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आइसीयू में मरीज पहुंचा तो खाली करते रहें अपनी जेब

उर्सला में गंभीर मरीज भी इमरजेंसी में नहीं किए जा रहे भर्ती, अस्पताल के जिम्मेदार अधिकारी लखनऊ में ही गुजारते समय

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 01:43 AM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 01:43 AM (IST)
आइसीयू में मरीज पहुंचा तो खाली करते रहें अपनी जेब
आइसीयू में मरीज पहुंचा तो खाली करते रहें अपनी जेब

जागरण संवाददाता, कानपुर : उर्सला अस्पताल में सुविधाएं हैं और दवाएं भी, लेकिन नहीं है तो डॉक्टरों और कर्मचारियों में संवेदनाएं। गंभीर मरीजों को इमरजेंसी में भर्ती करने के बजाय ओपीडी भेज देते हैं। चलने-फिरने में लाचार मरीजों को लादकर तीमारदार पहली मंजिल स्थित ओपीडी जाते हैं। ओपीडी हो या फिर इमरजेंसी, वहां न तो स्ट्रेचर हैं और न ही व्हील चेयर। डॉक्टरों एवं कर्मचारियों की सेटिंग इस कदर है कि नर्सिगहोम से मरीज जैसे ही आइसीयू के लिए भेजा जाता है, सभी सक्रिय हो जाते हैं। आइसीयू के अंदर मरीज के जाते ही डॉक्टर बाहर की दवाएं लिखना शुरू कर देते हैं। भले ही अस्पताल में दवाएं मौजूद हों, पर उनके परिजनों की जेब खाली होती जाती है। डायलिसिस के लिए पैसा जमा करने के बाद भी दवा से लेकर डिस्पोजल तक खरीदकर लाना पड़ता है। इसकी वजह जिम्मेदार अधिकारियों का अस्पताल में समय न देना है। मंगलवार सुबह जागरण टीम उर्सला अस्पताल की हकीकत जानने पहुंची तो इन अव्यवस्थाओं से रूबरू हुई।

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पर्चे बनाने के लिए लगी लाइन

ओपीडी में डॉक्टर को दिखाने के लिए मरीज लाइन लगाए खड़े थे। सर्वर डाउन होने से पंजीकरण में विलंब हो रहा था। इसको लेकर कई बार हंगामे की स्थिति बनी। बाद में सभी मरीजों के पर्चे बनाए गए।

अल्ट्रासाउंड जांच के लिए तीन दिन की वेटिंग

अस्पताल में रोजाना 80 अल्ट्रासाउंड होते हैं। दूर-दराज से आए मरीजों ने बताया कि अल्ट्रासाउंड के लिए तीन दिन बाद का नंबर दिया जाता है। फतेहपुर के अनुराग तीन दिन पहले नंबर लेकर गए थे। सुबह से आकर इंतजार कर रहे थे। दोपहर 12 बजे तक उनका नंबर नहीं आया था। इसी तरह शुक्लागंज से आई शहनाज को लौटा दिया गया, उन्हें तीन दिन बाद का नंबर मिला है। जरूरी होने पर बाहर जांच करानी पड़ती है।

दवाएं बाहर की, बचते रहे मरीज

ओपीडी में डॉक्टर मरीजों को बाहर की दवाओं की पर्चियां दे रहे थे। मरीज भी कुछ बोलने को तैयार नहीं थे। सभी पर्चे लेकर चुपके से निकल जा रहे थे। मछरिया से आए बफाती ने बताया कि हड्डी के डॉक्टर अस्पताल की दवाएं लिखते ही नहीं हैं। किराया खर्च कर आए थे, लेकिन अस्पताल की एक भी दवा नहीं थी।

तड़पते मरीज को झिड़क कर निकला

श्याम नगर से सुनील को लेकर परिजन आए थे। पहले उर्सला इमरजेंसी लेकर गए तो डॉक्टर ने भर्ती करने से इन्कार कर दिया। कहा, पहले ओपीडी में दिखाओ, वहां से ही भर्ती किया जाएगा। डॉक्टर ने संवेदनहीनता दिखाते हुए उसे न व्हील चेयर मुहैया कराई और न ही स्ट्रेचर। जब परिजन उसे लेकर ओपीडी पहुंचे तो बगल से एक स्वास्थ्य कर्मी खाली व्हील चेयर लेकर जा रहा था। मरीज जमीन पर पड़ा तड़प रहा था, परिजन व्हील चेयर मांगने लगे तो उन्हें झिड़क दिया। मगर, जैसे ही कैमरे का फ्लैश चमका मरीज को उठाने के लिए लपक पड़ा।

बिना पैसे आइसीयू नसीब नहीं

आइसीयू के बाहर बैठे मरीजों के परिजन से जब बात करनी चाही तो उन्होंने इन्कार कर दिया। भरोसा दिलाने पर बोले, बिना पैसे एडमिशन ही नहीं होता। मरीज के भर्ती होने के बाद दवाएं बाहर से ही खरीदनी पड़ती हैं।

डायलिसिस का शुल्क लेते, दवाएं नहीं देते

उर्सला में डायलिसिस का सरकारी शुल्क 400 रुपये है। अस्पताल से ही दवाएं मुहैया कराने का प्रावधान है, बावजूद इसके परिजनों को बाहर से खरीदने पड़ती हैं।

दो दिन से निदेशक नहीं

जागरण टीम जब उर्सला अस्पताल के निदेशक डॉ. उमाकांत का पक्ष जानने के लिए गई तो कर्मचारियों ने बताया कि वह दो दिन से नहीं आ रहे हैं। मोबाइल पर फोन किया तो उन्होंने रिसीव नहीं किया।

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मरीजों का दर्द

कानपुर देहात के अकबरपुर निवासी मनीष गुप्ता ने पुत्र को दिक्कत होने पर आइसीयू में भर्ती कराया है। एक दिन में दस हजार रुपये की दवाएं खरीद कर ला चुके हैं।

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औरैया के मनोज गुप्ता ने पिता को सांस लेने में तकलीफ होने पर आइसीयू में भर्ती कराया था। बुधवार से अब तक 22 हजार रुपये की दवाएं खरीद कर ला चुके हैं।

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फतेहपुर के धतौली गांव के सुनील सिंह पत्‍‌नी अंजू की डायलिसिस कराने उर्सला आए थे। डायलिसिस के लिए दवाएं एवं सभी सामान 2000 रुपये में खरीदकर लाए हैं।


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