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शून्य निवेश खेती में रुचि ले रहे अन्नदाता

कृषि विज्ञान केंद्र इन दिनों प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहा है। इसमें पारंपरिक स्त्रोत का प्रयोग करते हुए खेती की जा रही है। उर्वरक का प्रयोग शून्य करते हुए खेती को बढ़ावा देने वाले इस प्रयोग में जिले के करीब 20 किसान सहयोग दे रहे हैं। फिलहाल इसकी शुरुआत प्रयोग के तौर पर की जा रही है। आने वाले दिनों में इसे बड़े पैमाने पर किए जाने की योजना है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 11:04 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 11:04 PM (IST)
शून्य निवेश खेती में रुचि ले रहे अन्नदाता

जासं, कौशांबी : कृषि विज्ञान केंद्र इन दिनों प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहा है। इसमें पारंपरिक स्त्रोत का प्रयोग करते हुए खेती की जा रही है। उर्वरक का प्रयोग शून्य करते हुए खेती को बढ़ावा देने वाले इस प्रयोग में जिले के करीब 20 किसान सहयोग दे रहे हैं। फिलहाल इसकी शुरुआत प्रयोग के तौर पर की जा रही है। आने वाले दिनों में इसे बड़े पैमाने पर किए जाने की योजना है।

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मिट्टी सब की जरूरत पूरा कर सकती है लेकिन किसी के लालच को पूरा करने में वह सक्षम नहीं है। किसान अधिक लालच के चक्कर में पड़कर रसायन का प्रयोग करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को लगातार खोते जा रहे हैं। इससे फसल की गुणवत्ता भी बेहतर नहीं रहती। लिहाजा, वह न अधिक टिकाऊ होती है और न ही उसमें पोषक तत्व ही अधिक मात्रा में मिलते हैं। गुणवत्ता विहीन फसल का बाजार में उचित मूल्य भी नहीं मिलता। ऐसे में विज्ञानी ने प्राकृतिक यानी शून्य बजट खेती को बढ़ावा देने का काम शुरू किया। नमामि गंगे योजना से गंगा किनारे बसे गांव में जैविक खेती को बढ़ावा देने की योजना पर काम चल रहा है। करीब आधा दर्जन गांव के 20 किसान इस प्रोजेक्ट में रुचि ले रहे हैं। विज्ञानी उनको रसायन मुक्त खेती के लिए लगातार प्रेरित कर रहे हैं। किसानों ने अब इसका प्रयोग शुरू कर दिया है। क्या है शून्य बजट खेती

कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज कुमार सिंह ने बताया कि वर्तमान समय में कम लागत में मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखते हुए सरल व ग्लोबल वार्मिंग (पृथ्वी के बढ़ते तापमान) का मुकाबला करने वाली जीरो बजट प्राकृतिक खेती को अपनाया जाए। जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर व गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर व गौमूत्र से किसान 30 एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर व मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत व जामन बीजामृत बनाकर इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार किया जा सकता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जाए। बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में करें। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। फसलों की सिचाई के लिए पानी भी मौजूदा खेती-बारी की तुलना में करीब 10 प्रतिशत ही खर्च होगा। गाय से प्राप्त हफ्तेभर के गोबर व गौमूत्र से निर्मित घोल का खेत में छिड़काव खाद का काम करता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति पर विपरीत प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। वहीं, दूसरी ओर उत्पादन लागत लगभग शून्य होगी। बताया कि नमांमि गंगे योजना के ग्राम स्तरीय कर्मचारी धर्मेंद्र व मेंहदी हसन की देखरेख में मूरतगंज ब्लाक के ताज मल्लाहन, पल्हाना, बरई सलेमपुर, उमरछा व शोभना बसेढ़ी के किसान शून्य बजट आधारित खेती कर रहे हैं।


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