बारिश के जल संरक्षण की मिसाल है बूढ़ी गंगा, बढ़ रहा भूगर्भ जलस्तर
कासगंज संवाद सहयोगी धरती को कोख में पानी बढ़ाने के लिए प्रशासन द्वारा दो साल पहले किए गए प्रयास ने काफी हद तक सफलता हासिल की है।
कासगंज, संवाद सहयोगी : धरती को कोख में पानी बढ़ाने के लिए प्रशासन द्वारा दो साल पहले किए गए प्रयास ने काफी हद तक सफलता हासिल की है। सोरों से लेकर पटियाली तक इसका जीर्णोद्धार दो साल पहले हुआ। पिछले साल भी बारिश का पानी यहां ठहरा। इस साल भी बारिश होगी तो यह जल स्त्रोत भूगर्भ जल का स्तर बढ़ाएगा।
बूढ़ी गंगा प्राकृतिक जल स्त्रोत है। वर्षों पहले बढ़ी गंगा नदी अस्तित्व खोने लगी। यहां से पानी की धार दूसरे रास्ते की ओर मुड़ गई। फिर बूढ़ी गंगा में झाड़ियां उग आईं। वर्ष 2004 में पटियाली क्षेत्र में बूढ़ी गंगा में सफाई का कार्य हुआ, लेकिन बहुत कम दूरी तक। दो साल पहले डीएम सीपी सिंह ने बूढ़ी गंगा के जीर्णोद्धार की कार्य योजना तैयार की। उद्देश्य था कि बारिश का पानी इसमें सोरों से पटियाली तक भरेगा और भूगर्भ जल का स्तर सुधरेगा। हालांकि, इसकी धार भी कछला गंगा नदी से मिली है, लेकिन बाढ़ और बारिश के दौरान यहां पानी का ठहराव रहता है। तो और भी मिलेगी सफलता
बूढ़ी गंगा नदी में यदि पानी को डायवर्ट करने के लिए जगह-जगह तटबंध बनाकर रास्ते बना दिए जाएं तो यह पानी रास्तों के माध्यम से किसानों के खेतों तक पहुंच सकेगा। उससे दोहरा लाभ होगा। एक तो नदी से खेतों तक बने रास्तों में पानी ठहरेगा और खेतों की भी सिचाई हो सकेगी। आंकड़ों की नजर से
- 70 गांवों के समीप से होकर गुजरती है बूढ़ी गंगा
- 120 किलोमीटर लंबी है बूढ़ी गंगा नदी दो साह पहले डीएम के प्रयासों के बाद बूढ़ी गंगा का जीर्णोद्धार हुआ। यह प्राकृतिक जल स्त्रोत है। जल संरक्षण की दिशा में यह बड़ी उपलब्धि है।
- अरुण कुमार, अधिशासी अभियंता सिचाई विभाग