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कानपुर : यह कर रहे हैं ऐसी कोशिश कि कोई बच्‍चा न रहे मूक-बधिर

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 1000 में छह मूक-बधिर बच्‍चे पैदा होते हैं। ऐसे बच्चे बोल-सुन सकें, इसके लिए कॉकलियर इम्प्लांट किया जाता है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 06:00 AM (IST)
कानपुर : यह कर रहे हैं ऐसी कोशिश कि कोई बच्‍चा न रहे मूक-बधिर

जागरण संवाददाता, कानपुर
इसमें कोई शक नहीं है कि आम जनता या समाज की चिंता करने का पहला दायित्व सरकार का है, लेकिन समाज की भी बड़ी भूमिका है। यही वजह है कि तमाम सामाजिक संस्थाएं सेवा कार्य में जुटी हैं। कॉरपोरेट घराने सीएसआर फंड जनता की सहूलियत के लिए खर्च कर रहे हैं। शहर में ऐसे बड़े दिल वाले भी हैं, जो अपने कारोबार में से मुनाफे का कुछ हिस्सा सेवा कार्य के लिए देते हैं और संस्थाओं की मदद से उन्हें जरूरतमंद तक पहुंचाते हैं।

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'माय सिटी माय प्राइड' अभियान के तहत 'जागरण' ने ऐसे कई व्‍यक्तियों को रियल हीरो को प्रकाशित किया। बताया कि वह कैसे अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर समाज हित का प्रयास कर रहे हैं। औद्योगिक घराने सीएसआर से अस्पताल और स्कूलों की व्यवस्थाएं चुस्त-दुरुस्त करने में जुटे हैं। इसी तरह प्रेरणा का अनूठा कार्य कर रहा है लायंस क्लब ऑफ कानपुर गैंजेज। संस्था भारत सरकार की योजना की सेतु बनकर मूक-बधिर बच्चों के कॉकलियर इम्प्लांट करा रही है।

बदल दी 80 मूक-बधिर बच्चों की जिंदगी
लायंस क्लब ऑफ कानपुर गैंजेज के अध्यक्ष टीकमचंद सेठिया ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 1000 में छह मूक-बधिर बच्‍चे पैदा होते हैं। ऐसे बच्चे बोल-सुन सकें, इसके लिए कॉकलियर इम्प्लांट किया जाता है। कॉकलियर की कीमत लगभग साढ़े छह लाख होती है, जो गरीब वहन नहीं कर सकता। इसकी चिंता करते हुए भारत सरकार की योजना के तहत अस्पतालों को मुफ्त कॉकलियर दिए जा रहे हैं।
इस योजना को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूरत में बड़ा शिविर लगवाया था। उसी से प्रेरणा लेकर ढाई साल पहले हमारे क्लब ने भी इस योजना से जुड़कर सेवा कार्य का निर्णय लिया। अब हम जगह-जगह समय-समय पर शिविर लगाते हैं। मूक-बधिर बच्चों का कॉकलियर इम्प्लांट के लिए पंजीकरण कराते हैं। फिर डॉ. एसएन मेहरोत्रा मेमोरियल ईएनटी फाउंडेशन के डॉ. रोहित मेहरोत्रा के सहयोग से नि:शुल्‍क इम्प्लांट कराते हैं। अब तक 80 बच्चों का ऑपरेशन हो चुका है, जबकि 600 की सूची तैयार है।

कॉकलियर इम्प्लांट के बाद स्पीच थैरेपी भी
सेठिया ने बताया कि जन्म से मूक-बधिर बच्चों को शब्द और भाषा ज्ञान नहीं होता। इसके बिना वह बोल नहीं सकते, इसलिए कॉकलियर इम्प्लांट के बाद संस्था उन्हें छह माह की स्पीच थैरेपी मुफ्त दिलाती है।
संस्था सदस्य देते हैं सहयोग क्लब के अध्यक्ष ने बताया कि उनकी संस्था में शहर के सेवाभावी चिकित्सक, उद्योगपति और कारोबारी जुड़े हुए हैं। वह अपने कारोबार के मुनाफे में से अंशदान संस्था को सेवाकार्यों के लिए देते हैं। उसी के माध्यम से यह सारा कार्य संभव हो पा रहा है।

'सभी अस्पतालों के बच्चे के जन्म के समय ही जांच होनी चाहिए कि वह सामान्य है या नहीं। यदि एक से पांच साल की उम्र तक कॉकलियर इम्प्लांट हो जाए तो वह कारगर होता है। बड़ा होने पर मुश्किल होती है। यह सुझाव राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी दे चुके हैं।'
टीकमचंद सेठिया
अध्यक्ष, लायंस क्लब ऑफ कानपुर गैंजेज


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