पढि़ए, डॉयरेक्टर निखिल की जुबानी क्यों और कैसे बनाई BATLA HOUSE, आखिर क्या है सच्चाई Kanpur News
दसवें जागरण फिल्म फेस्टिवल में आए निर्माता निर्देशक निखिल आडवाणी ने फिल्मी सफर और अनुभवों को साझा किया।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। अलग जॉनर की फिल्में बनाने के लिए मशहूर निर्माता-निर्देशक निखिल आडवाणी ने जागरण फिल्म फेस्टिवल के दसवें संस्करण में शिरकत की और अपने फिल्मी सफर के किस्से सुनाए तो फिल्मी अनुभवों से भी रूबरू कराया। कानपुर इतना भाया कि दोबारा वापस आकर फिल्म बनाने की बात भी कही। उनकी आने फिल्म बाटला हाउस और उनके अनुभवों को लेकर हुई संवाददाता सैय्यद अबू साद से वार्ता के कुछ अंश...।
रिसर्च के बाद बनाई बाटला हाउस
निर्माता-निर्देशक निखिल आडवाणी की फिल्म बाटला हाउस 15 अगस्त को रिलीज हो रही है। इसमें सात सदस्यीय दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और संदिग्ध इंडियन मुजाहिद्दीन आतंकियों के बीच शूटआउट की कहानी है, जो कथित तौर पर 13 सितंबर, 2008 के दिल्ली सीरियल बम धमाकों में शामिल थे। निखिल बताते हैं कि ये घटना मेरे दिमाग में हमेशा जीवंत रही। कुछ लोगों का कहना था कि ये एनकाउंटर फर्जी है। यह बात दीगर है कि सभी ने इसे अपने-अपने नजरिए से देखा। अच्छी बात ये रही कि बातों-बातों में मैनें अपने मित्र रितेश शाह से इसके बारे में बात की। रितेश जामिया के स्टूडेंट रहे थे, इसलिए उन्हें इस बारे में व्यापक जानकारी थी। उन्होंने कुछ बातें बताईं। इस पर मैनें कहा कि मुझे सबकुछ जानना है।
घटना कवर करने वाले पत्रकारों से भी मिला
निखिल ने बतया कि दो साल लगे फिल्म बनाने का फैसला लेने में। दो-तीन साल रिसर्च में गुजर गए। वहां के लोगों से मिला, उस एरिया में घूमा, इस घटना को जिन पत्रकारों ने कवर किया था, उनसे मिलकर तथ्य जुटाए। जब लगा कि मैं हर पक्ष को समझ पाने में सफल हो गया हंू तब फिल्म निर्माण शुरू किया। रितेश से स्क्रिप्ट लिखने को कहा। रितेश पहले भी मेरे साथ डीडे और एयरलिफ्ट में काम कर चुके हैं, इसलिए मुझे पता था कि वे ही इसे मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं।
फिल्म में हर पहलू को दिखाया
फिल्म में हमने तीन वर्जन दिखाए हैं। पहला वर्जन दस बाई दस के कमरे में अचानक यह सब कैसे होता है इस पर फोकस किया। दूसरा, जामिया के टीचर्स, स्टूडेंट, वकील और इस मामले को सपोर्ट कर रहे लोगों पर आधारित है। इनका मानना है कि वे आतंकी नहीं थे। फिल्म मेंं तीसरा वर्जन है, कोर्ट के जजमेंट पर है। हमने हर पहलू को दिखाने का प्रयास किया है।
सोशल मीडिया के सहारे जजमेंट ठीक नहीं
निखिल कहते हैं अब आगे का निर्णय दर्शकों को करना होगा, क्योंकि फिल्म देखकर वही सच या झूठ का फैसला करेंगे। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि लोग बहुत जल्द जजमेंट ले लेते हैं। हम सोशल मीडिया को हथियार की तरह यूज करते हैं, यह कतई ठीक नहीं है। सबकी अपनी बातें होती हैं, राजनीति अपनी तरह से बात करती है। ऐसे में ब्लैक एंड व्हाइट के बीच का जो ग्रे एरिया है, उसमें सच्चाई दब जाती है। हम भूल जाते हैं कि वो सच्चाई उन लोगों से जुड़ी है जो उसमें शामिल थे। उन पुलिस वालों को 2008 में छह गैलेंट्री अवार्ड मिले थे, ठीक उसके बाद उनको मर्डरर कहा जाने लगा। हमें उसे भी तो देखना चाहिए।
भूमिका के लिए जॉन बिल्कुल फिट
निखिल कहते हैं बटाला हाउस में इस भूमिका के लिए मैनें जॉन को नहीं चुना, बल्कि जॉन ने मुझे चुना है। मैं काफी सालों से इस पर काम कर रहा था। पिछले साल हम सत्यमेव जयते पर काम कर रहे थे, तभी जॉन ने पूछा कि अगली फिल्म कौन सी है, तो मैंने उन्हें बाटला हाउस के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मुझे इस तरह की फिल्में पसंद हैं। कहानी सुनने की पेशकश की और फिल्म और मुझे डायरेक्टर के तौर चुन लिया। जॉन अब्राहम न सिर्फ मेरे अच्छे दोस्त हैं, बल्कि बहुत मेहनती और स्वभाव से शालीन भी हैं। इस फिल्म के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है। वह पुलिस अफसर की भूमिका में हैं।
