पाकिस्तान पर गरजी थी ओएफसी की तकनीक, सेना के लिए बनाए थे टैंक के बैरल
आयुध निर्माणी कानपुर ने ही बनाए थे सेना के टैंकों के लिए बैरल, जीत के बाद क्षमता बढ़ाने को सरकार ने शुरू की फील्डगन फैक्ट्री।
By Edited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 01:34 AM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 11:46 AM (IST)
जितेंद्र शर्मा, कानपुर। विजय दिवस..16 दिसंबर 1971 का वह दिन, जब पाकिस्तान की फौज ने भारतीय सेना के रणबांकुरों के सामने घुटने टेक दिए थे। शौर्य की उस गौरवगाथा के पन्ने पलटे जाएं तो वीरभूमि कानपुर पर भी फº महसूस होगा। यहां के सैनिकों ने तो देश पर प्राण न्योछावर किए ही, खास बात यह है कि उस युद्ध में दुश्मनों के परखचे जिन टैंक ने उड़ाए थे, उनमें आयुध निर्माणी कानपुर (ओएफसी) की तकनीक का ही दम था।
कानपुर में वर्तमान में पांच आयुध निर्माणियां हैं। सभी में ऐसे-ऐसे हथियार और उत्पाद तैयार हो रहे हैं, जिनसे भारतीय सेना की सामरिक शक्ति लगातार बढ़ रही है। मगर, इनमें आयुध निर्माणी कानपुर का सीधा संबंध 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध से है, जिसमें मिली भारत की जीत की याद में ही 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। आयुध निर्माणी कानपुर के अधिकारियों ने बताया कि उस युद्ध के समय भारतीय फौज के पास टी-55 टैंक और 75/24 टेक हॉविट्जर टैंक थे। उनके बैरल 1942 में स्थापित आयुध निर्माणी कानपुर में ही बनते थे, क्योंकि तब बैरल बनाने वाली देश की इकलौती निर्माणी यही थी। इन्हीं टैंक और 105 इंडियन फील्डगन का इस्तेमाल कर साहसी भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को हराकर विजय हासिल की थी।
तब बराबर था पाकिस्तान, अब आसपास नहीं
आयुध निर्माणी अधिकारी ने बताया कि उस युद्ध में भारत और पाकिस्तान की सामरिक क्षमता लगभग बराबर थी। उसके बाद ही सरकार ने शक्ति बढ़ाने पर काम शुरू किया। बड़ा निवेश आयुध निर्माण के लिए किया। उसी के फलस्वरूप कानपुर में फील्डगन फैक्ट्री की स्थापना 1972 में की गई। इसके बाद ही फील्डगन फैक्ट्री ने 105 लाइट फील्ड गन और 130/155 अपगनिंग मार्क-1 गन विकसित कर सेना को सौंपी। निर्माणी अधिकारियों का दावा है कि आयुध निर्माणी कानपुर और फील्ड गन फैक्ट्री संयुक्त रूप से दुनिया की सबसे बड़ी बैरल निर्माता हैं। जो पाकिस्तान हमारे बराबर था, वह तो आसपास भी नहीं है।
दोगुनी हो गई हथियारों की मारक क्षमता
आयुध निर्माणी कानपुर ने अब सेना के हथियारों की मारक क्षमता को दोगुना कर दिया है। 105 लाइट फील्डगन की मारक क्षमता मात्र 17-18 किमी ही थी। इसे बढ़ाने के साथ ही दुनिया के आधुनिक मानक 155 एमएम पर काम शुरू हुआ। उसी दिशा में सफलता हासिल करते 155/45 कैलिबर फुल ऑटोमेटिक धनुष तोप और अब हाल ही में 155/45 कैलिबर फुल ऑटोमेटिक शारंग तोप विकसित की है। इनकी मारक क्षमता 36 किमी है।
कानपुर में वर्तमान में पांच आयुध निर्माणियां हैं। सभी में ऐसे-ऐसे हथियार और उत्पाद तैयार हो रहे हैं, जिनसे भारतीय सेना की सामरिक शक्ति लगातार बढ़ रही है। मगर, इनमें आयुध निर्माणी कानपुर का सीधा संबंध 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध से है, जिसमें मिली भारत की जीत की याद में ही 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। आयुध निर्माणी कानपुर के अधिकारियों ने बताया कि उस युद्ध के समय भारतीय फौज के पास टी-55 टैंक और 75/24 टेक हॉविट्जर टैंक थे। उनके बैरल 1942 में स्थापित आयुध निर्माणी कानपुर में ही बनते थे, क्योंकि तब बैरल बनाने वाली देश की इकलौती निर्माणी यही थी। इन्हीं टैंक और 105 इंडियन फील्डगन का इस्तेमाल कर साहसी भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को हराकर विजय हासिल की थी।
तब बराबर था पाकिस्तान, अब आसपास नहीं
आयुध निर्माणी अधिकारी ने बताया कि उस युद्ध में भारत और पाकिस्तान की सामरिक क्षमता लगभग बराबर थी। उसके बाद ही सरकार ने शक्ति बढ़ाने पर काम शुरू किया। बड़ा निवेश आयुध निर्माण के लिए किया। उसी के फलस्वरूप कानपुर में फील्डगन फैक्ट्री की स्थापना 1972 में की गई। इसके बाद ही फील्डगन फैक्ट्री ने 105 लाइट फील्ड गन और 130/155 अपगनिंग मार्क-1 गन विकसित कर सेना को सौंपी। निर्माणी अधिकारियों का दावा है कि आयुध निर्माणी कानपुर और फील्ड गन फैक्ट्री संयुक्त रूप से दुनिया की सबसे बड़ी बैरल निर्माता हैं। जो पाकिस्तान हमारे बराबर था, वह तो आसपास भी नहीं है।
दोगुनी हो गई हथियारों की मारक क्षमता
आयुध निर्माणी कानपुर ने अब सेना के हथियारों की मारक क्षमता को दोगुना कर दिया है। 105 लाइट फील्डगन की मारक क्षमता मात्र 17-18 किमी ही थी। इसे बढ़ाने के साथ ही दुनिया के आधुनिक मानक 155 एमएम पर काम शुरू हुआ। उसी दिशा में सफलता हासिल करते 155/45 कैलिबर फुल ऑटोमेटिक धनुष तोप और अब हाल ही में 155/45 कैलिबर फुल ऑटोमेटिक शारंग तोप विकसित की है। इनकी मारक क्षमता 36 किमी है।
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