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समय नहीं, हूटरों से गूंजता था कानपुर का 'स्वर्णकाल'

आज के दौर से थोड़ा पीछे चलिए। दो दशक पहले के कानपुर में बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों के चलते ही शहर पूरब के मैनचेस्टर का रुतबा रखता था।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 02:46 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 02:46 PM (IST)
समय नहीं, हूटरों से गूंजता था कानपुर का 'स्वर्णकाल'
समय नहीं, हूटरों से गूंजता था कानपुर का 'स्वर्णकाल'

आज के दौर से थोड़ा पीछे चलिए। दो दशक पहले के कानपुर में। स्वर्णकाल में चमकते-दमकते कानपुर में। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों और मिलों वाला वह शहर जो पूरब के मैनचेस्टर का रुतबा रखता था। विभिन्न उत्पादों का उत्पादन और निर्यात ही नहीं, बड़ी संख्या में रोजगार और देश की समृद्धि में यह शहर अहमियत रखता था। अपनी जरूरतों के लिए देश के कई राज्यों के साथ ही विदेश की भी उम्मीद भरी नजर कानपुर रहती थी। यह वो वक्त था जब कानपुर के लोग घड़ी की सुइयों के बजाय फैक्ट्रियों में बजने वाले हूटर से समय जान जाते थे। वो दौर अब नहीं है। गुजर चुका है वो कल, जिस पर हमें बड़ा नाज था। क्या शान थी, इसकी अनुभूति इस बार शहर में आए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कानपुर के गुजरे पल के जिक्र में कर गए। कानपुर में जन्मे, यहीं पर खेले, पले-बढ़े और पढ़े राष्ट्रपति ने कानपुर के पुराने औद्योगिक गौरव की याद दिलाई। सच में क्या नहीं था हमारे पास, एनटीसी, बीआइसी, जेके ग्रुप और रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े बड़े कारखाने..। भारी उद्योग के रूप में जितना कुछ तब कानपुर की झोली में था, उतना तो आज के बड़े से बड़े शहर के पास भी नहीं है। चाहें तो हम आज भी शहर के गुजरे हुए स्वर्णिम काल को फिर संवारते हुए वापस पा सकते हैं, जरूरत है तो मजबूत इच्छा शक्ति की। प्रस्तुत है इस पर राजीव सक्सेना व समीर दीक्षित की विस्तृत रिपोर्ट।

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1857 के गदर ने खोली विकास की राह

वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के बाद अंग्रेजों ने कानपुर को अपने लिए प्रमुख शहर के रूप में चुना और यहां रेलवे लाइन पर तेजी से काम शुरू हुआ। सैनिकों की छावनी बनी तो उनके जूतों की आवश्यकता पूरी करने के चमड़े का सरकारी कारखाना खुला। वर्ष 1861 में सूती कपड़ों की पहली मिल लगी तो एक रास्ता खुल गया। रेलवे लाइन जैसे-जैसे बढ़ती गई, नए-नए कारखाने शहर में खुलते गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद शहर का तेजी से विकास हुआ। दूर-दूर से लोग रोजगार की आस में शहर आने लगे। एनटीसी की पांच, बीआइसी की चार फैक्ट्रियों के अलावा रक्षा क्षेत्र की आर्डनेंस फैक्ट्री, फील्डगन फैक्ट्री, स्माल आ‌र्म्स फैक्ट्री, आर्डनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्री, पैराशूट फैक्ट्री, एचएएल शहर को लगातार रोशन कर रही थीं। इनके अलावा जेके जूट, जेके काटन, जेके सिंथेटिक, जेके रेयॉन जैसी फैक्ट्रियां निजी क्षेत्र में थीं। जिन भारी उद्योगों के लिए आज शहर तरस रहा है, उस दौर में ये भारी उद्योग की फैक्ट्रियां शहर ही नहीं देश की शान थीं।

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समय के साथ बदल गई सूरत

एक दौर था जब शहर की एक-एक बड़ी फैक्ट्री में हजारों की संख्या में लोग काम करते थे, लेकिन समय के साथ औद्योगिक परिदृश्य बदला। लघु और सूक्ष्म इकाइयों की संख्या लगातार बढ़ती गईं। आज इस शहर की साख एमएसएमई इकाइयां हैं। यहां छोटी-बड़ी 15 हजार इकाइयों से 20000 करोड़ रुपये के उत्पादों का निर्यात होता है। पूरे प्रदेश के 85 हजार करोड़ रुपये के निर्यात को देखते हुए यह हिस्सा काफी बड़ा कहा जा सकता है।

