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आपातकाल में जुल्म की दास्तां याद कर सिहर उठता तन-मन

अंकित त्रिपाठी कानपुर देहात 46 वर्ष पूर्व के उस लम्हे का भूला नहीं जा सकता है। रात का वा

By JagranEdited By: Published: Fri, 25 Jun 2021 10:10 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jun 2021 10:10 PM (IST)
आपातकाल में जुल्म की दास्तां याद कर सिहर उठता तन-मन
आपातकाल में जुल्म की दास्तां याद कर सिहर उठता तन-मन

अंकित त्रिपाठी, कानपुर देहात

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46 वर्ष पूर्व के उस लम्हे का भूला नहीं जा सकता है। रात का वाकया था और अचानक दरवाजे पर पुलिस ने दस्तक दी। कुछ समझ पाते, लेकिन उससे पूर्व ही सिपाहियों ने गिरफ्तारी का आदेश दे दिया। कुछ बोलने का प्रयास कर ही रहे थे, लेकिन तब तक दूसरे सिपाही ने हथकड़ी डालकर ले चलने का आदेश दे दिया। यह कहना है 1975 में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गए अकबरपुर कस्बा निवासी बागीश चंद्र मिश्रा का। वे बताते हैं कि उस लम्हें को याद कर आज भी तन ही नहीं मन भी सिहर जाता है। यह केवल बागीश चंद्र मिश्रा ही नहीं बल्कि आपातकाल के दौरान गिरफ्तार हुए जनपद के अन्य लोगों का ऐसा ही दर्द है।

26 जून 1975 को तत्कालीन सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। 21 मार्च 1977 तक देशवासियों ने आपातकाल के दंश को झेला। आपातकाल में पुलिस की ज्यादतियों से जिले के भी कई लोग शिकार हुए। 46 वर्ष पूर्व के आपातकाल की पीड़ा से गुजरे जिले के कई लोगों ने अपना दर्द बयां किया है। आरएसएस व जनसंघ से जुड़े अकबरपुर, मुंगीसापुर, रूरा सहित अन्य कस्बा व ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े वंशलाल कटियार, शिव शंकर मिश्रा, राज कुमार चतुर्वेदी, रामदत्त पांडेय सहित अन्य लोगों ने बताया कि आपातकाल में पुलिस जुल्म कर रही थी। सरकार के निर्देश ऐसे थे कि जनसंघ व आरएसएस से जुड़े लोगों को पुलिस निशाना बना रही थी।

केस - 1

अकबरपुर कस्बा निवासी बागीश चंद्र मिश्रा बताते हैं कि 26 जून 1975 की रात को अचानक पुलिस के तीन से चार सिपाही दरवाजे आ गए। उस वक्त घर के बाहर ही मौजूद था। कुछ समझ पाता तक पुलिस के जवान उनके पास खड़े हो गए और गिरफ्तार करने की बात कहने लगे। कुछ समझ नहीं पाया तब तक उन्होंने हथकड़ी डालने का आदेश दे दिया। वह बताते हैं कि पुलिस के रवैये को देख शर्त रख दी कि हथकड़ी आप लोग बेशक डाल दें, लेकिन बस स्टाप तक पैदल ले चलें। इस पर उन्होंने आपस में मंत्रणा की और हथकड़ी डालने का विचार बदल दिया। जेल पहुंचने के बाद भी कई यातनाएं झेलनी पड़ी। कानपुर जेल में पानी जैसी दाल व कद्दू की रसीली सब्जी परोसी जाती थी, लेकिन देशभक्ति का जुनून कुछ ऐसा था कि सब कुछ हंसते हुए झेल गए, लेकिन आज उस लम्हे को यादकर तन ही नहीं मन तक सिहर उठता है।

केस - 2

अकबरपुर कस्बा निवासी प्रमोद मिश्रा बताते हैं कि पुरानी तहसील के सामने कोतवाली के पास ही मकान था। स्वयं तो गिरफ्तार नहीं हुए, लेकिन आपातकाल के दौरान के दृश्य जरूर याद हैं। पुलिस लोगों को राह चलते पकड़ लेती थी। लोगों की उम्र या व्यवसाय से कोई मतलब नहीं बस गिरफ्तार कर लिया जाता था। कोतवाली के सामने ही घर होने के कारण जिले से गिरफ्तार होकर आने वाले अधिकांश लोग यहीं आते थे, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।


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