कम उम्र में आ रहा हार्ट अटैक, डायबिटीज है तो दिल की नियमित कराएं जांच
एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. ऋषि शुक्ला कहते हैं कि देश-विदेश में हुए शोधों में प्रमाणित हो चुका है प्रत्येक 100 डायबिटीज पीडि़तों में 67 मरीजों में दिल की बीमारी पाई गई है।
कानपुर(जागरण संवाददाता)। भारतीयों में डायबिटीज एवं कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (सीवीडी) का खतरा अधिक रहता है, क्योंकि हमारे शरीर की बनावट ही ऐसी है। डायबिटीज पीडि़तों में सीवीडी सर्वाधिक होता है। इसकी वजह खानपान, जीवनशैली में बदलाव, धूमपान, शराब का सेवन और शारीरिक श्रम से दूरी है। ये समस्या बीमारी को तेजी से बढ़ा रही है, इसलिए कम उम्र में हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं, जो चिंताजनक है।
वरिष्ठ एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. ऋषि शुक्ला एवं हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित कुमार का कहना है कि अगर आपको डायबिटीज है तो दिल की नियमित जांच कराते रहें। देश-विदेश में हुए विभिन्न शोधों में यह प्रमाणित हो चुका है प्रत्येक 100 डायबिटीज (मधुमेह) पीडि़तों में से 67 मरीजों में दिल की बीमारी पाई गई। अगर इन बीमारियों से बचना है तो अभी से खानपान एवं जीवन शैली में सुधार शुरू कर दें।
शुगर की कुछ दवाएं दिल की बीमारी में भी कारगर
एक प्रेस वार्ता में उन्होंने बताया कि विश्व हृदय रोग दिवस से पूर्व आमजन को जागरूक करना जरूरी है। वह कहते हैं कि कम उम्र में हार्ट अटैक चिंताजनक है। इसमें से 25 फीसद मामले 40 वर्ष से कम उम्र के हैं। अगर ध्यान दिया जाए तो दिल की बीमारियों के 80 फीसद प्रीमेच्योर कारणों को रोका जा सकता है। कुछ नई दवाएं आ गई हैं। इनसे शुगर कम होती है। इन दवाओं का अतिरिक्त फायदा यह है कि दिल की बीमारी पर भी कारगर हैं।
भ्रांतियों से बचें और रखें इनका ध्यान
1- डायबिटीज एवं हार्ट की दवाएं कभी बंद नहीं होती हैं। इसलिए मरीज दवाएं कभी नहीं छोड़ें। इन दवाओं से किडनी और लिवर पर कोई असर नहीं पड़ता है।
2- संयमित खानपान, शारीरिक श्रम या सक्रियता बनाए रहें, तनाव से मुक्ति, जीवन शैली में बदलाव, 40 मिनट रोज व्यायाम जरूरी, सप्ताह में एक दिन स्वयं कम-तेल मसाले का भोजन बनाएं।
3- चालीस की उम्र के बाद शुगर की जांच, लिपिड प्रोफाइल की जांच, किडनी फंक्शन टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट, टीएमटी जांच, रेटिना की जांच जरूर कराएं।
खाने में तलाशे जाएंगे कैंसर के कारक
एचबीटीयू के विशेषज्ञ और देश की नामी कंपनियों के वैज्ञानिक खाने में कैंसर के कारकों की तलाश करेंगे। तेल, वनस्पति घी, फैट शरीर को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं? इनकी पड़ताल की जाएगी। यह निर्णय एडवांस एनालाईटिकल टेक्निक पर आयोजित कार्यशाला में लिया गया। इसमें कंपनी के विशेषज्ञों ने फैकल्टी, छात्रों को महत्वपूर्ण जानकारियां दी। उन्हें लैबोरेट्री और अत्याधुनिक उपकरणों को किस तरह से सुरक्षात्मक ढंग से प्रयोग किया जाए, बताया गया।
कार्यशाला ऑयल टेक्नोलॉजी और प्लास्टिक टेक्नोलॉजी विभाग की ओर से हुई। कंपनी की ओर से डॉ. पार्थो सेन ने बताया कि खाने के तेल को कई बार खौलाने से ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया होती है। इससे पॉलीमर बन जाते हैं, जो कि शरीर के लिए घातक हैं। ऑयल टेक्नोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रो. आरके त्रिवेदी के मुताबिक ऑयल एंड पेंट टेक्नोलॉजी के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को कई उपकरण मिलेंगे। उनके बारे में कार्यशाला में जानकारी दी जाएगी।