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Sugar Level : शरीर से बिना खून निकाले पता चल जाएगा शुगर का लेवल, दर्द से भी मिलेगी निजात- IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने तैयार की डिवाइस

Sugar Level Testing Machine थैलेसीमिया के मरीजों में रक्त की जांच बेहद कठिन है। खून का थक्का नहीं बनने की वजह से रक्त का नमूना लेने के बाद सुई लगाने के स्थान पर पट्टी बांधनी पड़ जाती है। एनीमिया के रोगियों के लिए भी रक्त जांच बेहद कष्टकारी है लेकिन अब ऐसी समस्याओं का आसान समाधान मिल गया है।

By Jagran News Edited By: Mohammed Ammar Published: Thu, 09 May 2024 07:30 PM (IST)Updated: Thu, 09 May 2024 07:30 PM (IST)
Sugar Level : बिना खून निकाले पता चल जाएगा शुगर का लेवल, दर्द से भी मिलेगी निजात

अखिलेश तिवारी , कानपुर : आइआइटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा इलेक्ट्रानिक पैच तैयार किया है जो शरीर की त्वचा के संपर्क में रहकर मधुमेह स्तर की जांच कर सकेगा। इलेक्ट्रो केमिकल प्रतिक्रिया पर आधारित इस अनुसंधान में पसीने की बूंदों से रक्त में शर्करा की स्थिति की जांच की जाती है। पैच से की जाने वाली जांच का आंकड़ा भी मोबाइल एप व कंप्यूटर के जरिये सीधे प्राप्त किया जा सकेगा। इस तकनीक को भारत सरकार का पेटेंट प्रमाणन भी मिल गया है।

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थैलेसीमिया के मरीजों में रक्त की जांच बेहद कठिन है। खून का थक्का नहीं बनने की वजह से रक्त का नमूना लेने के बाद सुई लगाने के स्थान पर पट्टी बांधनी पड़ जाती है। एनीमिया के रोगियों के लिए भी रक्त जांच बेहद कष्टकारी है लेकिन अब ऐसी समस्याओं का आसान समाधान मिल गया है।

शरीर के किसी भी हिस्से में लगाकर बता देगा शुगर का लेवल

आइआइटी कानपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. सिद्धार्थ पाण्डा ने ऐसा इलेक्ट्रानिक पैच तैयार किया है जिसे शरीर पर कहीं लगाकर मधुमेह के स्तर को जांचा जा सकेगा। इस पैच में लगे इलेक्ट्रोड की मदद से त्वचा पर आने वाले पसीने में मौजूद रासायनिक कणों की जांच की जाती है।

यह इलेक्ट्रानिक 'पैच' इलेक्ट्रो केमिकल प्रतिक्रिया के सिद्धांत पर काम करता है। इससे मिलने वाले संकेतों का विश्लेषण कर मधुमेह के स्तर का सटीक निर्धारण किया जाता है। आइआइटी कानपुर ने अपने इस अनुसंधान का पेटेंट आवेदन मार्च 2023 में किया था जिसे भारत सरकार ने स्वीकार करते हुए जनवरी 2024 में प्रमाण पत्र जारी भी कर दिया है।

अब तकनीक को बाजार में उतारने की तैयारी

आइआइटी अब इस तकनीक को बाजार में उतारने की तैयारी कर रहा है। तकनीक हस्तांतरण के जरिये निजी कंपनियों को यह पैच उपलब्ध कराया जाएगा। आइआइटी वैज्ञानिकों के अनुसार इस पैच का प्रयोग बार-बार किया जा सकेगा। बार -बार प्रयोग का गुणव होने से भी इसकी वास्तविक कीमत मौजूदा जांच प्रणाली के मुकाबले बेहद सस्ती होने का अनुमान है। इससे बड़ी तादाद में लोग पैच का प्रयोग कर सकेंगे।

पेशेवर दक्षता से आइआइटी ने पेटेंट प्रमाणन प्रक्रिया को किया तेज

आइआइटी कानपुर ने अब तक 1100 से अधिक पेटेंट प्राप्त किए हैं। पिछले साल में 126 नए पेटेंट मिले हैं जबकि भारत सरकार का पेटेंट कार्यालय आवेदन पर अंतिम फैसला करने में 48 माह यानी चार साल का समय लेता है। आइआइटी की कोशिशों से अब एक से डेढ़ साल में पेटेंट मिलने लगे हैं। इनोवेशन एवं इंक्यूबेशन सेंटर के प्रभारी प्रो. अंकुश शर्मा के नेतृत्व में छह विशेषज्ञों की टीम इस काम में लगी है। उन्होंने बताया कि संस्थान के पोर्टल पर आवेदन पत्र मौजूद है जिसमें शोधकर्ता टीम की ओर से आवश्यक जानकारी दी जाती है।

इस आधार पर आइपीआर टीम एक प्रारंभिक (प्रायर आर्ट सर्च ) रिपोर्ट तैयार करती है। इस स्तर पर ही अनुसंधान की मौलिकता और तकनीक की व्यावसायिक उपयोगिता समेत अन्य पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। त्वरित प्रकाशन और त्वरित मूल्यांकन के लिए भी टीम काम कर रही है।

किसी भी संस्थान में पेटेंट की संख्या बढाने के लिए चार तत्वों स्पष्ट नीति, प्रबंधन, बजट और अनुसंधान की निरतंरता आवश्यक है। एक पेटेंट की फाइलिंग और २० वर्ष के मेंटेनेंस पर लगभग ढाई लाख रुपये की फीस खर्च होती है। बजट के अभाव में यह काम धीमा हो जाता है। इसलिए सभी तत्वों के समावेश से सफलता मिलती है।


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