अपना कलेवर बदल लिया
मैं हमेशा दूर की सोचता हूं। मैं बहुत लकी था कि यश जौहर के साथ काम करने का मौका मिला, आदित्य जी के साथ लव स्टोरी फिल्मों पर बहुत काम किया। धर्मा प्रोडक्शन छोडऩे के बाद मैंने सोचा डायरेक्टर के तौर पर मेरी पहचान क्या है? लव स्टोरी ही क्यों? बाकी ऑडियंस क्यों नहीं? और फिर मैंने अपना कलेवर बदल लिया। मैंने सुधीर मिश्रा के साथ काम किया है। रेनू सलूजा से एडिटिंग सीखी है। रोमांटिक, कॉमेडी, एक्शन फिर दिल्ली सफारी जैसी एनीमेशन फिल्म भी बनाई है।
काम कर गया फॉर्मूला
जब मैंने डीडे बनाई तो उसे बनाते समय मेरे कॅरियर में बहुत कुछ हो चुका था इसलिए उसमें सबकुछ ट्राई किया। उस समय मैं इतना काम कर चुका था कि मेरे पास खोने को कुछ था नहीं। फिल्म में मैंने खुद को किसी चीज में बांधकर नहीं रखा। सोचा कि मेरे पास इरफान, ऋषि कपूर जैसे दिग्गज हैं इसलिए इसे बिल्कुल रियल बनाते हैं। वो फॉर्मूला काम कर गया। लोगों ने कहा कि तुम्हारा असली जोन यही है।
सवाल करना सीखें
सोशल मीडिया के इस दौर में पब्लिक को जो दिखता है वो उस पर एक राय बना लेती है। इसलिए मैं चाहता हूं कि ऑडियंस जब ये फिल्म देखकर बाहर निकले तो एक समझ लेकर जाए कि बिना सारे फैक्ट जाने, हम जिन पर सवाल करते हैं, क्या वे सही हैं? क्योंकि जब कोई आपसे बोले कि ये हुआ है तो हमें उस समय सवाल करना चाहिए कि क्या वाकई यही हुआ है? हमें कोई भी निर्णय लेने से पहले हर चीज को समझना जरूर चाहिए। बाटला हाउस का 2011 का जो फैसला है वहां तक मैंने इसमें दिखाया है, क्योंकि केस अभी चल रहा है।
दर्शकों के सवाल, निखिल के जवाब
बाटला हाउस का सबसे यादगार सीन कौन सा रहा?-अद्वितीय वर्मा
मैं जब एंकाउंटर के कमरे वाला सीन शूट करने गया तो मैंने सबको बोल दिया कि हमें नहीं पता कि अंदर क्या हुआ था? कैसे अंदर लड़कों को गन उठाना है या रिएक्शन देना है, कोई स्क्रिप्ट नहीं है। एक्टर को कुछ सिखाना नहीं है, जो जैसा भी रिएक्शन दे बस कमरे में जाना है और शूट स्टार्ट कर देना है। वो सीन बिना स्क्रिप्ट के किया गया, ताकि रियल लगे।
आपने ये सब्जेक्ट क्यों चुना?-तारिक खान
मैं नहीं जानता हूं कि मैंने जो बनाया है वह सही है या गलत। पब्लिक में जो सामग्री उपलब्ध है, जो राय उपलब्ध है। बस उसे ही दिखाया है। मैंने कई जर्नलिस्ट से बात कि जो उस समय थे। मैंने देखा कि जो भी इंवाल्व है उनको जाने बिना अपनी राय देना गलत है। मैं बस यही समझाना चाहता हूं।
जब बड़े बजट की फिल्में असफल हो जाती है तो कैसा लगता है?-अनिल
जान निकल जाती है जब शुक्रवार को आप अखबार खोलते हो और देखते हो कि क्रिटिक्स ने एक स्टार दिए हैं। एक फिल्म बनाने में लंबा समय लगता है, लेकिन शुक्रवार को मार पड़ती है सोमवार को हम फिर से काम पर लौट जाते हैं।
अपनी फिल्मों में से कौन सी आपकी फेवरेट है?-दिव्या शुक्ला
कल हो न हो मेरी फेवरेट फिल्म है, क्योंकि वो निर्देशक के तौर पर मेरी पहली फिल्म थी। देल्ही सफारी इसलिए पसंद है क्योंकि वो मेरी इकलौती ऐसी फिल्म है जो मेरी बेटी ने देखी है।
महिलाओं के लिए कोई फिल्म नहीं बनाई?-अनीता
मेरी कंपनी दो महिला केंद्रित बायोपिक पर काम कर रही है। एक गुजरात में ग्रामीण बैंक बनाने वाली महिला और दूसरी एक महिला पुलिस अफसर पर आधारित है।
वादा है वापस आऊंगा कानपुर
मैं कानपुर को बहुत पसंद करता हूं। पहले भी आया हूं। मेरे बहुत अजीज दोस्त शाद अली और विजय कृष्ण आचार्य भी इसी शहर से हैं। शाद मुझसे हमेशा कहता है कि कहां मुंबई का खाना खाते हो, एक बार कानपुर का खाना खाकर भी तो देखो। मौसम की वजह से फ्लाइट लेट हो गई वरना मैं बहुत कुछ सोचकर आया था। वादा करता हूं कि यहां फिर आऊंगा। सवाल-जवाब सेक्शन में जब जेएफएफ का संचालन कर रहे अमित शर्मा ने उनसे पूछा कि आपने लखनऊ में फिल्म बनाई है तो कानपुर में क्यों नहीं? इस पर निखिल आडवाणी ने कहा कि मैं सबके सामने आपको गारंटी देता हूं कि अगली फिल्म मैं कानपुर में ही करूंगा। मेरी टीम में बहुत सारे कानपुर के लोग शामिल हैं।
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