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सपने में भी कभी सोचा न होगा, कृषि विश्वविद्यालय ने वो कर दिखाया Kanpur News

अब बिना मिट्टी के टमाटर की पैदावार होगी उर्वरक की भी ज्यादा जरूरत नहीं होगी।

By AbhishekEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 05:32 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 05:32 PM (IST)
सपने में भी कभी सोचा न होगा, कृषि विश्वविद्यालय ने वो कर दिखाया Kanpur News
सपने में भी कभी सोचा न होगा, कृषि विश्वविद्यालय ने वो कर दिखाया Kanpur News

कानपुर, विक्सन सिक्रोडिय़ा। बिना मिïट्टी के सब्जियों का उत्पादन न देखा होगा और न ही सुना होगा लेकिन सूबे के पहले चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) ने पॉलीहाउस में ये कर दिखाया है। अब टमाटर की पैदावार के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होगी। उसे कोकोपीट यानि स्वायल लेस मीडिया के मिक्चर में इसका उत्पादन किया जा सकेगा। इसमें उर्वरक की भी अधिक जरूरत नहीं होगी। टपकन सिंचाई के जरिए इसकी खेती होगी।

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ये है कोकोपीट विधि की खासियत

इस विधि की खासियत यह है कि इसके जरिए पैदावार सामान्य टमाटर की अपेक्षा दोगुनी होती है। सीएसए के कृषि वैज्ञानिक व संयुक्त शोध निदेशक प्रो. डीपी सिंह ने अनुसंधान में पाया कि साधारण पौधे में चार से पांच किलो टमाटर होता है जबकि इसमें आठ से दस किलो तक होगा। इस टमाटर के उत्पादन के सफल प्रयोग के बाद अब यह तकनीक व इसके बीज किसानों तक पहुंचाएंगे ताकि वह अपने खेतों में अच्छी पैदावार ले सकें। कोकोपीट विधि से पार्थिनोकार्पिक टमाटर की खेती की तकनीक किसानों को सिखाने के लिए सीएसए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी करेगा।

जहां मिïट्टी ठीक नहीं, वहां ले सकते बेहतर पैदावार

डॉ. सिंह ने बताया कि इस टमाटर की पैदावार उन स्थानों पर की जा सकती है, जहां मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर नहीं है। पॉलीहाउस तकनीक से किसी भी मौसम में टमाटर की खेती की जा सकती है। इसकी पैदावार या गुणवत्ता पर बदलते मौसम रोग और विषाणुओं का असर नहीं पड़ेगा। पॉलीहाउस में कोकोपीट तकनीक से क्यारी में तैयार की जाने वाली टमाटर की फसल रोग मुक्त होती है।

क्या होता है कोकोपीट

उन्होंने बताया कि नारियल के बाहरी हिस्से (रेशेदार छिलका) में ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो पौधों के विकास के लिए लाभदायक होते हैं। खास बात यह है कि ऐसे तत्व मिट्टी में होते हैं। नारियल की भूसी व खाद से मिट्टी की तरह एक मिश्रण तैयार किया जाता है। इससे तैयार कोकोपीट के मिक्चर से आसानी से खेती की जा सकती है। यह मिश्रण कोकोपीट, वर्मीकुलाईट व परलाइट क्रमश: 3:1:1 के अनुपात में होता है। इससे की जाने वाली खेती में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का अल्प मात्रा में प्रयोग किया जाता है। खेती के दौरान इसमें कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक का प्रयोग भी किया जाता है जिससे रोग नहीं लगता है।


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