'सवा सेर गेहूं' की तलाश, कीमत 20 साल की कैद
20 साल से उसके घर बंधुआ मजदूरी का दंश सहता रहा।
जागरण संवाददाता, कानपुर : मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'सवा सेर गेहूं' में एक ऐसे गरीब किसान शंकर का दर्द है, जो सवा सेर गेहूं का कर्ज जीवन भर न उतार सका और मरने के बाद उसके बेटे को महाजन के घर बंधुआ मजदूरी करनी पड़ी। दिल को झकझोर देने वाली यह कहानी 100 साल पहले के भारत की तस्वीर दिखाती है, मगर 21वीं सदी में भी शंकर और महाजन जैसे किरदार जीवंत है। शुक्रवार को ऐसी ही एक कहानी फिर सामने आई, जिसमें परिवार के लिए सवा सेर गेहूं का इंतजाम करने निकला पश्चिम बंगाल का गोलू 22 साल पहले फतेहपुर के जाफरगंज थाना के अंगदपुर निवासी दबंग के शिकंजे में ऐसा फंसा कि छूट न सका। 20 साल से उसके घर बंधुआ मजदूरी का दंश सहता रहा। किस्मत पलटी और नौकरी के लिए घाटमपुर भेजे जाने पर उसके घर लौटने का रास्ता मिला। मृत मान चुके बेटे से मिला तो आंखें छलक पड़ीं। शुक्रवार को वह अपने पिता को साथ ले गया, मगर पीछे तमाम सवाल भी छोड़ गया।
पश्चिम बंगाल के दिजनापुर के गांव गोपाल भट्टी निवासी 60 वर्षीय गोलू 22 साल पहले काम की तलाश में निकले थे। आठ व छह साल के बेटों सनातन, शांतनु और तीन साल की एक बेटी की भूख और तड़प ने उन्हें बाहर जाने को मजबूर कर दिया था। नागपुर की एक सरिया फैक्ट्री में काम के दौरान फतेहपुर के अंगदपुर निवासी सुपरवाइजर मिला। वह दो साल तक गोलू की कमाई अपने पास रखे रहा और पैसा देने का बहाना कर उसे अंगदपुर ले गया। बकौल गोलू गांव में दबंग ने उसे बंधुआ बना लिया। भागने पर पिटाई की जाती थी। 10 साल पहले भागने पर उसे कुएं में उल्टा लटका दिया गया। वहां एक वक्त की सूखी की रोटी ही उसकी किस्मत थी और हारकर उसने भागने की कोशिश नहीं की।
ऐसे हो सका परिवार से मिलन
पिछले दिनों दबंग के घाटमपुर निवासी एकमित्र ने अपने मुरलीपुर स्थित स्कूल के लिए गार्ड का इंतजाम करने को कहा। दबंग ने आठ हजार रुपये मासिक वेतन पर गोलू को भेजा। काम गोलू करता और वेतन दबंग ले जाता था। 15 दिन पहले एक और गार्ड स्कूल में आया तो गोलू ने उसे व्यथा बताई। गार्ड ने ग्रामीणों को बताया तो उन्होंने गोलू से पूछताछ कर उसके गांव के थाने बालूरघाट को सूचना दी। बालूरघाट पुलिस ने गोलू के स्वजन को बताया तो उन्हें सहसा यकीन नहीं हुआ। वीडियो कॉलिग के बाद बेटा सनातन अपनी बुआ के बेटे कार्तिक संग गुरुवार को कानपुर पहुंचा। पुलिस से जानकारी पर आदिवासियों के लिए काम करने वाली संस्था आशा ट्रस्ट के महेश पांडेय भी आए और सनातन संग शुक्रवार को घाटमपुर पहुंचे।
मिलन देख हर आंख नम
पिता-पुत्र का मिलन देख वहां मौजूद लोगों की आंखें नम हो गईं। दोपहर बाद कानपुर सेंट्रल से दिल्ली-अलीपुरद्वार ट्रेन से गोलू स्वजन से मिलने पश्चिम बंगाल रवाना हो गए।
ग्रामीणों ने चंदा करजुटाया किराया
सनातन ने बताया कि गांव वालों को जब उनके पिता के जिदा होने की जानकारी मिली तो उन्होंने चंदा कर ट्रेन के किराए और रास्ते के खर्च के पांच हजार रुपये दिए।