तलवारबाजी के हुनर को धार दे रहे हैं भाई-बहन, राष्ट्रीय फलक पर पहुंचाया कानपुर का नाम
कानपुर के तलवारबाज सतेंद्र और अंकित अब युवाओं को मुफ्त प्रशिक्षण देकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में जुटे हैं।
कानपुर, [अंकुश शुक्ल]। इतिहास गवाह है कि झांसी की रानी की तलवारबाजी ने अंग्रेजों तक के छक्के छुड़ा दिए थे। उनकी तलवारबाजी की पाठशाला रही गंगा किनारे की धरती पर आज भी ऐसे तलवारबाज हैं, जो राष्ट्रीय फलक पर कानपुर का नाम रोशन कर रहे हैं। कैंट में रहने वाले भाई-बहन की तलवारबाजी के लोग कायल हो चुके हैं तो शुक्लांगज के तलवारबाज अब हुनर को शिष्यों तक पहुंचा रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं तलवारबाजी में धाक कायम रखने वाले पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी सत्येंद्र सिंह और अंकित कुमार रावत की, जो अब निश्शुल्क प्रशिक्षण देकर तलवारबाजी के हुनर को धार दे रहे हैं।
भाई-बहन ने शहर का नाम राष्ट्रीय फलक पर पहुंचाया
कैंट निवासी 36 वर्षीय सत्येंद्र सिंह ने तलवारबाजी खेल वर्ष 2006 गुवाहाटी में हुए नेशनल गेम्स में पदक जीतकर परचम लहराया था। सत्येंद्र ने सेवर स्पर्धा के टीम वर्ग में कांस्य पदक जीतकर शहर को इस खेल में राष्ट्रीय मुकाम दिया। उनके मार्गदर्शन में उनकी बहन स्नेहा सिंह ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया था। सत्येंद्र ने बताया कि वर्ष 2004ं-05 में बालभवन में लगे समर कैंप में प्रशिक्षण हासिल कर तलवारबाजी में कॅरियर बनाने की ठानी।
समर कैंप से सीखा हुनर, मिला राष्ट्रीय मंच
शुक्लागंज निवासी अंकित कुमार रावत बतातें हैं कि उन्होंने बाल भवन में कोच संजय प्रधान द्वारा लगाए गए तलवारबाजी के समर कैंप में बारीकियों काे सीखा था। इसके बाद वर्ष 2010 से लेकर 2014 तक राष्ट्रीय तलवारबाजी में शहर का प्रतिनिधित्व किया। तमिलनाडु राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतने वाले अंकित अब प्रदेश के प्रमुख एनआइएस कोचों में शुमार हो चुके हैं
मुफ्त प्रशिक्षण देकर संवार रहे खिलाड़ियों का भविष्य
कोच सत्येंद्र व अंकित ऑर्डेनेंस क्लब कैंट में खिलाड़ियों को तलवारबाजी का मुफ्त प्रशिक्षण देकर मंच तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उनकी पाठशाला में फूलबाग की अंशिका राव किदवई नगर की अंजू गुप्ता व प्रेमनगर के हर्ष राष्ट्रीय व प्रदेशस्तरीय प्रतियोगिताओं में धाक जमा चुके हैं।
ऐसे मिलते तलवारबाजी में प्वाइंट
सेवर वर्ग को मुख्यता प्राचीन तलवारबाजी की तर्ज पर खेला जाता। इसमें टारगेट एरिया कमर के ऊपर से सिर तक होता। फाइल वर्ग में टारगेट एरिया कमर से ऊपर व गर्दन से नीचे तक होता है। इसमें हाथ पर प्रहार का प्वाइंट नहीं होता। एपी वर्ग में सिर से लेकर जूते तक का क्षेत्र पर प्रहार का अंक मिलता। इन तीनों विधा में इलेक्ट्रानिक जैकेट का उपयोग होता, जिसमें टच होते ही डिस्प्ले पर अंक मिलते।