बैलगाड़ी का निकलता था काफिला
जागरण संवाददाता कानपुर देहात बैलगाड़ी रखना और बैल पालना शौक ही नहीं रईसी मानी जाती
जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : बैलगाड़ी रखना और बैल पालना शौक ही नहीं रईसी मानी जाती थी। घर के सामने ऊंची लाठ की बैलों की जोड़ी बंधी हो तो एक शान का परिचायक होती थी। चुनाव के समय अपने पंसदीदा नेता के पक्ष में लोग बैलगाड़ी से जुलूस निकालते थे। बैलों को खूब सजाकर, गाड़ियों में बिस्तर लगाकर रवानगी होती थी।
पहले साधन संसाधन जरूर कम थे लेकिन लोगों को सोच बहुच ऊंची थी। आजादी के बाद जब देश में चुनाव हुए तो उत्साह का माहौल था। गांव वाले नेता के पक्ष में बैलगाड़ी का काफिला निकालते थे। उम्मीदवार दरवाजे पर पहुंचते तो उन्हें बतासा, गुड़, राब आदि का शर्बत पिलाकर आवभगत करते थे। आज भी याद है, पहले चुनाव में गांव से पचास बैलगाड़ियों का एक जुलूस यहां से कानपुर नगर के किनारे, रनियां, बारा, सहित कई किनारे के गांवों में जुलूस निकाला गया था। गाड़ियों पर बच्चे भी हल्ला मचाते हुए बैठे चलते थे। अब तो नेता तो लक्जरी वाहन में चलते हैं।
- 90 वर्षीय रवींद्र प्रसाद पांडेय, वार्ड 14 नेहरू नगर, अकबरपुर