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आइआइटी का साथ बदल सकता किस्मत

28 जून को आइआइटी के दीक्षा समारोह में राष्ट्रपति ने आइआइटी छात्रों का आह्वान किया था कि वे कानपुर के औद्योगिक गौरव को फिर से दिलाएं। सच में आइआइटी का साथ इस शहर के औद्योगिक गौरव को फिर दुनिया के नक्शे पर ला सकता है। वर्ष 2011 में आइआइटी के तत्कालीन निदेशक संजय गोविंद धांडे ने आइआइए के साथ मिलकर प्रमोशन आफ वर्क एक्सपीरिएंस एंड रिसर्च (पावर) का गठन किया था। तीन वर्ष तक दोनों हाथ मिलाकर काम करते रहे। इस दौरान शहर के करीब तीन दर्जन उद्यमियों को इसका लाभ मिला। अब अगर एक बार फिर इस तरह का काम शुरू हो जाए तो शहर के उद्योगों को काफी लाभ मिलेगा, क्योंकि टेक्नोलॉजी के मामले में देश में आइआइटी से बढ़कर अभी और कोई संस्था नहीं है।

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कानपुर में उद्योगों की स्थिति

- 14,000 सूक्ष्म व लघु उद्योग

- 950 मध्यम उद्योग

- 105 लार्ज कैप उद्योग

- 1.60 लाख करोड़ जीडीपी

- 6.25 फीसद जीडीपी की दर

- 65,500 करोड़ रुपये शहर का कुल औद्योगिक कारोबार

- 10 लाख से अधिक को रोजगार

- 39 फीसद जीडीपी में मैन्यूफैक्च¨रग क्षेत्र

- 43 फीसद जीडीपी में सेवा क्षेत्र

- 18 फीसद जीडीपी में कृषि क्षेत्र

- 10,000 करोड़ का राजस्व जीएसटी, आयकर व अन्य करों से

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उत्पाद क्षेत्र, आकार, रोजगार (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष)

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- लेदर एक्सपोर्ट और डोमेस्टिक : 20000 करोड़

- ताकत : कच्चा माल, कामगार

- रोजगार : 3.5 लाख कर्मचारी

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प्लास्टिक और पैकेजिंग इंडस्ट्री : 9000 करोड़

ताकत : उद्योगों की जरूरत के लिए पैकिंग मैटीरियल

रोजगार : 70000 कर्मचारी

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सोप एंड डिटरजेंट : 5000 करोड़

ताकत : देश की बड़ी कंपनियां कानपुर में, कोस्टल एरिया से सीधा संपर्क, पूरे प्रदेश का कारोबारी हब

रोजगार : 20 हजार कर्मचारी

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फूड इंडस्ट्री (प्रोसेस्ड और एग्रो बेस) : 4500 करोड़

ताकत : खाद्य मसाले, आलू, टमाटर, बिस्किट, नमकीन, कचरी उद्योग

रोजगार : 03 लाख कर्मचारी

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इंजीनिय¨रग उद्योग : 4,500 करोड़

ताकत : रक्षा उत्पाद, रेलवे एलएचबी कोच, साइकिल और आटो पार्ट्स, कास्टिंग एंड डाइंग यूनिट

रोजगार : 40 हजार कर्मचारी

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होजरी, गारमेंट और टेक्सटाइल : 3,000 करोड़

ताकत : माग, कुशल कारीगर, कानपुर का पुराना टेक्सटाइल हब होना

रोजगार : 30 हजार कर्मचारी

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प्रमोशन आफ वर्क एक्सपीरिएंस एंड रिसर्च (पावर) जैसी योजना फिर से आइआइटी और शहर के उद्यमियों के बीच शुरू हो तो इसका अच्छा लाभ मिलेगा। कानपुर का पुराना गौरव पाने का यह सबसे अच्छा रास्ता हो सकता है।

- सुनील वैश्य, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आइआइए।

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प्लास्टिक, होजरी शहर के बड़े सेक्टर हैं। लेदर की तरह यहां भी लोगों को प्रशिक्षित करने की व्यवस्था होनी चाहिए। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी अपनी दक्षता का इस्तेमाल उद्यमियों को परेशान करने में नहीं, उन्हें सुविधा दिलाने में करें।

- मनोज बंका, प्रदेश अध्यक्ष, प्रॉविंशियल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन।


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