ग्रामीण अंचलों में गुम हो रहा टेसू झुंझियां का अस्तित्व
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : महाभारत काल की टेसू झुंझियां का अस्तित्व आधुनिकता के द
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : महाभारत काल की टेसू झुंझियां का अस्तित्व आधुनिकता के दौर में खत्म होता जा रहा है। एक समय था जब दशहरा आते ही गांवों में टेसू झुंझियां के विवाह की तैयारी शुरू हो जाती थी। गांवों में शरद पूर्णिमा की रात टेसू झुंझियां की बरात निकलने के बाद सहालग की शुरूआत होती है। टेसू व झुंझियां के साथ बगुल बगुल तुम कहां चले व मेरी झुंझियां का रच्यो है, विवाह के गीत अब बहुत कम ही सुनाई पड़ते हैं।
एक दशक पूर्व तक दशहरे के मौके पर गली मोहल्लों में बगुल बगुल तुम कहां चले के स्वर सुनाई देने लगते थे। लेकिन मौजूदा दौर में टेसू झुंझियां के विवाह की परंपरा विलुप्त होती जा रही है। शहरी क्षेत्रों में तो इन गीतों की गूंज पूरी तरह बंद हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी परंपरा मंद पड़ती जा रही है। अब चु¨नदा गांवों में ही इस परंपरा का निर्वहन हो रहा है। किशोर व किशोरियां की टोलियां टेसू झुंझियां के साथ गांवों की गलियों में शाम ढलते ही निकल पड़ते थे। घर घर जाकर यह टोलियां मेरी झुंझियां का रच्यो है ब्याह, टेसू गए बनारस, टेसू अटर करें, टेसू मटर करैं, टेसू लहीं कै टरें के गीतों को सुनाकर शरद पूर्णिमा को होने वाले टेसू झुंझियां के विवाह के लिए धन संग्रह का काम शुरू हो जाता था। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में यह परंपरा विलुप्त होती जा रही है। हालांकि भुगनियांपुर अकबरपुर, कटरा , सरगांव बुजर्ग डेरापुर, चिलौली, झींझक ब्लाक के बनीपारा अजई पुरवा, रसूलाबाद, विजईपुर,क¨हजरी, असालतगंज, लालू,जोत, उसरी, भारामऊ , कठारा, झींझक ब्लाक के मुडेरा मंगलपुर, मिडाकुआं , संदलपुर, सुरासी, राजपुर, शाहजहांपुर , बिझौना आदि गांवों में अभी भी इस परंपरा को किशोर जीवंत किए हैं। दशहरा मेले में आए ग्रामीण क्षेत्र के किशोरों ने गुरुवार को टेसू की मूर्तियों की खरीदारी की। अकबरपुर के मेले में टेसू की मूर्तियां व झुंझियां की दुकान लगाए अकबरपुर के छेदा लाल प्रजापति व उनकी पुत्री प्रतिमा ने बताया कि उनके पास हाथी सवार टेसू की मूर्ति 150 से 200 रुपये, घोड़े वाले टेसू की मूर्ति 40 से 50 रुपये व बंदूक वाले टेसू की मूर्ति 30 से 60 रुपये में उपलब्ध है। वहीं झुंझिया का सेट 30 रुपये का है। रूरा के पं.सूबेदार शास्त्री व पं. राम औतार दीक्षित ने बताया कि टेसू व झुंझियां महाभारत कालीन चरित्रों के प्रतीक हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र बरबरीक महान शक्तिशाली योद्धा था। महाभारत का युद्ध देखने के लिए आते समय राक्षस पुत्री झुंझियां से उसे प्रेम हो गया और उसने युद्ध के बाद वापस आने पर विवाह करने का वचन दे दिया। यहां आने के बाद मां को दिया वचन निभाने के लिए उसने पराजित होने वाले पक्ष का साथ देकर युद्ध करने की घोषणा कर दी। इस पर भगवान कृष्ण ने उसका सिर काट दिया था। तब से टेसू झुंझियां की परंपरा चल रही है।