पैदावार बढ़ाने में बिगड़ी मिट्टी की गुणवत्ता, खत्म हो रही खाने की पौष्टिकता
मिट्टी की नमी हो रही कम, मृदा की टेस्टिंग रिपोर्ट में अति जरूरी तत्वों की मिली कमी।
कानपुर (जागरण स्पेशल)। पैदावार बढ़ाने के चक्कर में रसायनों का अनियमित मात्रा में प्रयोग मिट्टी की गुणवत्ता को खराब कर रहा है। फसलों और पौधों की पैदावार प्रभावित होने लगी है। इसका सीधा असर खाने की पौष्टिकता पर पड़ रहा है। कानपुर और आसपास के जिलों में मिट्टी की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है। ये खुलासा कई गांवों में कृषि विभाग की स्वाइल टेस्टिंग रिपोर्ट में हुआ है।
करीब 60 हजार खेतों की मिट्टी की जांच हो चुकी है, जिसकी रिपोर्ट चौंकाने वाली आई है। इसमें अति जरूरी तत्वों की कमी मिली है। कुछ में एसिडिक नेचर (अम्लीय प्रकृति) का पता चला है। कृषि उप निदेशक धीरेंद्र सिंह ने बताया कि मिट्टी की गुणवत्ता खराब होने से फसलों की पौष्टिकता प्रभावित हो रही है। किसान अधिक से अधिक मात्रा में रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं, यह गलत है। मृदा की सेहत का ध्यान रखने की आवश्यकता है।
आद्रता जरूरत से आधी मिली
मिट्टी में आद्रता दो फीसद होनी चाहिए, लेकिन अधिकतर जगहों पर 0.8 से 1 फीसद ही पाई गई। जिंक, आयरन, कॉपर, सल्पर, पोटेशियम, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन की मात्रा भी अनियमित मिली। उदाहरण के लिए गेहूं के खेत में 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम पोटाश, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है, लेकिन किसान इससे अधिक उपयोग कर रहे हैं।
क्या हो रहा नुकसान
- आर्गेनिक कार्बन की भारी कमी हो रही है।
- जरूरी तत्वों का 60 फीसद ही हिस्सा इस्तेमाल हो रहा है।
- 40 फीसद तत्व जमीन में बेकार पड़े रह जाते हैं।
- अत्याधिक यूरिया की वजह से पत्तियां मीठी हो रही हैं, जिससे कीटों का हमला बढ़ा है।
सब्जियों में पड़ रहा प्रभाव
-गोभी में सूखापन- धनिया में सुगंध नहीं
- टमाटर से खट्टापन कम हो गया
- लौकी, तरोई का स्वाद कम हुआ
- आलू में स्टार्च की मात्रा में कमी
निरीक्षण का दूसरा चरण जारी
जिले में स्वाइल टेस्टिंग का दूसरा चरण चल रहा है। इसके अंतर्गत 670 गांवों में मिट्टी की जांच हो गई है जबकि 348 की रिपोर्टिंग बाकी है। पहला चरण वर्ष 2015 से 2017 तक हुआ था।
166104 स्वाइल कार्ड वितरित
कानपुर में अब तक एक लाख 66104 स्वाइल कार्ड वितरित हो चुके हैं। इसमें 12 तत्वों की जानकारी लिखी जाती है। यह व्यवस्था ऑनलाइन होती है। टेस्टिंग के लिए प्रत्येक गांव ढाई हेक्टेयर पर एक ग्रिड तैयार किया जाता है। इसके अंतर्गत आने वाले सभी किसानों के कार्ड बनाए जाते हैं। यह रिपोर्ट निदेशालय को भेजी जाती है।
क्या करें, क्या न करें
- अधिक पानी के इस्तेमाल वाली फसल के बाद कम पानी में उगने वाली फसल लगाई जाए।
- दलहनी फसलों की अधिकता रहे।
- गहरी जड़ों वाली फसलों के बाद कम गहरी जड़ों वाली फसलें बोई जाएं।
- खेतों में 30 से 40 टन गोबर की खाद का प्रयोग हो।
- जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाए।
- कृषि विशेषज्ञों की नियमित सलाह ली जाए।