कौमी एकता के गीत गाती सब्दलशाह बाबा की मजार
बलियापुर गांव के सब्दल सिंह यादव ने मुस्लिम परिवारों को बचाते-बचाते दे दी थी जान - मुस्लिमों ने शहादत स्थल पर ही बनाई मजार हर साल लगता है एक माह का मेला - यादव परिवार का ही कोई व्यक्ति चादरपोशी करके करता है मेला का शुभारंभ
अजय दीक्षित, कानपुर देहात:
आज मुझे फिर इस बात का गुमान हो, मस्जिद में भजन, मंदिरों में अ•ान हो।
खून का रंग फिर एक जैसा हो, तुम मनाओ दिवाली, मेरे घर में रमजान हो।।
इन पंक्तियों को अपनाए संदलपुर कस्बे की सब्दलशाह बाबा की मजार हिदू-मुस्लिम एकता का गीत गाती है। यहां मुस्लिम कलमा पढ़ते हैं तो हिदू प्रसाद चढ़ाते हैं। हर वर्ष उनके उर्स पर यहां एक माह का मेला लगता है। झींझक-सिकंदरा रोड के पश्चिम दिशा में मेला परिसर करीब तीन बीघा में है। मार्गशीर्ष (अगहन) मास के आखिरी जुमे के दिन बलियापुर के यादव परिवार का ही कोई सदस्य चादरपोशी कर मेले का शुभारंभ करता है।
यहां रहने वाले करीब 75 वर्षीय बुजुर्ग अशोक कुमार बताते हैं कि बताते हैं कि मुगलकाल में हिदू-मुस्लिम संघर्ष के दौरान झींझक के बलियापुर गांव के सब्दल सिंह यादव ने मुस्लिम परिवारों के डेढ़ सौ बुजुर्गो, बच्चों और महिलाओं को बचाते हुए जान दे दी। उनका बलिदान हिदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बना तो शहादत स्थल पर मुस्लिमों ने मजार बनाई और इबादत शुरू कर दी। सब्दल बाबा के नाम पर ही कस्बे का नामकरण होते-होते संदलपुर हो गया था।
एकता की गांठ और मजबूत होती गई
कस्बे के बुजुर्ग 70 वर्षीय बज्जन मियां कहते हैं कि मजार कब बनी, इसका सटीक अंदाजा नहीं है। हां, यहां दोनों समुदायों के सहयोग से होने वाला उर्स व मेला करीब डेढ़ सौ साल पुराना बताते हैं। समय के साथ एकता की गांठ और मजबूत होती गई।
कव्वाली और रासलीला साथ-साथ
यहां एक तरफ मजार है तो दूसरे छोर पर दो बीघा का तालाब। तालाब को पांच साल पहले पुरातत्व विभाग ने संरक्षण में लेकर जीर्णोंद्धार कराया था। मेला परिसर में एक दिन उर्स होता है और उस दिन कव्वाली होती है फिर दस दिन तक वृंदावन से आई मंडली रासलीला करती है।
छह दिसंबर से शुरू होगा मेला
हिदू मुस्लिम एकता मेला कमेटी संदलपुर के अध्यक्ष जलीश अहमद, उपाध्यक्ष गया प्रसाद ने बताया कि इस साल मेला छह दिसंबर से शुरू होगा। मेला का शुभारंभ सब्दलशाह बाबा के परिवार का ही कोई एक सदस्य चादरपोशी करके करता है।