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विश्व मूक बधिर दिवस : दिव्यांगता को शिकस्त देकर खुद पर किया भरोसा, अमान ने बनाई अलग पहचान

कानपुर में अमान में बोलने और सुनने क्षमता नहीं होने के बाद भी उनकी काबिलियत का शोर चारो तरफ गूंज रहा है। उन्होंने फ्रांस में हुई वर्ल्ड डेफ जूडो में भारतीय टीम से खेलते हुए सातवां स्थान हासिल किया है।

By JagranEdited By: Abhishek AgnihotriPublished: Mon, 26 Sep 2022 11:53 AM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2022 11:53 AM (IST)
विश्व मूक बधिर दिवस : दिव्यांगता को शिकस्त देकर खुद पर किया भरोसा, अमान ने बनाई अलग पहचान
कानपुर के मूक-बधिर अमान ने अलग पहचान बनाई है।

कानपुर, [अंकुश शुक्ल]। जो शोर मचाते हैं भीड़ में वो भीड़ ही बनकर रह जाते हैं, वहीं, पाते हैं जिंदगी में कामयाबी जो खामोशी से अपना काम कर जाते हैं... शायद इन लाइनों को अपने जीवन में सफलता का आधार बनाकर ही मूकबधिर अमान अपनी काबिलियत के शोर से देशभर में पहचान बना रहे हैं।

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बचपन से ही बोलने और सुनने की क्षमता खो चुके अमान कोच के प्रशिक्षण से दिव्यांगता को अभिशाप समझने वालों को सामने आत्मनिर्भरता और सशक्तीकरण का बेहतर उदाहरण पेश कर रहे हैं। कई राष्ट्रीय और प्रदेशस्तरीय जूडो में स्वर्णिम छाप छोड़ चुके हैं। हाल में फ्रांस में संपन्न हुई वर्ल्ड डेफ जूडो प्रतियोगिता में अमान ने सातवां स्थान हासिल कर देश का गौरव बढ़ाया। अब वे एक बार फिर राष्ट्रीय जूडो में स्वर्ण पदक जीतने के लिए कड़ा अभ्यास कर रहे हैं।

कोच राजेश भारद्वाज ने बताया कि अमान ने जज्बे से साबित कर दिखाया कि वे दिव्यांग है पर किसी सहानुभूति के मोहताज नहीं। रोशन नगर रावतपुर गांव निवासी इकबाल अहमद व तबस्सुम खान के मूकबधिर बेटे 19 वर्षीय अमान शुरुआती दिनों में क्रिकेटर बनाना चाहते थे। बिहार में क्रिकेट मैच के दौरान स्टेडियम में जूडो खेलते हुए खिलाड़ियों को देखकर अमान ने करियर को जूडो की तरफ मोड़ा।

अमान की उपलब्धियां

- लखनऊ में वर्ष 2018 में हुए छठे नेशनल डेफ जूडो में रजत पदक जीता।

- गोरखपुर में वर्ष 2019 में हुए सातवें नेशनल डेफ जूडो में स्वर्ण पदक पाया।

- वर्ष 2019 में चेन्नई में खेले गए सीनियर नेशनल डेफ जूडो में रजत पदक जीता।

- पंजाब में वर्ष 2020 में हुए नेशनल डेफ जूडो में स्वर्ण जीता।

- 2021 में लखनऊ में नेशनल डेफ जूडो में स्वर्ण पदक जीता।

संकेत देकर पुतले पर कराया अभ्यास

कोच राजेश भारद्वाज ने बताया कि बोल और सुन नहीं पाने के कारण अमान को प्रशिक्षित करने के लिए पुतले का सहारा लिया। अर्मापुर के एसएएफ मैदान में हर दिन कैसे प्रतिद्वंदी को पकड़ना चाहिए और किस तकनीक का प्रयोग कर पटखनी देनी चाहिए। संकेत की भाषा से अमान को खेल की बारीकियों से परिचित कराया। अमान की ताकत और तकनीक सीखने की क्षमता उसे अन्य खिलाड़ियों से बेहतर बनाती हैं।


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