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अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ नहीं होगा.., और इस तरह महाराष्ट्र से लौट सका 18 लोगों वाला परिवार

कन्नौज के ठठिया के गांव में अकेले बूढ़े माता-पिता को महाराष्ट्र में लॉकडाउन में फंसे 18 सदस्यीय परिवार के लौटने का इंतजार था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Fri, 22 May 2020 09:58 AM (IST)Updated: Fri, 22 May 2020 11:06 PM (IST)
अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ नहीं होगा.., और इस तरह महाराष्ट्र से लौट सका 18 लोगों वाला परिवार
अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ नहीं होगा.., और इस तरह महाराष्ट्र से लौट सका 18 लोगों वाला परिवार

कन्नौज, [ज्योति अग्निहोत्री]। हमारे कुछ गुनाहों की सजा भी साथ चलती है, हम अब तनहा नहीं चलती दवा भी साथ चलती है, अभी ज़िंदा है मां मेरी मुझे कुछ नहीं होगा, मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है...। शायर मुनव्वर राणा की ये पंक्तियां, लॉकडाउन में ठठिया के एक परिवार पर सटीक बैठती हैं।

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महाराष्ट में फंसे बेटों, बहुओं और पौत्र-पौत्रियों वाले 18 लोगों के परिवार की सलामती की दुआ कन्नौज के गांव में बैठी बूढृी मां भगवान के सामने अखंड ज्योति जलाकर मांगती रही। दुआ कबूल भी हुई और जब परिवार सलामत गांव लौटा तो बच्चों को सामने देखकर बूढ़ी आंखों में खुशी के आंसू इस कदर बहे कि रुकने का नाम नहीं लिए। मासूम बच्चे भी दादा-दादी के सीने से चिपककर सुबक उठे। ये कहानी अकेले कन्नौज के गांव में रहने वाले एक परिवार की नहीं है बल्कि दूसरे प्रांतों में परिवार लेकर रहे हर उस प्रवासी कामगार की होगी, जिनके माता-पिता इस संकट के दौर में उनकी वापसी की बाट जोह रहे हैं या फिर वो अब घर लौट चुके हैं।

बूढ़े माता-पिता गांव में और 18 लोगों का कुनबा था महाराष्ट्र में

कन्नौज के ठठिया अंतर्गत बहादुरापुर गांव निवासी परशुराम दोहरे के तीन बेटे द्वारिका, ज्ञान सिंह और रघुनन्दन पिछले 20 साल से महाराष्ट्र प्रांत के जिला वीड के कस्बे परली बैजनाथ धाम में रहकर कुल्फी बेचने का काम करते थे। उनके तीनों बेटे, बहुएं और पौत्र-पौत्रियाें समेत परिवार सभी 18 लोग वहीं रह रहे थे। कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने और लॉकडाउन की जानकारी पर अकेले रह रहे परशुराम और उनकी पत्नी रामबेटी बेहाल हो गए। पूरे परिवार की सलामती के लिए रामबेटी इश्वर से प्रार्थना करने लगीं। किसी ने अखंड ज्योति की सलाह दी तो उन्होंने नवरात्रि पर अखंड ज्योति प्रज्जवलित की और परिवार के घर न लौट आने तक अनवरत पूजा का संकल्प लिया।

परिवार काे देखने के लिए बेहाल बूढ़ी मां की आंखों की नींद चली गई। वह दिन रात बस इश्वर से बहू-बेटों के परिवार की सलामती की दुआ मांगती रहीं। 18 मई देर रात बहूएं और बेटे बच्चों के साथ सामने पहुंचे तो माता-पिता की बूढ़ी आंखें छलछला उठीं। मासूम बच्चे भी दादा-दादी से चिपककर खूब रोए। बेटों और बहूओं ने पैर छूकर मां-पिता का आशिर्वाद लिया तो सबका गला रुध गया और आंखों में आंसू की धारा बह पड़ी।

कुछ यूं बीते परिवार के दिन

द्वारिका ने बताया कि 25 मार्च को लॉकडाउन लगा तो उनका व्यापार बंद हो गया, जमा पूंजी से 15 दिन तक तो परिवार का पेट भरा लेकिन फिर मुश्किलों ने घेरना शुरू कर दिया। इसके बाद दोनों समय का खाना बैजनाथ धाम के भंडारे में मिलता रहा। मुसीबत में देख मकान मालिक ने बकाया चार माह का किराया भी नहीं लिया। परिवार में छह छोटे बच्चे (4 माह और 3 साल) के थे, जिनका पेट भरना मुश्किल होने लगा था। उन्हें दूध पिलाने के लिए मोहल्ले वालों से चंदा लेते थे। 15 दिन पहले मकान मालिक ने टिकट बुक कराई और वीड रेलवे स्टेशन से 16 मई रात दो बजे यूपी के बाराबंकी जिले के लिए चली ट्रेन में सभी सवार हो गए।

सभी की थर्मल स्क्रीनिंग के बाद ट्रेन में बैठने दिया गया। बाराबंकी पहुंचने के बाद रोडवेज बस से कन्नौज पहुंचे। द्वारिका कहते हैं कि जरूर कोई अच्छे कर्म किए होंगे जो सही सलामत परिवार घर आ गया, शायद ये मां के आशिर्वाद और प्रार्थना से संभव हुआ है। मां रामबेटी बताती हैं कि उन्होंने मौनती मानी थी, अब अपने जिंदा रहते कभी भी परिवार को बाहर काम करने नहीं जाने देंगी। यहां पर बच्चे भले ही मजदूरी करें या सब्जी बेंचे लेकिन अब दोबारा नहीं भेजूंगी।


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