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कन्नौज बस हादसा : साधारण बस को बना देते हैं स्लीपर, फिर शुरू होता है मौत का सफर

बस संचालकों ने मोटी कमाई के लिए एक्सप्रेस-वे पर बसों को दौड़ाना शुरू कर दिया हैं।

By AbhishekEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 02:49 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 02:49 PM (IST)
कन्नौज बस हादसा : साधारण बस को बना देते हैं स्लीपर, फिर शुरू होता है मौत का सफर
कन्नौज बस हादसा : साधारण बस को बना देते हैं स्लीपर, फिर शुरू होता है मौत का सफर

कानपुर, जेएनएन। कन्नौज बस हादसे के बाद स्लीपर बसों को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। निजी बस संचालकों ने मोटी कमाई के लिए साधारण बसों को स्लीपर में बदलकर एक्सप्रेस-वे पर दौड़ाना शुरू कर दिया, जो आए दिन मौत का सफर बन रहा है। फर्रुखाबाद की प्राइवेट ट्रैवलिंग एजेंसी की स्लीपर बस कन्नौज में हादसे का शिकार हुई और कई यात्रियों की जिंदा जलकर मौत होने की घटना के सभी को झकझोर दिया। यह कोई पहला वाक्या नहीं है, हाईवे पर पहले भी कई एसी स्लीपर बसें दुर्घटनाग्रस्त हुई हैं।

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मोटी कमाई के लिए दौड़ाते बसें

यदि नामचीन कंपनी से मानक के अनुरूप एसी या लग्जरी स्लीपर बस तैयार कराई जाती है, तो कीमत कई लाख रुपये आती है। प्रदेश में बीते कुछ सालों में स्टेट हाई-वे, एक्सप्रेस-वे बनकर तैयार हुए तो निजी बस संचालकों के लिए मोटी कमाई के साधन खुल गए। एक शहर से दूसरे शहर के लिए स्लीपर बसों का संचालन शुरू करा दिया। लागत बचाने के लिए संचालकों ने साधारण बस को स्थानीय बॉडी मेकरों से स्लीपर बसों में बदल दिया लेकिन इन बसों में मानकों का ध्यान नहीं रखा गया। इसी वजह से ये बसों हादसे का शिकार हो रही हैं।

मानक से ऊंची बॉडी और इमरजेंसी डोर तक नहीं

निजी बस संचालक साधारण बस को मनमाने तरीके से स्लीपर में बदला देते हैं। पुरानी बस या फिर नई चेचिस पर स्थानीय बॉडी मेकर से स्लीपर कोच तैयार कराते हैं। सीटों के ऊपर स्लीपर बनाने के लिए मानक के विपरीत ओवरहाइट बॉडी बनाई जाती है। स्लीपर की संख्या कम न हो, इसके लिए बस संचालक इमरजेंसी ङ्क्षवडो भी बंद करा देते हैं। स्लीपरों के बीच अंदर गली भी संकरी हो जाती है। ऐसे में किसी आपात स्थिति में यात्री को निकलना मुश्किल होता है। खिड़कियां भी इतनी छोटी होती है कि शीशा तोड़कर भी बाहर नहीं निकला जा सकता है। अग्निसुरक्षा के इंतजाम भी नहीं रहते हैं।

शादी-पार्टी के नाम पर लेते अस्थाई परमिट

नियमानुसार इन बसों को राष्ट्रीयकृत मार्गों के लिए परमिट जारी नहीं किया जा सकता है। हालांकि शादी-पार्टी के नाम पर अस्थाई परमिट का प्रावधान है। इसी का लाभ उठाकर बस माफिया और अधिकारी की मिलीभगत से इन बसों को दिल्ली और जयपुर के बीच दौड़ाते हैं। फर्रुखाबाद के उपसंभागीय परिवहन अधिकारी शांतिभूषण पांडेय कहते हैं कि बिना रिफ्लेक्टर व टेप लगे व इमरजेंसी ङ्क्षवडो बंद होने की दशा में बस का फिटनेस प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता है। अधिकांश की पूर्व में फिटनेस जारी की गई है। फिटनेस के लिए आने वाले वाहनों में मोटर व्हीकल एक्ट के मानकों का ध्यान रखा जा रहा है।

इस तरह कंपनियां बनाती स्पेशल स्लीपर बसें

हाईवे और एक्सप्रेस वे पर संचालन के लिए स्लीपर बसों का निर्माण नामचीन कंपनी से कराया जाए तो हादसों का खतरा कम रहता है। कंपनी द्वारा मानक ध्यान में रखकर बसें तैयार की जाती है। इन बसों में यात्री सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है। बसों में स्पेशल व्हील संस्पेंशन सिस्टम होता है ताकि ज्यादा घुमाव अथवा तेज रफ्तार होने पर पलटने की आशंका न रहे। टायरों में हवा के दबाव से लेकर इमरजेंसी ब्रेक सिस्टम आदि का ध्यान रखा जाता है। साथ ही अग्निसुरक्षा के लिए हर सीट पर छोटा अग्निशमन यंत्र भी मौजूद रहता है। पीछे की तरह इमरजेंसी डोर के साथ आपातकालीन स्थिति में शीशे तोड़े जाने का उपाय भी दिया जाता है।


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