं।

-श्रीकृष्ण

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सब्जी व अन्य तरह की फसलों को लेकर किसान मन तो बनाते हैं, लेकिन यहां पर न तो बाजार हैं और न इतनी संसाधन की किसान फसलों को तैयार कर सके। कुछ किसानों ने हिम्मत दिखाई है। सहयोग की जरुरत है।

-नत्थू

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बोले अधिकारी ..

फसलों की सिचाई के लिए सोलर पंप लगाने के लिए कृषि विभाग द्वारा अनुदान दिया जा रहा है। साथ ही बागवानी, सब्जी व मसाले की खेती के लिए कृषि व उद्यान विभाग द्वारा अनुदान भी दिया जा रहा है। विकास खंड कौशांबी में सिचाई की समस्या दूर करने का प्रयास किया जाएगा।

-डॉ. उदयभान गौतम, उप निदेशक कृषि

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