शहरनामा : मैडम का न्योता, साहब का सिरदर्द
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जेएनएन, कानपुर : शहरवासियों के मर्ज का इलाज करने वाले महकमे के अफसर अजीब मुश्किल में फंस गए हैं। दिल्ली वाली सरकार के एक कार्यक्रम का जिम्मा मिला। महकमे के साहब ने सोचा कि इसमें उन्हीं माननीय को मेहमान बनाकर बुला लिया जाए, जिनसे रोज पाला पड़ना है। साहब ने न्योते की पाती भी ससम्मान भिजवा दी। मगर, यह क्या? बाद में तय हो गया कि फलां अस्पताल में तो सूबे वाले माननीय का आना तय हो गया है। मैडम को पहले ही बुलावा भेज चुके हैं। अब वह आई और फीता किसी और से कटवाया तो लेने के देने न पड़ जाएं। बेचारे साहब ने आननफानन बगल वाले अस्पताल में एक कार्यक्रम तैयार किया। इतना ही नहीं, एक गाड़ी का भी इंतजाम किया गया है, जो मैडम के घर जाकर उन्हें लाएगी, ताकि गलती से भी वह पुराने न्योते वाली जगह न पहुंच जाएं।
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मामा ने खोल दी भांजे की पोल
मामा प्रदेश स्तर पर मजबूत कुर्सी पर पहुंचे तो शहर में रहने वाले उनके भांजे भी उतावले हो गए कि कैसे पूरे शहर के सामने अपनी उनसे निकटता दिखाएं। भांजा व्यापारी है तो मामा को शहर में बुलाकर व्यापारियों से स्वागत कराने की मंशा जताई। मामा ने अपना स्वागत कराने की जगह कोई और कार्यक्रम रखने का सुझाव दिया तो कार्यक्रम पलट दिया गया। अब मामा को व्यापारियों का सम्मान करना था। मात्र एक दिन की तैयारी पर कार्यक्रम आयोजित कर लिया गया। जलवे-जलाल से आए मामा ने व्यापारियों का सम्मान किया। व्यापारी भी खुश हो गए, लेकिन जब मामा ने भाषण शुरू किया तो उन्होंने कार्यक्रम कैसे रखा गया, इसकी पूरी किताब खोलकर सबके सामने रख दी। इतना ही नहीं, भांजे को मुंहबोला बताकर भी सब किए-धरे पर पानी फेर गए। मामा को लाकर अपनी वाहवाही कराने की कवायद में जुटे भांजे की हालत पतली हो गई। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि व्यापारी साथियों से नजरें कैसे मिलाई जाएं।
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हाथ में रूमाल है, कोई रोए तो बताना
साइकिल वाले दल में भी क्या खूब सियासत चल रही है। पुराने नेताजी का अपने वक्त में पूरा जलवा कायम रहा। मगर, एक लंबे-चौड़े से मुकाबला हुआ तो भैया ने पत्ता साफ कर दिया। उस दिन से पुराने वाले गांठ बांधे बैठे हैं कि कोई मौका मिले तो पटखनी दे ही दें। हमेशा मौका ताकने वाले पुराने नेताजी को एक मामला हाथ लग ही गया। ठंडे पड़े कुछ पदाधिकारियों का नए झंडाबरदार ने बोरिया-बिस्तर बांधा तो पुराने वाले रूमाल लेकर दौड़ पड़े। हमदर्द बने और लेकर पहुंच गए सूबे के बड़े नेताजी के घर। दिल में आग तो पहले से ही जल रही थी, वह पूरा घी डालकर नए वाले के हाथ झुलसाने की कोशिश करते रहे। भनक लगी तो नए वाले ने भी फील्डिंग सजाई और जैसे-तैसे ऊपर वालों को समझाया।