Move to Jagran APP

बैलगाड़ी का निकलता था काफिला

जागरण संवाददाता कानपुर देहात बैलगाड़ी रखना और बैल पालना शौक ही नहीं रईसी मानी जाती

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 12:15 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 06:17 AM (IST)
बैलगाड़ी का निकलता था काफिला
बैलगाड़ी का निकलता था काफिला

जागरण संवाददाता, कानपुर देहात : बैलगाड़ी रखना और बैल पालना शौक ही नहीं रईसी मानी जाती थी। घर के सामने ऊंची लाठ की बैलों की जोड़ी बंधी हो तो एक शान का परिचायक होती थी। चुनाव के समय अपने पंसदीदा नेता के पक्ष में लोग बैलगाड़ी से जुलूस निकालते थे। बैलों को खूब सजाकर, गाड़ियों में बिस्तर लगाकर रवानगी होती थी।

loksabha election banner

पहले साधन संसाधन जरूर कम थे लेकिन लोगों को सोच बहुच ऊंची थी। आजादी के बाद जब देश में चुनाव हुए तो उत्साह का माहौल था। गांव वाले नेता के पक्ष में बैलगाड़ी का काफिला निकालते थे। उम्मीदवार दरवाजे पर पहुंचते तो उन्हें बतासा, गुड़, राब आदि का शर्बत पिलाकर आवभगत करते थे। आज भी याद है, पहले चुनाव में गांव से पचास बैलगाड़ियों का एक जुलूस यहां से कानपुर नगर के किनारे, रनियां, बारा, सहित कई किनारे के गांवों में जुलूस निकाला गया था। गाड़ियों पर बच्चे भी हल्ला मचाते हुए बैठे चलते थे। अब तो नेता तो लक्जरी वाहन में चलते हैं।

- 90 वर्षीय रवींद्र प्रसाद पांडेय, वार्ड 14 नेहरू नगर, अकबरपुर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.