बह गई गृहस्थी, खाने के भी लाले
अपना पूरा प्रकोप दिखाकर नदी का पानी तो उतर जाएगा, लेकिन गरीबों को मुश्किलों के ऐसे 'दलदल' में फंसा दिया कि आंखों के सामने अंधेरा है।
जागरण संवाददाता, कानपुर : अपना पूरा प्रकोप दिखाकर नदी का पानी तो उतर जाएगा, लेकिन गरीबों को मुश्किलों के ऐसे 'दलदल' में फंसा दिया कि आंखों के सामने अंधेरा है। ये दो वक्त की रोटी के लिए जीतोड़ मेहनत करने वाले गरीब हैं, जिन्हें इन उत्पाती लहरों के थपेड़े न जाने कब तक सहने पड़ेंगे। पांडु नदी के उफान में घिरे टिकरा गांव के इन चंद ग्रामीणों का ही हाल ये बताने को काफी है कि मुसीबत के मारे बाकी लोगों का भी क्या हाल होगा। कई परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने पाई-पाई जोड़कर गृहस्थी का सामान जुटाया, जो इस बाढ़ में बह गया। पहनने को कपड़े तक नहीं बचे। गनीमत है कि सेवाभावीजनों ने इनका दर्द समझा है, वरना बाढ़ में फंसे गरीबों के तो खाने के भी लाले पड़ जाते।
टिकरा गांव के मोहम्मद इरफान के अपने दिल का दर्द बयां किया। बोले कि मकान टूट गया है। वाहन चलाता हूं। पांच दिन से काम पर नहीं गया हूं। वहां से भी पैसा नहीं मिलेगा और सामान भी बर्बाद हो गया है। चालीस वर्षीय पप्पू की भी यही कहानी थी। उनका कहना था कि मजदूरी करता हूं। पांच दिन से एक पैसा नहीं कमाया है। पूरा परिवार परेशान है। सबकुछ बर्बाद हो गया है। घर में खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। भला हो गांव वालों का, जो हमारे परिवार को खाना खिला रहे हैं।
बाढ़ शिविर जनप्रिय शिक्षा निकेतन इंटर कॉलेज टिकरा में एक कोने में गुड़िया आंखों में आंसू लिए बैठी थी। उसका कहना था कि अब समझ में नहीं आ रहा कि कैसे नए सिरे से जिंदगी शुरू करेंगे। सात बच्चों को लेकर अब कहां रहेगी। तिनका-तिनका करके जो गृहस्थी जुटाई थी। घर में पानी भरा तो बच्चों को लेकर भागे। सामान समेटना भूल गए, जो बाढ़ में डूब गया। कपड़े तक बह गए। केवल जो कपड़े पहने थे, वही बचे हैं।
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बड़े जहां गृहस्थी डूबने और जिंदगी पटरी पर कैसे आएगी, इसको लेकर परेशान थे तो टिकरा गांव की खुशबू, खुशी, नंदनी की जुबां पर मासूम सवाल था। उनका कहना था कि बस्ता पानी में बह गया है। कौन उनकी कॉपी-किताबें देगा। कैसे स्कूल पढ़ने जाएंगे।
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इनका भी दर्द फूटा
सालों से एकत्र की गृहस्थी डूब गई है। गांव के लोगों ने बाहर निकाला। अब फिर से जुटना होगा। कैसे होगा? यही सोच-सोच कर परेशान हूं। सारा सामान डूब गया है। कैसे अपने परिवार को बचाकर लाया हूं।
- राम कुमार ऐसी बाढ़ 17 साल पहले आई थी। उसमें भी इतना पानी नहीं भरा था, जितना इस बार भरा है। 70 साल की हो चुकी हूं। अब चलने में दिक्कत होती है। सबकुछ बर्बाद हो गया है, अब कैसे बाकी जीवन गुजरेगा।
- राशिद बेगम बैकुंठपुर में चारों तरफ से पानी भर गया है। हर तरफ से निकलना मुश्किल हो गया है। लोग एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। घरों से खाना बनाकर ला रहे हैं। हमें तो समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें।
- पम्मी गोस्वामी, बैकुंठपुर
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मदद को आगे आए लोग
टिकरा गांव के ग्रामीणों ने जनप्रिय शिक्षा निकेतन स्कूल व बाबा राइस मिल में शरण ली है। सामाजिक संस्थाएं लोगों की मदद को आगे आई हैं। पूर्व प्रधान राजू तिवारी, प्रधान अगना देवी, सुशील दुबे, संदीप कुशवाह, विमल त्रिवेदी, वरुण पाठक, संतोष त्रिवेदी, के. लाल बाजपेयी, संजय कुमार, शैलेंद्र वर्मा, मान सिंह ने लोगों के भोजन की व्यवस्था की। साथ ही ब्रेड बिस्किट अन्य जरूरी सामान वितरित किया। पिपरा में पूर्व भाजपा सांसद श्याम बिहारी मिश्र द्वारा खाने की व्यवस्था की गई। किशन मिश्र, उमेश दुबे, अमित त्रिपाठी, मोहन लाल दिवाकर, रमेश यादव, अमित पाल ने बाढ़ प्रभावितों के खाने की व्यवस्था की। गांव में कोई भी आला अफसर न पहुंचने से लोगों में आक्रोश है।
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बाढ़ में घिरे गांवों से ग्रामीणों का पलायन
पांडु नदी में उफान से बछऊपुर, पिपरा, भौंतीखेड़ा, सुरार रौतेपुर, सुंदरनगर समेत कई गाव बाढ़ की चपेट में हैं। जिलां प्रशासन नाव लगाकर बाढ़ में फंसे लोगो को बाहर निकालने में जुटा है। पनकी के सुंदर नगर में स्थिति काफी खराब है। भीषण जलभराव के चलते कई घरों में पानी भर गया हैं। लोगों का लगातार पलायन जारी है। कुछ परिवारों ने घर की छतों पर अपना डेरा जमा लिया है।
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बोले ग्रामीण
- पहली बार पाडु नदी का यह रूप देखा है। घर में पानी भरने से सबकुछ बर्बाद हो गया है। घर भी दरक गया है। घर में रखा आनाज भी पानी में सड़ रहा है।
रामदयाल पाल - बाढ़ की तबाही से गाव के खेतों में खड़ी फसल नष्ट हो गई है। घर का सामान भी पानी भरने से खराब हो गया है। बाढ़ के चलते अब सबके सामने अपनी जीविका चलाने का संकट खड़ा हो गया है।
जमुना देवी - बाढ़ के पानी से स्कूल से लेकर खेत-खलिहान तक जलमग्न हैं। जहा एक ओर बर्बादी देखने को मिल रही है, वहीं बच्चों की पढ़ाई भी मारी जा रही है।
अमित त्रिपाठी
- बाढ़ के पानी में बहकर आए कई प्रकार के जलीय जंतु घरों में घुस रहे हैं, जिससे गाव में दहशत का माहौल है। घरों से जहरीले सापों को निकालना पड़ रहा है।
- देवीदीन
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