नदियों के पास जैविक खेती रोकती है जल प्रदूषण
पांचवें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन पर आइआइटी प्रोफेसर व कृषि वैज्ञानिकों ने कई उपाय सुझाए हैं।
जागरण संवाददाता, कानपुर : जल प्रदूषण की समस्या का समाधान खेती किसानी में निहित है। नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए नदियों के पास जैविक खेती वरदान है। अगर किसान इस पर ध्यान दें और संबंधित विभाग इसे बढ़ावा देने के लिए और तेजी से काम करे तो प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। यह बात कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग में अतिरिक्त सचिव डॉ. अलका भार्गव ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन व आइआइटी के गंगा नदी घाटी प्रबंधन एवं अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में हुए पांचवें भारत जल प्रभाव शिखर के ऑनलाइन सम्मेलन में कही।
मोर क्रॉप पर ड्रॉप' को यथार्थ करने के लिए डॉ. भार्गव ने मृदा स्वास्थ सुधार, सूक्ष्म सिचाई व एकीकृत खेती प्रणाली पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इनका प्रचार किसानी उत्पादक संगठन के माध्यम से किया जा रहा है। इसके अलावा 'वोकल फॉर लोकल' नीति की तर्ज पर स्थानीय खाद्य बाजारों के लिए सूक्ष्म खाद्य उद्यमों की मदद भी की जा रही है, जबकि जैव ईंधन, बागवानी, औषधीय पौधों व काले चावल के उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। सम्मेलन में नीति आयोग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. नीलम पटेल ने बताया कि यह फसल के विविधीकरण पर जोर देने का समय है। फसल के नुकसान को कम करने व प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग अब सामुदायिक खेती की संपत्ति विकसित करने की सिफारिश कर रहा है। सम्मेलन में गंगा नदी घाटी प्रबंधन एवं अध्ययन केंद्र के संस्थापक प्रो. विनोद तारे ने नदियों के पानी का उचित उपयोग व प्रबंधन के लिए स्थानीय स्तर पर नदी घाटी प्रबंधन संस्थान बनाए जाने की आवश्यकता है। रासायनिक उर्वरकों से होने वाले जल प्रदूषण का पता करने के लिए आइसोटोप स्टडीज व पानी के सूक्ष्म प्रबंधन के बारे में काम करने की जरूरत है।