हलाला पर कुरान की मान रहे लेकिन तीन तलाक़ पर कुरान की नहीं मान रहे उलमा
मुस्लिम महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए मोहकम-ए-शरीया खवातीन कोर्ट का गठन किया गया।
कानपुर (जेएनएन)। मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ और अधिकार दिलाने के लिए रविवार को मोहकम-ए-शरिया ख्वातीन कोर्ट का गठन किया गया। पटकापुर नवाब दूल्हा हाता में आल इंडिया सुन्नी उलमा कौंसिल और आल इंडिया मुस्लिम ख्वातीन बोर्ड ने गठन करते हुए कहा कि उलमा इस्लाम की सही तस्वीर पेश करें, ताकि भ्रम की स्थिति दूर हो।
महिला पर्सनल लॉ बोर्ड समर्थन
आल इंडिया मुस्लिम ख्वातीन पर्सनल लॉ बोर्ड की जिलाध्यक्ष फरजाना जब्बार ने शरई कोर्ट के गठन के दौरान पहुंचकर अपना समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि पीडि़त महिलाओं के साथ ख्वातीन बोर्ड हमेशा रहेगा।
शरई कोर्ट पहुंचे मामले
- हीरामन पुरवा की महिला ने शरई कोर्ट में लिखित शिकायत की है कि वह मायके में रह रही है। शौहर उसे घर नहीं ले जा रहे।
- फहीमाबाद की महिला ने अपने पति पर दहेज मांगने का आरोप लगाया है।
- केडीए जाजमऊ की महिला ने पति पर मारपीट और तलाक देने की धमकी का आरोप लगाया।
- एक महिला ने स्कूल चलाने वाली संस्था को प्रार्थना पत्र देकर आरोप लगाया है कि उसके पति को स्कूल की एक महिला ने अपने शिकंजे में फंसा रखा है। संस्था ने शरई कोर्ट से गुहार लगाई है ताकि पीडि़त पत्नी को इंसाफ मिल सके।
तीन माह में ठहर-ठहरकर तलाक का हुक्म
शरई कोर्ट का उद्घाटन करते हुए महिला शहरकाजी हिना जहीर ने कहा कि उलमा तीन तलाक के बारे में कुरआन में दिए गए नियम नहीं मान रहे। कहते हैं कि एक बार में तीन तलाक हो जाएगा जबकि कुरआन में तीन माह में ठहर-ठहरकर तलाक देने का हुक्म है। उसमें भी कई कठोर नियम है ताकि जल्दी कोई तलाक देने की हिम्मत नहीं जुटा सके। जब हलाला की बात आती है तो कुरआन का हवाला देते हुए उसको मानते हैं लेकिन तीन तलाक पर नहीं मानते। ये कैसा दोहरा मापदंड है। उन्होंने कहा कि पिता की जायदाद में बेटी का भी हिस्सा होता है। शहरकाजी मारिया अफजल, मुस्लिम महिला ख्वातीन बोर्ड की अध्यक्ष सैयदा तबस्सुम आदि ने विचार रखे।