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फर्रुखाबाद में अगरबत्ती और धूपबत्ती का कारोबार सच कर रहा आत्मनिर्भर भारत अभियान का सपना

आयात पर रोक से स्थानीय उद्योग के दिन बहुरे मांग के साथ कीमत भी बढ़ गई गुतासी गांव में 30 हाथों को मिला रोजगार लखनऊ बरेली-कर्नाटक में आपूर्तिअब भूल जाइए वियतनाम का नाम चमक उठा है अपनी अगरबत्ती-धूप का नाम

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 09:05 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 09:05 PM (IST)
गांव गुतासी में धूपबत्ती सुखाता हुआ व्यवसायी

फर्रुखाबाद, जेएनएन। पिछले दिनों सरकार ने वियतनाम से अगरबत्ती-धूपबत्ती और इससे जुड़े उत्पादों के आयात पर रोक लगाई तो इसका असर स्थानीय स्तर पर दिखने लगा है। अगरबत्ती और धूपबत्ती के बेजान पड़े स्थानीय उद्योगों को इस फैसले से मानो संजीवनी मिल गई है। वियतनाम को भूलकर अब स्थानीय स्तर पर बनने वाली अगरबत्ती का नाम चमक उठा है। मांग के साथ ही कीमत भी बढ़ गई है। जिले में इसकी एक झलक गांव गुतासी में देखी जा सकती है जहां अगरबत्ती, धूप और हवन सामग्री कारोबार होता है। इन दिनों यहां इस उद्योग से जुड़े लोगों के चेहरों पर मुस्कान लौट आई है। हालांकि जिले में अब ये कारोबार देशव्यापी आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति दे रहा है।

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ऐसे शुरू हुआ कारोबार

बढ़पुर ब्लाक के गांव गुतासी निवासी आशीष कुमार मिश्रा ने गांव में ही खाली पड़ी भूमि पर अगरबत्ती, धूपबत्ती, हवन सामग्री व दोना पत्तल बनाने का काम शुरू करने की योजना पिछले वर्ष बनाई थी। जिला ग्रामोद्योग बोर्ड की मदद से बैंक से करीब 17 लाख रुपये का ऋण लिया। लखनऊ के कारोबारी से संपर्क कर अगरबत्ती, धूप और हवन सामग्री बनाने की मशीन वियतनाम से मंगा ली। इसी बीच ही लॉकडाउन लग गया। लॉकडाउन की छूट के बाद उनके कारखाने में प्रोडक्शन शुरू हुआ तो कुछ दिन में ही ऑर्डर मिलने लगे। फिलहाल वह जिले के अलावा लखनऊ व बरेली में सप्लाई दे रहे हैं। आशीष बताते हैं कि काफी विचार के बाद इस कारोबार में भविष्य दिखाई दिया।

पहले की अपेक्षा बढ़ गए भाव

दरअसल, धूप व अगरबत्ती का सर्वाधिक कारोबार वियतनाम में होता है। इसकी मशीनें भी वहीं बनती हैं। सरकार ने वियतनाम से आयात पर अब रोक लगा दी है। मशीनें भी देश में बनने लगी हैं। वियतनाम से माल आने पर यहां भाव कम था, अब रेट बढ़ गए हैं। पहले 55 से 60 रुपये किलो बिकने वाली अगरबत्ती अब 70 से 80 रुपये बिक रही है। धूपबत्ती के दाम 45 से 50 से बढ़कर 65 से 75 रुपये किलो हो गए हैं। निर्माण सामग्री लखनऊ व अहमदाबाद से मंगवा रहे हैं। लखनऊ के व्यवसायी उनसे बिना पैकिंग का माल भी खरीद रहे हैं और अपनी खुशबू लगाकर कर्नाटक में सप्लाई दे रहे। आशीष कहते हैं, संतोष इस बात का है कि गांव की 15 महिलाओं समेत 30 लोगों को काम देने में वह सफल हो गए हैं।

इनका ये है कहना

जिला ग्रामोद्योग अधिकारी अरविंद कुमार ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में आशीष मिश्रा की पत्रावली स्वीकृत हुई थी। वह उद्योग अच्छा संचालित कर रहे हैं। जिन लोगों ने ऋण लेकर काम बंद कर दिया है, उन्हेंं अनुदान का लाभ नहीं मिलेगा।  


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