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पितृ पक्ष शुरू होते ही बुंदेलखंड में मनाया जाने लगा महाबुलिया पर्व, जानिए बालिकाएं कैसे मनाती हैं यह त्येाहार

बुंदेलखंड की यह अनोखी परंपरा अब कुछ गांवों तक ही सीमित रह गई है। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में एक पखवारे तक पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। बुंदेलखंड के गांवों में बालिकाओं के द्वारा महाबुलिया सजा कर शाम को बालिकाएं विभिन्न प्रकार के फूल एकत्र किए जाते हैं।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 10:23 PM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 10:23 PM (IST)
गांव खड़ेही लोधन में महाबुलिया तैयार करतीं बालिकाएं।

हमीरपुर, जेएनएन। पितृ पक्ष के शुरू होते ही काटों पर फूल सजाकर महाबुलिया (कांटे व फूल का गुलदस्ता) पूजने का पर्व भी गांवों में शुरू हो गया है। इस परंपरा को बालिकाएं निभाती हैं और शाम के वक्त काटों से भरी फूल की झाड़ी को तालाबों में विसर्जित करती हैं। यह कार्यकम एक पखवाड़े तक चलता रहता है। इसके माध्यम से बालिकाएं भी अपने पूर्वजों का तर्पण करती हैं।

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 बुंदेलखंड की यह अनोखी परंपरा अब कुछ गांवों तक ही सीमित रह गई है। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में एक पखवाड़े तक पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। वहीं बुंदेलखंड के अधिकांश गांवों में बालिकाओं के द्वारा महाबुलिया सजा कर शाम को बालिकाएं विभिन्न प्रकार के फूल एकत्र करके घरों के दरवाजे पर गाय के गोबर से लीप कर आटे से चौक बनाती हैं। बीचोबीच एक कांटे की झाड़ी को रखकर उसमें अनेक प्रकार के फूल लगाकर उसे सजाया जाता है। इस दौरान महाबुलिया के गीत गाए जाते हैं। गीत गाते हुए गांव के तालाबों में ले जाकर रोजाना विसर्जित करती हैं। अंतिम दिन भगवान श्रीकृष्ण राधा का रूप बनाकर बालिकाएं तैयार होती हैं तथा गाजे-बाजे के साथ फिर तालाब या पास की नदियों में विसर्जित करने जाती हैं। गांव खड़ेही लोधन के पूर्व प्रधान राजाराम तिवारी व बीरेंद्र सिंह राजपूत ने बताया कि इस विषय में हमारे पूर्वज बताया करते थे कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भूले बिसरे का तर्पण किया गया था। जिसके बाद से पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र के गांवों महाबुलिया के रूप इसकी शुरुआत की थी।


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