उप्र उच्च न्यायिक सेवा में चयनित 11 जज का चयन फंसा, अब सीधे एडीजे नहीं बन पाएंगे सिविल जज
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने चयनित अधिकारियों की नियुक्ति पर भी रोक के आदेश दिए हैं।
कानपुर,[आलोक शर्मा]। बार (वकीलों की संस्था) के कोटे से एचजेएस (हायर ज्यूडिशियल सर्विस) की परीक्षा पास कर सीधे एडीजे बनना अब न्यायिक अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन न्यायिक अधिकारियों के लिए भी मुश्किलें पैदा हो गई हैं जिनका चयन उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा की एचजेएस परीक्षा के लिए हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने चयनित अधिकारियों की नियुक्ति पर भी रोक के आदेश दिए हैं। वर्तमान में जिले में तैनात एक न्यायिक अधिकारी और पूर्व में तैनात रहे न्यायिक की नियुक्ति पर भी प्रभाव पडऩा तय है।
क्या है मामला
सात वर्ष की वकालत पूरी करने वाले अधिवक्ताओं को सीधे न्यायिक अधिकारी बनने का मौका मिलता है। इसके लिए उन्हें एचजेएस परीक्षा पास करनी होती है जबकि पीसीएस-जे की परीक्षा पास करने वाले न्यायिक अधिकारियों के लिए एचजेएस बनने को विभागीय परीक्षा का नियम है। बीते कई वर्षों से अधिवक्ताओंं के इस कोटे में पीसीएस-जे से सिविल जज बने न्यायिक अधिकारी भी शामिल होने लगे। अधिवक्ता विनय तिवारी बताते हैं कि इसके विरोध में दिल्ली के अधिवक्ता धीरज मोर ने दिल्ली हाईकोर्ट को पक्षकार बनाते हुए वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (स्पेशल लीव पिटीशन) दाखिल कर मांग की कि मजिस्ट्रेट वकीलों के एचजेएस कोटे में भागीदार न बने और न ही उन्हें नियुक्त किया जाए।
यह हुआ आदेश
अधिवक्ता नमन गुप्ता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट कहा कि बार के लिए आरक्षित कोटा के अंतर्गत सेवारत उम्मीदवारों (न्यायिक अधिकारी) को जिला जजों के पदों पर नियुक्ति नहीं दी जाएगी। हालांकि यह आदेश उन नियुक्तियों पर लागू नहीं होगा जो किन्ही अंतरिम आदेशों के आधार पर की गई हैं।
11 जज का चयन फंसा
उप्र उच्च न्यायिक सेवा के लिए 28 मार्च 2019 को अंतिम परिणाम जारी हुए। जिसमें 23 प्रतिभागियों का चयन किया गया। इसमे 11 सेवारत न्यायिक अधिकारी और 12 अधिवक्ता हैं। अंतिम परिणाम के तहत जारी इस सूची में सेवारत न्यायिक अधिकारियों का चयन तो हुआ लेकिन, न तो उनका रोल नंबर अंकित है और न ही नाम। अधिवक्ता अंबरीश टंडन बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से वकालत करने वाले अधिवक्ताओं को फायदा होगा। सेवारत अधिकारी इसमें शामिल नहीं होंगे तो अधिक से अधिक अधिवक्ताओं को इसका फायदा मिलेगा।
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