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उन्नाव की किशोरी काे मिला न्याय, हत्या के आरोप में एक को आजीवन कारावास और 50 हजार जुर्माने की सजा

पुरवा कोतवाली के सैदवाड़ा मोहल्ला निवासी यासमीन ने हाईकोर्ट के आदेश पर 30 दिसंबर 2013 को एक मुकदमा दर्ज कराया। जिसमें उन्होंने बताया कि सात सितंबर 13 को वो पड़ोस स्थित मायके गई थी। जबकि छोटा पुत्र साहिल स्कूल गया था और पुत्री नेहा व पुत्र राशिद घर पर थे।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Thu, 12 Aug 2021 07:57 PM (IST)Updated: Thu, 12 Aug 2021 07:57 PM (IST)
कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश की प्रतीकात्मक फोटो।

उन्नाव, जेएनएन। पुरवा कोतवाली के मोहल्ला सैदवाड़ा सात सितंबर 2013 को संदिग्ध हालात में हुई किशोरी की मौत के मामले में अपर जिला एवं सत्र न्यायालय तृतीय ने फैसला सुनाते हुए एक आरोपित को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। जबकि, मामले में अन्य तीन आरोपित पहले ही सीबीसीआइडी की जांच में बरी कर दिये गये। न्यायाधीश ने फैसले में अलग-अलग धाराओं पर सजा भी सुनाई है और कुल 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।   

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यह है पूरा मामला: पुरवा कोतवाली के सैदवाड़ा मोहल्ला निवासी यासमीन ने हाईकोर्ट के आदेश पर 30 दिसंबर 2013 को एक मुकदमा दर्ज कराया। जिसमें उन्होंने बताया कि सात सितंबर 13 को वो पड़ोस स्थित मायके गई थी। जबकि, छोटा पुत्र साहिल स्कूल गया था और पुत्री नेहा व पुत्र राशिद घर पर थे। उसी समय दिन में दोपहर दो बजे पुरवा कोतवाली के मोहल्ला मशवानी निवासी दिलशाद उर्फ छोटू व इमरान खां निवासी जिंदवावाड़ी उसके घर आए और पुत्र राशिद को अपने साथ ले गये। इसके कुछ देर बाद दोनों फिर से उसके घर में जबरन घुस आये और जबरदस्ती उसकी पुत्री नेहा के साथ हाथापाई करते हुए जेवर व 20 हजार रुपये लूट लिये। इस बीच नेहा ने  उन्हें पहचान कर शोर मचाया तो उन लोगों ने उसके मुंह में कपड़ा ठूंस कर उसे जमकर मारापीटा और पेट्रोल को उस पर छिड़क कर आग लगा दी। चीख-पुकार के बीच पास पड़ोस के लोग पहुंचते उससे पहले ही दोनों वहां से भाग निकले। इधर सूचना पर यासमीन जब घर पहुंची तो बेटी का जला शव देख होश खो बैठी। इसी बीच वहां मौजूद नसीम खां व रईश हैदर ने शव को दफाने पर जोर दिया, जिसके बाद सभी के कहने पर उसने शव को दफन कर दिया। कुछ माह बाद जब यासमीन का पति अकरम जो विदेश में कारोबार के सिलसिले में गया था, वापस आया तो पत्नी आदि से बात करने के बाद माजरा समझा।  बेटी की हत्या का आरोप लगाते हुए उसने कोतवाली में तहरीर दी, लेकिन पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया। इस पर यासमीन ने हाईकोर्ट की शरण ली। जहां से मुकदमा दर्ज करने के साथ ही मामले की जांच सीबीसीआइडी से कराये जाने के निर्देश 30 दिसंबर 2013 को दिये गये। सीबीसीआइडी ने विवेचना में नामजद आरोपित इमरान, शीबू एवं रईश मामले में संलिप्त न पाते हुए उनका नाम चार्जशीट से बाहर कर दिया और दिलशाद को दोषी मानते हुए आरोपपत्र न्यायालय में पेश कर दिया। 

अदालत ने दिलशाद को माना जलाकर मार डालने का दोषी: मामले की सुनवाई अपर जिला सत्र न्यायाधीश तृतीय की कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। न्यायाधीश अल्पना सक्सेना ने मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन की तरफ से एडीजीसी-क्रिमिनल (फौजदारी) विनय दीक्षित आशु और सीबीसीआईडी के वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी वेद प्रकाश त्रिपाठी के तर्क व दलीलों को सुनने के बाद न्यायाधीश ने दिलशाद को दोषी करार दिया और उसे धारा 302 के तहत आजीवन सश्रम कारावास व 20 हजार रुपये अर्थदंड, धारा 326 (खतरनाक आयुधों या साधनों से गंभीर आघात पहुंचाना) के तहत 10 वर्ष की सजा और 10 हजार रुपये अर्थदंड, धारा 394 (लूट का प्रयत्न करने में किसी को चोट पहुंचाता है) के तहत 10 वर्ष की सजा और पांच हजार रुपये अर्थदंड, धारा 436 (गृह आदि को नष्ट करने में आग या विस्फोटक पदार्थ का प्रयोग करना।) के तहत सात वर्ष की सजा और सात हजार रुपये अर्थदंड, धारा 452 (बिना अनुमति घर में घुसना, चोट पहुंचाने के लिए हमले की तैयारी) के तहत चार वर्ष की सजा और तीन हजार रुपये अर्थदंड व धारा 201 (साक्ष्य मिटाना या अपराधी को बचाने के लिए झूठी जानकारी देना) के तहत पांच वर्ष की सजा और पांच हजार रुपये अर्थदंड लगाया है। 


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