शहीदे-ए-आजम भगत सिंह ने कानपुर को बनाया था क्रांति का केंद्र
1924 में आए थे शहर, ढाई साल तक प्रताप अखबार में बलवंत नाम से की थी पत्रकारिता
जागरण संवाददाता, कानपुर : इतिहास के पन्ने जब भी पलटे जाएंगे, उनमें कानपुर का नाम उभरा हुआ नजर जरूर आएगा। शुक्रवार यानी 28 सितंबर को शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्मदिन मनाया जा रहा है। इस संदर्भ में बात करें तो आजादी पर प्राण न्योछावर करने वाले भारत मां के इस सपूत से भी क्रांतिभूमि कानपुर का सीधा रिश्ता जुड़ जाता है। उन्होंने यहीं कलम और हथियार से जंग-ए-आजादी को धार दी थी।
सरदार भगत सिंह की गतिविधियों की इस शहर से गहरी यादें जुड़ी हैं। इतिहास की तमाम किताबों में यह हकीकत दर्ज है। 28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह 1924 में कानपुर आए थे। तब कानपुर गांधीवादी विचारधारा के साथ ही क्रांतिकारी सोच रखने वाले आजादी के मतवालों का गढ़ था। बेशक, इस शहर को अंग्रेज सुरक्षित और अहम ठिकाना मानते थे, लेकिन क्रांतिकारियों के लिए भी यह सुरक्षित और भरोसेमंद पनाहगाह थी। इतिहासकार प्रो. एसपी सिंह बताते हैं कि भगत सिंह ने यहां लगभग ढाई वर्ष तक गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार प्रताप में नौकरी की थी। वह बलवंत सिंह के छद्म नाम से लिखा करते थे। वह लेख नौजवानों को स्वतंत्रता संग्राम के प्रति प्रेरित करने वाले होते थे। उल्लेख है कि भगत सिंह यहां फीलखाना स्थित प्रताप प्रेस के अलावा रामनारायण बाजार में रहे। कानपुर में रहते हुए ही उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, फणींद्रनाथ घोष, बिजॉय कुमार सिन्हा, शिव वर्मा और यशपाल जैसे क्रांतिकारियों से हुई। आजादी के यह दीवाने कानपुर से ही अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाया करते थे। शहर के युवा भी उनसे काफी प्रभावित थे।