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रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि

कलश स्थापना कर श्रद्धालुओं ने किया व्रत का शुभारंभ, मंदिरों में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़, गूंजा जयकारा

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Mar 2018 05:08 PM (IST)Updated: Mon, 19 Mar 2018 05:08 PM (IST)
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि

जागरण संवाददाता, कानपुर : 'नतेभ्य: सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥' और 'सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ '

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आदि मंत्रों के साथ रविवार को नवरात्र के प्रथम दिन भक्तों ने मां जगदम्बा का पूजन -अर्चन किया। भक्तों ने घरों में कलश की स्थापना कर व्रत का शुभारंभ किया। मंदिरों में देर रात तक मां का जयकारा गूंजता रहा। लाखों भक्तों ने दर्शन किया और भगवती को पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य अर्पित कर सुख समृद्धि और यश वैभव व कीर्ति में वृद्धि की कामना की। श्रद्धालुओं की भीड़ को देख ऐसा लगा मानों बारह देवी या तपेश्वरी माता का मंदिर नहीं बल्कि विंध्याचल के मां विंध्यवासिनी धाम हो।

नवरात्र के प्रथम दिन भगवती के दर्शन को श्रद्धालुओं की भीड़ शनिवार की रात में ही मंदिरों के बाहर उमड़ पड़ी। श्रद्धालु नंगे पांव जगदम्बा के दर्शन पूजन के लिए मंदिरों की ओर चल पड़े। बड़ों के साथ छोटे बच्चे भी मां का दर्शन कर जीवन धन्य कर लेना चाह रहे थे। हर जुबां पर 'जय माता दी' की गूंज थी। रात्रि में मंदिरों के पट खुले तो मां दुर्गा के जयकारे से वातारण गूंज उठा। श्रद्धालुओं ने फूलों की वर्षा कर मां के दर्शन किये और सुख समृद्धि की कामना की। घरों में सुबह वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कलश स्थापना कर व्रत का लोगों ने शुभारंभ किया। काली मठिया मंदिर, जंगली देवी मंदिर, बुद्धा देवी मंदिर, उजियारी देवी मंदिर, आसा माता मंदिर में मंगला आरती हुई शुरू हुई तो शंख और घंटे की ध्वनि वातावरण में गूंज उठी। श्रद्धालुओं ने नारियल चुनरी, विविध प्रकार के पुष्प अर्पित कर मां से सुखी जीवन की कामना की।

मां को लगाया सब्जियों का भोग

तपेश्वरी माता मंदिर और बुद्धा देवी मंदिर में भक्तों ने भगवती को हरी सब्जियों का भोग लगाया। इन मंदिरों के आसपास तो लौकी, तरोई, धनिया, भिंडी आदि सब्जियों की बिक्री हो रही थी। लोग सब्जियों की डलिया मां को अर्पित करते रहे।

कामना पूरी करने को बंद किया ताला

काली बाड़ी मंदिर में श्रद्धालुओं ने मनोकामना पूरी करने के लिए ताला बंद किया। एक दो नहीं बल्कि सौ से अधिक ताले बांधे गये। साथ ही नारियल की बलि भी दी गई।


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