अपने ही गांव में पराया महसूस कर रहे प्रवासी
अपने ही गांव में पराया महसूस कर रहे प्रवासी
दृश्य-एक
झींझक के सुरेश अहमदाबाद से 10 मई को आए थे। क्वारंटाइन अवधि बीतने के बाद कस्बा पहुंचे तो लोग उनसे बात करने से कतरा रहे हैं। वह कहते हैं कि इस तरह के बर्ताव से काफी पीड़ा होती है। जैसे गांव आकर कोई पाप कर दिया हो।
दृश्य-दो
सूरत से गांव मंगलपुर लौटे नौशाद भी क्वारंटाइन में रह चुके हैं। बावजूद इसके गांव के लोग उन्हें घर नहीं जाने दे रहे हैं। वह तीन लोगों के साथ नलकूप में रहते हैं। दिन भर बाग में टहलकर समय बिता रहे हैं। घर से खाना आ जाता है।
दृश्य-तीन
रसूलाबाद के सिकंदरपुर में 30 वर्षीय संदीप ने 24 मई को फांसी लगा खुदकशी कर ली थी। स्वजनों का कहना है कि पत्नी व बच्चे के साथ सूरत से लौटने पर होम क्वारंटाइन रहा। बावजूद इसके लोग उससे कतराते थे। इसी वजह से उसने जान दे दी।
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जागरण संवाददाता, कानपुर देहात: लॉकडाउन के दौरान सैकड़ों किलोमीटर दूरी तय कर अपने गांव पहुंचने के बाद भी प्रवासी कामगारों के लिए मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। मानों उनके लिए अपनी देहरी अभी भी बहुत दूर हो। अपने ही उनको शक की नजर से देख रहे हैं। क्वारंटाइन अवधि बिताने के बाद भी गांव के लोग ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जैसे कोई पाप करके लौटे हों। यह हालात किसी एक गांव के नहीं, बल्कि हर उस गांव के हैं जहां कोरोना संकट के चलते प्रवासी कामगार वापस आए हैं। जिले में अब तक नौ हजार प्रवासी कामगार लौटकर आए हैं, वहीं करीब 10 हजार और कामगारों के आने की संभावना है।