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फिर बिगड़ गई शहर की आब-ओ-हवा, देश के टॉप टेन में शामिल हुआ कानपुर

खतरनाक गैसों का अत्याधिक घनत्व सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 21 Dec 2019 12:42 PM (IST)Updated: Sat, 21 Dec 2019 12:42 PM (IST)
फिर बिगड़ गई शहर की आब-ओ-हवा, देश के टॉप टेन में शामिल हुआ कानपुर
फिर बिगड़ गई शहर की आब-ओ-हवा, देश के टॉप टेन में शामिल हुआ कानपुर

कानपुर, जेएनएन। शीतलहर और अत्याधिक ठंड के साथ ही हवा में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ गई है। वायु गुणवत्ता सूचकांक एकदम से बिगड़ गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक कानपुर प्रदूषित शहरों की सूची में दसवें स्थान पर पहुंच गया है। पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5), नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओटू), सल्फर डाईऑक्साइड (एसओटू) आदि गैसें खतरनाक स्तर पर पहुंच गई हैं। इनका अत्याधिक घनत्व सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नेहरू नगर स्थित मॉनीटरिंग स्टेशन से शुक्रवार की शाम इंटरनेट बंद होने से छह बजे के बाद डेटा जारी नहीं हो सका।

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तेजी से बढ़ रहे अस्थमा रोगी

प्रदूषण से अस्थमा के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में उत्तर प्रदेश सबसे प्रदूषित है, इसलिए अस्थमा के रोगी अधिक हैं। वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राज तिलक ने एक कार्यशाला में बताया कि प्रदूषण की वजह से उत्तर प्रदेश अस्थमा रोगियों के लिए संवेदनशील है। हाईवे से 50 मीटर अंदर और घनी आबादी में अस्थमा का खतरा अधिक होता है, क्योंकि वायुमंडल में घुलित महीन कण फेफड़ों के जरिए सीधे खून में चले जाते हैं। इसके इलाज में लापरवाही बरतने से फेफड़े की गंभीर बीमारी क्रॉनिक आब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) में तब्दील हो जाता है।

गलत इलाज से स्थिति होती गंभीर

सर्वे में पाया गया है कि 26 फीसदी मामलों के लिए डॉक्टर जिम्मेदार होते हैं। गलत डायग्नोसिस एवं इलाज से स्थिति गंभीर हो जाती है। अस्थमा को हल्के में लेने वाले 37 फीसदी वयस्क गंभीर स्थिति में पहुंच जाते हैं। शहर में प्रदूषण के जो हालात हैं, उससे हर साल 15 फीसदी अस्थमा रोगी बढ़ रहे हैं। इसमें 20 साल से कम के उम्र बच्चे हैं। मरीजों को यह कतई नहीं छिपाना चाहिए कि उन्हें अस्थमा है। इसमें दवाओं के साथ इन्हेलर थेरेपी कारगर है।

नाक के जरिए जाते हैं सूक्ष्म कण

वरिष्ठ चेस्ट फिजीशियन डॉ. राजीव कक्कड़ ने बताया कि नाक के जरिए सूक्ष्म कण शरीर के अंदरूनी भाग में जाकर लोगों को गंभीर बीमार बनाते हैं। देश में दुनिया के 11 फीसदी अस्थमा रोगी हंै। इनमें से 42 फीसदी हर साल दम तोड़ देते हैं। अस्थमा के इलाज में दवाओं के अपेक्षा इन्हेलर कारगर हैं। यह भ्रम है कि एक बार इन्हेलर लेने से जिन्दगी भर लेना पड़ता है। इन्हेलर जिन्दगी बचाने का काम करते हैं। नीले के साथ ही भूरा इन्हेलर लेने से ही अस्थमा से बचाव संभव है।

कानपुर में वायु प्रदूषण की स्थिति

गैस               मात्रा

पीएम 2.5       375

एनओटू            88

एसओटू            16

सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची

शहर             एक्यूआइ

नोएडा             463

गाजियाबाद      444

दिल्ली             432

ग्रेटर नोएडा      427

फरीदाबाद       420

पानीपत           404

वल्लभगढ़        400

बागपत           378

भिवाड़ी           367

कानपुर          366


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