बिल व वाउचर प्रिंट के कारोबार पर संकट
जागरण संवाददाता, कानपुर : हर वर्ष मार्च का महीना बिल व वाउचर प्रिंट करने वालों के लिए कुछ खास ह
जागरण संवाददाता, कानपुर : हर वर्ष मार्च का महीना बिल व वाउचर प्रिंट करने वालों के लिए कुछ खास होता था। इन्हें सोने तक का मौका नहीं था लेकिन आज माहौल बदला हुआ है। ये कारोबारी काम तलाश रहे हैं पर कुछ लेटर पैड और कच्ची बिल बुक के अलावा उनके पास कोई काम नहीं बचा है। पिछले वर्षो के मुकाबले बाजार एक-चौथाई ही बचा है। इसका असर सिर्फ प्रिंटर्स पर ही नहीं कागज विक्रेता, बाइंडर और डिजाइनर पर भी दिख रहा है। कारोबारियों के मुताबिक अब उन्हें दूसरा काम तलाशना पड़ेगा।
वैट लागू होते ही यह काम जबरदस्त बढ़ा था। टैक्स व सेल इनवाइस, चालान की कापियां अनिवार्य हो गई थीं। इसमें भी हर रसीद के तीन पन्ने थे, जिससे एक रसीद खरीदार, दूसरी ट्रांसपोर्टर और तीसरी विक्रेता के पास रहे। प्रिंटर का काम बढ़ा तो डिजाइनर, बाइंडर, कागज विक्रेताओं के यहां भीड़ दिखने लगी। पिछले वर्ष मार्च में भी काफी काम रहा क्योंकि कारोबारियों को उम्मीद थी कि जीएसटी लागू करने की तिथि टल सकती है। जीएसटी लागू होने के बाद खरीद-बिक्री कंप्यूटराइज्ड बिल पर हो रही है, इसलिए बिल और वाउचर की जरूरत नहीं बची। ज्यादातर पंजीकृत कारोबारी कंप्यूटराइज्ड बिल निकाल रहे हैं। अपंजीकृत ही कच्ची बिल बुक बनवा रहे हैं। डेढ़ अरब रुपये सलाना का यह कारोबार अब 25 फीसद भी नहीं बचा है। इससे पांच हजार से ज्यादा बिल बुक व वाउचर बनाने वाले परेशान हैं।
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कारोबारी लगा रहे कंप्यूटर
एचएसएन कोड की अनिवार्यता से ज्यादातर कारोबारी अपने प्रतिष्ठान में कंप्यूटर सिस्टम लगा रहे हैं क्योंकि कारोबारी सभी एचएसएन कोड याद नहीं रख सकता। इससे भी इनके कारोबार पर असर पड़ रहा है।