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आंखों में धूल झोंक कर सेंट्रल पर पार्सल का खेल

--- जागरण संवाददाता, कानपुर : सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर पार्सल को लेकर स्टेट जीएसटी और रेलवे

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Feb 2018 01:11 AM (IST)Updated: Sat, 10 Feb 2018 01:11 AM (IST)
आंखों में धूल झोंक कर सेंट्रल पर पार्सल का खेल
आंखों में धूल झोंक कर सेंट्रल पर पार्सल का खेल

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जागरण संवाददाता, कानपुर : सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर पार्सल को लेकर स्टेट जीएसटी और रेलवे के बीच टकराव में भले ही दोनों के अपने-अपने दावे हों, लेकिन हकीकत यह है कि सेंट्रल पार्सल के खेल का बड़ा गढ़ है। लचर कानून व नियमों की आड़ में वाणिज्यकर और रेलवे ही नहीं बल्कि बहती गंगा में आरपीएफ और जीआरपी भी डुबकी लगाती रही है।

माल ढुलाई में रेलवे खुद को केवल ट्रांसपोर्टर कहता है। यानी उसका काम सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का है। रेलवे वजन और सामान की प्रकृति के हिसाब से किराया वसूल करता है। जो सामान जा रहा है, उसे कैसे खरीदा गया और उसका टैक्स चुकाया गया या नहीं रेलवे, यह सवाल ग्राहक से कभी नहीं करता। जीएसटी से पहले वाणिज्यकर विभाग स्टेशन से बाहर आने पर माल को चेक करता था।

आइए जानते हैं कि रेलवे के पार्सल में यह खेल होता कैसे है? मौजूदा वक्त में रेलवे की मिलीभगत से वजन और माल की प्रकृति को बदलकर खेल होता है। दलालों की मिलीभगत से पार्सल कर्मी 10 टन माल को पांच टन भार में बुक करते हैं। ऐसे माल को बिना तौले एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर ट्रेनों में चढ़ाया और उतारा जाता है। माल की प्रकृति भी बदल कर किराया कम किया जाता है। उदाहरण के लिए उच्च किराए वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान को रेडीमेड कपड़ा बताकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है। इस खेल में रेलवे को जो किराया मिलना चाहिए, उसका आधा ही मिल पाता है। बाकी बचे आधे में बंदर बांट होती है। सब तय रहता कि स्टेशन में आते और जाते समय वाणिज्यकर टीम माल चेकिंग नहीं करेगी, रेलवे के अधिकारी हस्तक्षेप नहीं करेंगे, आरपीएफ यह नहीं जाचेगी कि जो माल आ-जा रहा रहा है, उसकी प्रकृति वही है जो बिल्टी में दर्ज है। कोई बाधा नहीं हो, इसलिए थोड़ा सा हिस्सा जीआरपी को भी दिया जाता है।

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करोड़ों खर्च कर दिया, पर नहीं आया बैगेज स्कैनर

करीब आठ साल पहले तय हुआ था कि पैकेज के अंदर माल की प्रकृति जानने के लिए बैगेज स्कैनर लगाए जाएंगे। तब से अब तक स्टेशन के विकास के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए, मगर स्कैनर मशीन खरीदने के लिए किसी ने पहल नहीं की।

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'मीठे' बोलकर कमाए करोड़ों

पार्सल का खेल ऐसे समझा जा सकता है कि 15 साल पहले जिस व्यक्ति का पार्सल के बाहर फलों का ठेला था, वह दलाली के मार्फत अब करोड़ों में खेल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक उसके पास कानपुर के अंदर 150 करोड़ रुपये की वैध और अवैध संपत्ति है। उक्त दलाल के मीठे बोल पूरी रेलवे में मशहूर हैं।

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सेंट्रल स्टेशन पर पार्सल की व्यवस्था नियमों के तहत है। जो कमियां है वह दूर की जाएंगी। मौजूदा विवाद में उच्चाधिकारियों के निर्देशों का पालन होगा।

-डॉक्टर जितेंद्र कुमार, स्टेशन डायरेक्टर


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