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गलतियों-गलतफहमियों के बीच एक गुंजाइश

'जब वी सेपरेटेड' से बिखरते परिवारों के लिए लेखक व निर्देशक राकेश बेदी ने दिया संदेश।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 04:03 PM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 04:03 PM (IST)
गलतियों-गलतफहमियों के बीच एक गुंजाइश
गलतियों-गलतफहमियों के बीच एक गुंजाइश

जागरण संवाददाता, कानपुर : गलतियां और गलतफहमियां कैसे रिश्तों को तोड़ रही हैं, यह समाज के आम नजारे हो चले हैं। मगर, कलह के घनघोर अंधेरे के बीच 'गुंजाइश' की रोशनी पर एक ऐतबार कैसे उसी रिश्ते को फिर जोड़ सकता है, यह नाटक 'जब वी सेपरेटेड' समझाता है। छोटे पर्दे की मशहूर अभिनेत्री श्वेता तिवारी के बेहतरीन और अभिनेता (फेलिसिटी थिएटर के एमडी) राहुल भुचर के संतोष जनक अभिनय व संवाद-संप्रेषण के मार्फत सिद्धहस्त अभिनेता, लेखक राकेश बेदी बहुत अच्छी समझाइश छोड़ते हैं। आम हो चुके परिवारों के बिखराव पर केंद्रित नाटक 'जब वी सेपरेटेड' का मंचन फेलिसिटी थिएटर रविवार को लाजपत भवन में किया। कैसे छोटी-छोटी बातें आधुनिक दंपति के जीवन में कड़वाहट घोलती हैं, पति या पत्नी से ऐसी भी गलती हो जाती है कि उन्हें तलाक ही एकमात्र रास्ता नजर आता है। नाटक के निर्देशक और लेखक दक्ष अभिनेता राकेश बेदी ने जिंदगी के इन्हीं झंझावातों को 'स्क्रिप्ट' में ढाला है। नोकझोंक के दौरान बोले गए संवाद अहसास कराते हैं कि बेडरूम और किचन की किचकिच तक लेखक बड़े अच्छे से झांके हैं या कहें कि अध्ययन किया है। लंबे समय तक दर्शकों को पारिवारिक कलह में अनवरत बांधे रहने से बचते हुए बेदी एकांकी जीवन जी रहे बुजुर्ग मोंटी मिठा की भूमिका में बार-बार मंच पर आते हैं और तनाव के बीच ठहाके छोड़ जाते हैं। हालांकि पात्र का एक छिपा प्रयास प्रिया माहेश्वरी साहनी (श्वेता तिवारी) और संजय साहनी (राहुल भुचर) को यह संदेश देना भी रहता है कि अकेले जीवन काटना कितना कष्टदायी है। जिंदगी में बात करने के लिए भी कोई चाहिए। बुजुर्गो को भी क्या झेलना पड़ता है, यह मोंटी मिठा की दर्द भरी कहानी है।

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अवैध संबंधों में रंगे हाथ पकड़े गए संजय और उनकी पत्नी प्रिया चलने वाली नोकझोंक की स्क्रिप्ट कई बार 'संशोधन योग्य' महसूस होती है, लेकिन खुद बेदी और श्वेता तिवारी का जानदार संवाद और भाव संप्रेषण इस छोटी सी कमी को किनारे कर अंजाम के इंतजार में 'स्वादिष्ट पॉपकॉर्न' की भूमिका निभाता है। बहरहाल, कलह को अलगाव तक ले जाने को आतुर दंपति के लिए यह नाटक नसीहत छोड़ता है कि कैसे प्रिया और संजय के बीच उनकी बेटी मेघा फिर खुशी-खुशी रहने का कारण बन जाती है? एक-दूसरे से गिले-शिकवे भुलाकर खुशनुमा जिंदगी की आस में कदम बढ़ा देते हैं। - - - - - - - - - - - - - -

कमला हैं 82 साल के परेश

कानपुर से ही अपने हर नाटक की शुरुआत करने वाले फेलिसिटी थिएटर के इस नाटक को जीवंत करने में बड़ी भूमिका परेश की है। अब तक 199 नाटकों की मंच सज्जा कर चुके परेश ने जब वी सेपरेटेड के मंच को अपनी कुशलता से सजाया।


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