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पेशवा महल से फूंका गया था 1857 की क्रांति का बिगुल, जानिए कानपुर से किस तरह से हुई आंदोलन की शुरूआत

बिठूर का पेशवा महल 1857 की क्रांति का गढ़ था। जनरल हैवलाक जब अंग्रेज सेना के साथ बिठूर की ओर बढ़ा तो नाना साहब के सैनिक सलाहकार तात्या टोपे के नेतृत्व में विद्रोही सेना ने अंग्रेज सेना का मुकाबला किया। अंग्रेजों और विद्रोही सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ

By Akash DwivediEdited By: Published: Fri, 06 Aug 2021 12:10 PM (IST)Updated: Fri, 06 Aug 2021 05:51 PM (IST)
शूरवीरों का गौरवशाली इतिहास यहां की पृष्ठभूमि में रचा और बसा है

कानपुर, (प्रदीप तिवारी)।बिठूर का इतिहास गौरवशाली है। कानपुर में क्रांति की पहली अलख यहीं से जगी थी, जिसके केंद्र बिंदु में पेशवा महल था। आजादी के बाद इस पेशवा महल को संरक्षित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया, जबकि नाना साहब, अजीमुल्ला खां, रानी लक्ष्मीबाई जैसे कई शूरवीरों का गौरवशाली इतिहास यहां की पृष्ठभूमि में रचा और बसा है।

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बिठूर का पेशवा महल 1857 की क्रांति का गढ़ था। जनरल हैवलाक जब अंग्रेज सेना के साथ बिठूर की ओर बढ़ा तो नाना साहब के सैनिक सलाहकार तात्या टोपे के नेतृत्व में विद्रोही सेना ने अंग्रेज सेना का मुकाबला किया। अंग्रेजों और विद्रोही सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ, जिसमें तात्या व उनके सैनिक बहादुरी से लड़े हालांकि उन्हेंं पीछे हटना पड़ा। हार के बाद भी तात्या टूटे नहीं बल्कि सेना जुटाना शुरू किया। वह मप्र राव साहब सिंधिया के यहां पहुंचे। उनकी मदद से एक सैनिक टुकड़ी को भी अपने साथ जोड़ा और कालपी में अंग्रेज सेना का मुकाबला किया। यहां तात्या टोपे की जीत हुई।

कुआं भी है इतिहास का साक्षी : पेशवा महल के पास आज भी एक पुराना कुआं हैं। इसकी कहानी भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। अंग्रेजों ने जब पेशवा महल पर कब्जा कर लिया तो सैनिक दुश्मन के हाथ नहीं लगे। सभी सैनिकों ने परिवार सहित कुएं में कूदकर जान दे दी थी। कुएं में आज भी सैनिकों की यह वीर गाथा स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा महल : 1857 की क्रांति के प्रथम स्वतंत्रता के महानायक का पेशवा महल आजादी के बाद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। पर्यटन विभाग ने नाना राव स्मारक पार्क बनवाया, लेकिन पेशवा महल को संरक्षित नहीं किया। जिसके चलते यह महल धीरे-धीरे जमीदोज हो रहा है।


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