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ड्रेनेज का दम : स्मार्ट सिटी कानपुर का चौंकाने वाला सच, 80 फीसद क्षेत्र में नहीं ड्रेनेज सिस्टम

अंग्रेजों के समय बनाए गए सिस्टम को सीवर लाइन से जोड़कर पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया है और नए इलाके में जल निकासी की व्यवस्था सिर्फ दिखावा ही साबित हो रही है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Thu, 03 Sep 2020 12:38 PM (IST)Updated: Thu, 03 Sep 2020 12:38 PM (IST)
ड्रेनेज का दम : स्मार्ट सिटी कानपुर का चौंकाने वाला सच, 80 फीसद क्षेत्र में नहीं ड्रेनेज सिस्टम
ड्रेनेज का दम : स्मार्ट सिटी कानपुर का चौंकाने वाला सच, 80 फीसद क्षेत्र में नहीं ड्रेनेज सिस्टम

कानपुर, [राहुल शुक्ल]। मेट्रो सिटी...स्मार्ट सिटी जैसे शब्द कानपुर की नई पहचान हैं। यह बात अलग है कि यहां के विकास की तस्वीर में एक अधूरापन है, जो आज तक पूरा न हो सका-ड्रेनेज सिस्टम। बारिश थोड़ा सा भी जोर दिखा दे तो शहर का दो तिहाई से ज्यादा भाग जलभराव के दर्द से बिलबिला उठता है।

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शहर के सिर्फ 20 फीसद इलाकों में ड्रेनेज सिस्टम है। शहर का 80 फीसद हिस्सा अपनी खता पूछ रहा कि इतने वर्षों से ड्रेनेज सिस्टम से क्यों दूर रखा गया है। शासन-प्रशासन से लेकर सरकार में बैठे लाेग क्यों अनदेखी करते चले आ रहे हैं। बस शहर की बसावट और आबादी बढ़ती रही जबकि जल निकासी के प्रबंध सिकुड़ते रहे। सबसे बुरा हाल साउथ का है, जहां ड्रेनेज सिस्टम की हकीकत नजर आती है। आठ जुलाई को हुई बरसात में यहां आधे से ज्यादा इलाका जलमग्न हो गया था।

विरासत में जो मिला, उसे बर्बाद कर दिया

योजनाओं के तहत ड्रेनेज सिस्टम का काम केवल दिखावा बनकर रह गया। नए का तो अता-पता नहीं, अलबत्ता अंग्रेजों के समय का जो ड्रेनेज सिस्टम था, उसे भी ध्वस्त कर दिया गया। अव्यवस्थित प्लानिंग के चलते अंग्रेजों के बनवाए नालों को सीवर से जोड़ दिया। इसके चलते नालों में तय क्षमता से ज्यादा लोड है। बारिश का पानी बढ़ने पर नाले अोवरफ्लो हो जाते हैं अौर पानी निकासी बंद हो जाती है। बरसाती अौर सड़क पर निकलने वाले पानी की निकासी के लिए अंग्रेजों ने नालों व डाट नाले का जाल बिछाया था। डाट नालों की मियाद खत्म होने लगी है। ये कई जगह जर्जर या ध्वस्त गए हैं, इसके चलते निकासी बंद हो गई।

अंग्रेजों ने की थी ऐसी व्यवस्था

शहर की बसावट वर्ष 1800 के बाद शुरू हुई। अंग्रेजों ने शहर को औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित करना शुरू किया तो मूलभूत सुविधाओं का विकास होता गया। बरसाती पानी की निकासी के लिए वर्ष 1892 में सीसामऊ नाला बनाया। इसके आसपास शहर बसना शुरू हो गया। जानकार बताते हैं कि जब सीसामऊ नाला बना, तब आबादी डेढ़ से दो लाख आबादी होगी। 128 साल बाद भी सीसामऊ नाला शहर का 15 फीसद ड्रेनेज सिस्टम संभाले हुए है। शहर की बसावट अब 266.89 वर्ग किमी हो गई है। आबादी 45 लाख हो गई। इसके बाद भी 80 फीसद शहर ड्रेनेज सिस्टम की कमी से जूझ रहा है।

ब्रिटिश काल में बने बड़े नाले

जेल नाला, भगवदास घाट नाला, गुप्तार घाट नाला, सरसैया घाट, मैकराबर्टगंज नाला, डबका नाला, बंगाली घाट नाला, वाजिदपुर नाला, बुढ़िया घाट नाला, मकदूम नगर घाट, गोल्फ क्लब नाला, सीसामऊ नाला, टैफ्को नाला, परमट नाला, रानी घाट नाला, एसडी कॉलेज नाला, विष्णुपुरी नाला, एलेन फारेस्ट नाला, जू नाला, चिड़ियाघर का नाला, जू नाला

बाद में बने बड़े नाले

पनकी सीओडी नाला एक व दो, आईईएल नाला, हलवाखाड़ा नाला, गंदा नाला, सब्जी मंडी साकेत नगर, आइटीआइ नाला, अवधपुरी नाला विकास नगर, अवधपुरी नाला यूपीसीडा, विश्वविद्यालय नाला, केस्को काॅलोनी नाला, बरसाइतपुर नाला। थोड़ी देर की बारिश में ओवरफ्लो होकर ये भी जवाब दे जाते हैं।

  • ड्रेनेज सिस्टम शुरू हुआ - 1892
  • पहला नाला बना - सीसामऊ
  • आबादी तब थी - दो लाख
  • अब बसावट हो गई- 266.89 वर्ग किमी
  • आबादी - 45 लाख से ज्यादा

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