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10th Jagran Film Festival : बुधिया की मौत और घीसू की बेबसी देख छलकी आंखें Kanpur News

जागरण फिल्म फेस्टिवल में फिल्म क्या होगा के प्रीमियर में दर्शकों ने देखी एक गांव की कथा।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 27 Jul 2019 01:54 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jul 2019 01:54 PM (IST)
10th Jagran Film Festival : बुधिया की मौत और घीसू की बेबसी देख छलकी आंखें Kanpur News
10th Jagran Film Festival : बुधिया की मौत और घीसू की बेबसी देख छलकी आंखें Kanpur News

कानपुर, जेएनएन। एक बार जाड़े में मैं अपने मित्र के गांव गया, तभी देर रात वहां एक मजदूर आया और बोला कि 'बाबूजी थोड़ी सी अरहर की दाल दे दो'। मैंने पूछा इतनी रात में दाल का क्या करोगे, तो उसने बताया कि बिटिया को बुखार है। अरहर की दाल पिला देंगे तो उसके बदन को थोड़ी गर्माहट मिलेगी। ये सुनकर मैंने सोचा कि आज भी गांवों में ऐसा होता है क्या? वहीं से मैंने अपनी फिल्म की कहानी का प्लॉट उठाया। फिल्म 'क्या होगा' की स्टोरी के बारे में निर्देशक ज्ञानेंद्र दुबे ने जागरण फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत में यह बात कही।

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उनकी यह बात सुनकर एकबारगी दर्शक भी सोच में पड़ गए कि क्या सचमुच देश में गरीबी का यह रूप अभी तक जिंदा है, लेकिन 15 मिनट बाद पर्दे पर फिल्म 'क्या होगा' से दिखाया गया कि जब भूख पेट में आग लगाती है तो आदमी किस कदर मजबूर हो जाता है। घीसू बेबस रह जाता है और उसकी बहू बुधिया भूख और दर्द से तड़प-तड़प कर मर जाती है। वह कफन के पैसों के लिए लोगों के सामने हाथ फैलाता है। जब जमींदार अंतिम संस्कार के लिए पैसे देता है तो घीसू कफन के बदले उस पैसे से पहले अपनी पेट की आग बुझाता है। यह दृश्य देख दर्शकों की आंखें भी नम हो गईं। वे इस सोच में पड़ गए कि आखिर इसका अंत कब होगा। फिल्म भले ही मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'कफन' पर आधारित थी, लेकिन उसकी भाषा, परिवेश समेत हर पहलू में कनपुरिया झलक साफ तौर पर दिखाई दे रही थी।

सार्थक सिनेमा की बेहतरीन फिल्में समेटे जागरण फिल्म फेस्टिवल की शानदार शुरुआत कानपुर में ही बनी फिल्म 'क्या होगा' से हुई। रेवथ्री मॉल के कार्निवाल सिनेमा में पहले दिन पहले शो में ही लोगों ने तीन दिनी जेएफएफ को हाथोंहाथ लिया। दर्शकों की दीवानगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहला शो ही हाउसफुल था और बाहर टिकट पाने के चाहत में लोगों की भीड़ लगी थी। मौसम भी खुशगवार था। फिल्म शुरू होते ही हॉल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा, खचाखच भरा हॉल गौरवान्वित था कानपुर के कलाकारों की कला से, कैलाश वाजपेयी के शानदार अभिनय, उम्दा सिनेमेटोग्राफी, अत्यंत उत्तम निर्देशन और सबसे शानदार कनपुरिया भाषा से।

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