जल बना जहर : पानी में सड़ गई हाथों की तकदीर
अफसरों की नजर में पूरी तरह मानकों पर खरा है पानी, दर्द से कराहते-तड़पते ग्रामीणों की इन्हें भनक तक नही
जागरण संवाददाता, कानपुर : महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र के इन 18 गांवों की बदहाली दूर होती भी तो कैसे। जिम्मेदार जल निगम के अफसर तो यह मानते हैं कि उनके द्वारा नहर में डाला जा रहा पानी पूरी तरह मानकों पर खरा है। हद तो यह है कि तीन दशक में हजारों ग्रामीणों के हाथ-पैर गल चुके और अफसर कह रहे हैं कि हमें पता ही नहीं कि वहां ऐसा हो रहा है।
जाजमऊ क्षेत्र की टेनरियों का उत्प्रवाह और शहर भर का सीवर वाजिदपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लाट पहुंचता है। जल निगम वहा पानी को शोधित कर लगभग 25 किलोमीटर लंबी नहर में छोड़ता है। यह पानी खेतों की सिंचाई के लिए है। मगर, एसटीपी से नहर में गिरता पानी ही सवाल खड़ा करता है कि यह कितना शोधित है। लगातार सफेद झाग उठता रहता है। इसमें भारी मात्रा में खतरनाक रसायन बह रहा है, जिससे ग्रामीणों के हाथ-पैरों की अंगुलिया सड़ रही हैं। फसलें झुलस रही हैं और जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म होती जा रही है। ग्रामीणों को इस बात का पता है कि पानी में क्रोमियम भारी मात्रा में है, जो टेनरियों में इस्तेमाल होता है। वहीं, जल निगम के महाप्रबंधक आरके अग्रवाल को पता ही नहीं है कि पानी में क्या खराबी है।
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बच्चों से बूढ़े तक शिकार, शरीर से टपकता खून
किशनपुर का छह साल का मासूम अखिलेश दिन भर जूते पहने रहता है और दोनों हाथ पेंट की जेब में ठूंसे रहता है। आखिर क्यों? इस सवाल पर पिता किशनलाल आवाज देकर अखिलेश को बुलाते हैं। यह बच्चा जूते-मौजे उतारकर दिखाता है कि कैसे पैर सड़ रहे हैं और मिट्टी से बचाने को ढंके रहता है। जेब से हाथ निकालता है तो देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। खाल फटी हुई है, खून चिलचिलाता रहता है। इसी तरह जाना गाव के गुड्डू निषाद अपने हाथ दिखाते हैं। सभी नाखून सड़ चुके हैं। बताते हैं कि एक बार तो सारे नाखून सड़कर गिर चुके हैं। दोबारा उगे, वह भी गल गए। वहीं, राजेंद्र निषाद बंटाई पर खेती करते हैं। चार बच्चों का पेट पालना है, इसलिए जहरीले पानी से खेती करना मजबूरी है। आठ-दस साल पहले से अंगुलियों में सड़न शुरू हुई। अब आधी अंगुलिया ही बची हैं। पैर में भी घाव शुरू हो गया है। बदन जहर में घुलता जा रहा है और वह दर्द झेलते जा रहे हैं।
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भूगर्भ जल भी जहरीला, आंख मूंदकर पीते हैंडपंप का पानी
इन सभी 18 गावों में पानी की लाइन बिछ चुकी है। गहरी बोरिंग हो चुकी है, लेकिन सप्लाई चालू नहीं है। इन बदहाल गावों में नेता सिर्फ चुनाव के वक्त जाते हैं और अफसर तो कभी नहीं। बेचारे ग्रामीण हैंडपंप का पानी पी रहे हैं। रसायनयुक्त पानी खेतों के जरिये भूगर्भ में पहुंच चुका है। हैंडपंप से ऐसा पानी निकलता है, जो एक-दो घटे बाद पीला पड़ने लगता है या झाग आ जाता है। ग्रामीण जानते हैं कि यह जहर है, लेकिन मजबूरी में उसे पी रहे हैं।
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तड़प रही इन गावों की लाखों आबादी
प्योंदी, शेखपुर, जाना, किशनपुर, मदारपुर, हनिहा, त्रिलोकपुर, खलार, गदनपुर, आइमा, मवैया, अलौलापुर, सुखनीपुर, मोतीपुर, खजुरिहा, कुलगाव, अटवा और सल्तनपुरवा।
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जल निगम महाप्रबंधक से दो टूक
सवाल- वाजिदपुर एसटीपी से ट्रीट करके नहर में दिया जा रहा पानी क्या पूरी तरह शुद्ध है?
जीएम- शुद्धता के अलग-अलग पैमाने हैं। पीने योग्य पानी अलग होता है। यह सिंचाई के लिए है।
सवाल- क्या सिंचाई के पानी की शुद्धता का पैमाना ऐसा है, जिसे इंसान छू भी न सके?
जीएम- नहीं ऐसा नहीं होता। वह सिर्फ पीने योग्य नहीं होता।
सवाल- तो फिर कैसे ट्रीट पानी का इस्तेमाल करने वाले गांवों में ग्रामीणों के हाथ-पैर सड़-गल रहे हैं?
जीएम- ऐसा नहीं हो सकता। कई बार जांच हुई है। सीवर के पानी में रसायन नहीं होता। टेनरी से क्रोमियम निकलता है। मानक है कि प्रति लीटर पानी में दो मिली लीटर क्रोमियम से अधिक न हो। हमारे पानी में तो इससे बहुत कम रहता है।
सवाल- तो क्या यह रहस्य है, जो नहर का पानी इस्तेमाल करने वाले गांवों में ही बीमारियां फैल रही हैं?
जीएम- बिल्कुल रहस्य है। बीमारियों का कारण पता करने सीएमओ को जाना चाहिए। पानी खराब है तो उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जांच कर कार्रवाई करे।
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यह भी सुनिए जीएम साहब
'जाजमऊ क्षेत्र सहित इन 18 गांवों के मरीज भी हमारे पास आते हैं। इनमें चर्म रोग की शिकायत बहुत होती है। हमें स्पष्ट तो नहीं पता, लेकिन हो सकता है कि पानी के किसी रसायन से ही यह समस्या हो।'
- डॉ. नासिर, जाजमऊ