कानपुर: पूरब के मैनचेस्टर में फिर उगेगा आर्थिक समृद्धि का सूरज
कानपुर में लघु और सूक्ष्म इकाइयों की 15 हजार इकाइयों से 20,000 करोड़ रुपये के उत्पादों का निर्यात होता है, जबकि पूरे प्रदेश से 85 हजार करोड़ रुपये का निर्यात हो रहा है।
कानपुर में आर्थिक समृद्धि और औद्योगिक विकास का इस माटी से पुराना रिश्ता है। कानपुर को छावनी बनाने वाले अंग्रेजों ने यहां चमड़े का कारखाना, सूती कपड़ों की मिल और घोड़े की काठी बनाने वाली हारनेस फैक्ट्री खोली। यह फैक्ट्रियां इस जमीन के लिए औद्योगिक बीज साबित हुईं। चमड़े के कारखाने ने हजारों करोड़ रुपये टर्नओवर वाले टेनरी उद्योग को जन्म दिया तो सूती मिल से शुरू हुआ टेक्सटाइल इंडस्ट्री का सफर वहां तक पहुंचा कि तमाम कपड़ा मिल इस शहर की आर्थिक धुरी ही बन गईं।
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यही नहीं, हारनेस फैक्ट्री ने बदलते वक्त के साथ ऑर्डनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्री की शक्ल ले ली। सेना की जरूरत के सामान वहां बनने लगे। धीरे-धीरे कुल पांच आयुध कारखानों की स्थापना कानपुर में हो गई। स्वर्णिम इतिहास की चमक एक दौर में फीकी पड़ी। यहां की कपड़ा मिलें तो बंद हो गईं, लेकिन सुनहरे भविष्य की किरणें फिर दिखाई दे रही हैं।
अब यहां टेनरी उद्योग के साथ जूता उद्योग, सैकड़ों एमएसएमई इकाइयां विस्तार लेती जा रही हैं। साथ ही सरकार, जो डिफेंस कॉरिडोर बनाने जा रही है, उससे भी पूरी उम्मीद है कि कभी यूपी का मैनचेस्टर कहा जाने वाला कानपुर फिर वैसा ही गौरव हासिल कर सकेगा।
रोजगार पूरा करती थीं यह इकाइयां
एनटीसी की पांच, बीआइसी की चार फैक्ट्रियां, जेके जूट, जेके कॉटन, जेके सिंथेटिक, जेके रेयॉन जैसी फैक्ट्रियां आदि।
फिर सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्यम इकाइयों ने बढ़ाई ताकत
कानपुर में लघु और सूक्ष्म इकाइयों की संख्या लगातार बढ़ती गई। वर्तमान में यहां छोटी-बड़ी 15 हजार इकाइयों से 20,000 करोड़ रुपये के उत्पादों का निर्यात होता है, जबकि पूरे प्रदेश से 85 हजार करोड़ रुपये का निर्यात हो रहा है।
ऐसे कदमों की है जरूरत
वर्ष 2011 में आइआइटी के तत्कालीन निदेशक संजय गोविंद धांडे ने आइआइए के साथ मिलकर प्रमोशन ऑफ वर्क एक्सपीरिएंस एंड रिसर्च का गठन किया था। तीन वर्ष तक यह प्रोग्राम चलने से करीब तीन दर्जन उद्यमियों को इसका लाभ मिला। अब अगर एक बार फिर इस तरह का काम शुरू हो जाए तो शहर के उद्योगों को काफी लाभ मिलेगा। उद्योग के जरूरत के हिसाब से आइआइटी तकनीक ईजाद कर सकेगा।
अब डिफेंस कॉरिडोर खोलेगा तरक्की के द्वार
अब सरकार उप्र में डिफेंस कॉरिडोर बनाने जा रही है। यह कॉरिडोर झांसी, चित्रकूट, आगरा, अलीगढ़, कानपुर और लखनऊ में बनना है। इस प्रोजेक्ट के तहत रक्षा उत्पाद बनाने वाली औद्योगिक इकाइयों की स्थापना होनी है। सरकार को अनुमान है कि इसमें पचास हजार करोड़ रुपये का निवेश होना है। यह आंकड़ा भी सबसे ज्यादा कानपुर को ही उत्साहित करता है।
दरअसल, कॉरिडोर का केंद्र यही शहर बनेगा। क्योंकि यहां पहले से ही रक्षा क्षेत्र के आयुध निर्माण कानपुर, स्मॉल आर्म्स फैक्ट्री, फील्ड गन फैक्ट्री, ऑर्डनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्री, ऑर्डनेंस पैराशूट फैक्ट्री और एचएएल जैसे प्रतिष्ठान हैं। यहां सबसे अधिक इकाइयां स्थापित होने की उम्मीद है। उनकी सहयोगी इकाइयां भी खुलेंगी, जिनसे रोजगार के अवसर बढऩा भी तय है।
अर्थव्यवस्था की यह भी जान
- 9000 करोड़ की प्लास्टिक और पैकेजिंग इंडस्ट्री
- 5000 करोड़ की सोप एंड डिटर्जेंट इंडस्ट्री
- 4500 करोड़ की फूड इंडस्ट्री
- 4500 करोड़ का इंजीनियरिंग उद्योग, जिसमें रक्षा उत्पाद, रेलवे एलएचबी कोच, साइकिल, ऑटो पाट्र्स, कास्टिंग एंड डाइंग यूनिट शामिल।
- 3000 करोड़ रुपये का होजरी, गारमेंट और टेक्सटाइल उद्योग।
कानपुर में उद्योगों की स्थिति
- 14,000 सूक्ष्म व लघु उद्योग
- 950 मध्यम उद्योग
- 105 लार्ज कैप उद्योग
- 1.60 लाख करोड़ जीडीपी
- 6.25 फीसद जीडीपी की दर
- 65,500 करोड़ रुपये शहर का कुल औद्योगिक कारोबार
- 10 लाख से अधिक को रोजगार
- 39 फीसद जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र
- 43 फीसद जीडीपी में सेवा क्षेत्र
- 18 फीसद जीडीपी में कृषि क्षेत्र
- 10,000 करोड़ का राजस्व जीएसटी, आयकर व अन्य करों से।