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शर्मनाक! शहीदों की यादगार में भी भ्रष्टाचार

मेस्कर घाट में साल भर पहले बने शहीद स्तंभ की टाइलें टूटीं दरका पार्क का निर्माण - छावनी की सभासद ने की घटिया निर्माण की शिकायत सीईओ बोले करवाएंगे जांच

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 01:40 AM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 06:06 AM (IST)
शर्मनाक! शहीदों की यादगार में भी भ्रष्टाचार
शर्मनाक! शहीदों की यादगार में भी भ्रष्टाचार

जागरण संवाददाता, कानपुर : आरोप अगर सच हैं तो बेहद संगीन और शर्मनाक है। देश को आजाद कराने के लिए जिन्होंने हंसते हंसते फांसी का फंदा गले में डाल लिया। उन शहीदों के स्मारक को भी भ्रष्टाचार ने नहीं छोड़ा। मेस्कर घाट पर बने शहीद स्तंभ के टाइल्स एक साल के भीतर ही टूट गए। पार्क में अन्य निर्माण भी दरक गया। शिकायत हुई तो छावनी परिषद के सीईओ जांच कराने की तैयारी में हैं।

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1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने सत्तीचौरा घाट स्थित पीपल के पेड़ों पर 167 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सामूहिक रूप से फासी दे दी थी। जिस घाट पर स्थित बरगद में फांसी दी गई, इसी कत्लेआम की वजह से ही इस घाट का नाम मेस्कर घाट पड़ा। इन अनाम शहीदों की यादगार में छावनी परिषद ने दो साल पहले शहीद स्तंभ और शहीद पार्क बनवाने का फैसला लिया था। इस काम का ठेका दो हिस्सों में दिया गया था। साढ़े सात लाख रुपये में शहीद स्तंभ बनाया तो 22 लाख रुपये में पार्क बनाया गया। अभी इस निर्माण को बमुश्किल साल भर ही हुआ है, लेकिन शहीद स्तंभ एक स्थान पर धंस गया है। टाइल्स टूट गए हैं। वहीं पार्क के हालात भी खराब हैं। अधिकांश निर्माण दरक चुके हैं। विश्राम झोपड़ी पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी हैं। पार्क के गेट टूट चुके हैं। ऐसे में लगभग 30 लाख रुपये खर्च करके भी छावनी परिषद को शहीदों के सम्मान की रक्षा नहीं कर पा रहा है।

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ये है इन शहीदों की कहानी राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के मुताबिक सन् 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के कदम कानपुर से उखड़ गए। करीब 3700 अंग्रेजी सैनिक और परिवारीजन 40 बड़ी नाव में बैठकर बिठूर से कोलकाता के लिए निकले। नाविकों का नेतृत्व समाधान निषाद और लोचन निषाद कर रहे थे। इलाहाबाद के करीब श्रंगवेरपुर में हुई एक घटना से नाविकों का आत्मसम्मान जाग उठा। गंगा में पानी कम होने का बहाना बनाकर नाविक अंग्रेजों को वापस बिठूर की ओर ले आए। दावा है कि नावें जैसे सत्तीचौरा घाट के पास पहुंचीं, नाविकों ने कुल्हाड़ियों से नावें तोड़ दीं। नावों में पानी भरने से अंग्रेज गंगा में डूब गए। इसके बाद सत्तीचौरा घाट के आसपास रहने वाले निषाद समुदाय का क्रूर दमन शुरू हुआ। दावा है कि 27 जून 1857 को अंग्रेजों ने सत्तीचौरा घाट स्थित पीपल के पेड़ों पर 167 लोगों को सामूहिक रूप से फासी दे दी थी। इस मामले में कई बार मैने सीइओ छावनी परिषद से शिकायत की है। उनसे निर्माण की जांच की मांग की है। अगर जांच हो तो दूध का दूध पानी का पानी साफ हो जाएगा।

प्रस्तावना तिवारी, सभासद शिकायत मिली है, जांच कराई जाएगी। हालांकि सार्वजनिक क्षेत्रों में सरकारी संपत्ति की बदहाली के पीछे आम लोगों की लापरवाही भी कारण है। लोग ही निर्माण को नुकसान पहुंचाते हैं।

अरविंद कुमार द्विवेदी, सीईओ


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