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माउंट एवरेस्ट बेस कैंप फतह करने वाली गुड़िया को मुफलिसी ने घेरा, खेतों पर कर रही मजदूरी

उन्नाव की रहने वाली गुड़िया माउंट एवरेस्ट बेस कैंप डीके वन और डीके टू चोटियों को फतह कर चुकी है और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराना चाहती हैं। लेकिन मुफलिसी की वजह से वह भाइयों को पढ़ाने के लिए खेतों पर मजदूरी कर रही है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Wed, 21 Jul 2021 09:00 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jul 2021 01:33 PM (IST)
माउंट एवरेस्ट बेस कैंप फतह करने वाली गुड़िया को मुफलिसी ने घेरा, खेतों पर कर रही मजदूरी
गुड़िया का मिशन एवरेस्ट काे पाना है।

कानपुर, अंकुश शुक्ल। इरादा एवरेस्ट सा है, इसे पूरा करने के लिए जोश भी है और हिम्मत भी। आस है तो बस मदद की। ये मिल जाए तो उन्नाव की बेटी भी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट फतह कर आए। शिखर की चाहत में सबसे बड़ी बाधा उसकी आर्थिक मजबूरी है। मुफलिसी का दौर ऐसा है कि दो भाइयों की पढ़ाई और पालन पोषण के लिए ये बेटी दूसरों के खेत में मजदूरी कर रही है। न तो सरकारी योजनाओं से उसे कोई मदद मिल रही है और न ही समाजसेवी संस्थाएं सहयोग कर रही हैं।

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हम बात कर रहे हैं उन्नाव के ऊंचगांव में रहने वाली 25 वर्षीय पर्वतारोही गुडिय़ा की। एवरेस्ट फतह करने वाली प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री पाल से प्रशिक्षण हासिल करने के बाद पिछले कई वर्षों से वह मदद की गुहार लगा रही हैं, ताकि एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा सकें, लेकिन आज तक कोई भी मदद को आगे नहीं आया। ये वही गुडिय़ा हैं जिन्होंने 2013 में उत्तराखंड आपदा के दौरान राहत कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की थी। यही नहीं गुडिय़ा 18 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित डीके-1 और डीके-2 चोटी (उत्तराखंड के उत्तरकाशी के पास द्रोपदी का डांडा पर्वत) जीत चुकी हैं।

उनका अगला लक्ष्य एवरेस्ट ही है, 2019 में इसके लिए क्वालीफाई भी हो चुकी हैं, लेकिन लंबी और ऊंची इस कठिन यात्रा को पूरा करने के लिए जिन संसाधनों की आवश्यकता है वह गुडिय़ा के पास नहीं हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में गुडिय़ा ने बताया कि अब तक वे मदद के लिए डीएम, मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक से गुहार लगा चुकी हैं, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता है।

दूसरों के खेतों में करती हैं काम : गुडिय़ा बताती हैं कि माता-पिता न होने की वजह से दो भाइयों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है। किराये क मकान में रहकर दूसरों के खेतों में काम करके जो मेहनताना मिलता है, उसी से भाइयों की पढ़ाई और घर का खर्च निकलता है।


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